1500 वर्ष पुराना है भारत में इत्र का इतिहास

Alok varma, Jaunpur.

भारत में इत्र का इतिहास 1500 वर्ष पुराना है। सुगंध का पहला उल्लेख वराहमिहिर की बृहद संहिता में मिलता है। इस पोथी में वराहमिहिर एक जगह उल्लिखित करते हैं कि अवंति के महाराज यशोधर्मन विक्रमादित्य जिस जल से नहाते थे, उसमें 150 प्रकार के इत्र डाले जाते थे।कन्नौज और इसके इत्र का इतिहास भी 1350-1400 साल पुराना है। हर्षवर्धन के दरबारी कवि बाणभट्ट ने हर्ष चरित्र में कन्नौज के अगर की लकड़ी से बनने वाले इत्र का उल्लेख किया है। उस समय कांच नहीं था इसलिए इत्र को ऊंट के चमड़े से बनी सुराहियों में रखा जाता था। आज भी कन्नौज सदियों पुराने ‘देग-भापका’पद्धति से इत्र बना रहा है।

गुजरात में इत्र का व्यापार करने वाले वैश्य समुदाय के लोगों को गंधी या गांधी के नाम से जाना जाता है। मिस्र और अरब के साथ गुजरात के व्यापारी इत्र और मसालों का व्यापार किया करते थे।जोधपुर के कुछ इत्रसाज़ो ने अफीम का इत्र बनाने में सिद्धहस्तता प्राप्त कर ली थी। कई बड़ी परफ्यूम कम्पनी में प्रयुक्त होने वाले ‘ऑपियम’ से कंफ्यूज मत होइएगा। वास्तविक अफीम वाला इत्र के बारे में सुना है कि इसे कसकर सूंघ लेने पर व्यक्ति को सुरूर होने लगता है।

भारत में पैदा की गई एक सुगंध कस्तूरी भी थी।वास्तविक कस्तूरी इत्र की पहचान थी कि यदि आप एक गहरी सांस अंदर खींच लें तो नाक से नकसीर फूट जाए। लो बीपी के रोगियों को औषधि के रूप में कस्तूरी का इत्र दिया जाता था। बाजार में जो व्हाइट मस्क के इत्र उपलब्ध हैं वो सिंथेटिक हैं। कस्तूरी बहुत मूल्यवान और दुर्लभ वस्तु थी। अतः 20वीं शताब्दी के आरंभ में सिंथेटिक मस्क तैयार किया गया। वास्तविक कस्तूरी इत्र मिलना कठिन है।

अभी हाल ही में कुछ पारखियों के प्रयास से मेरा सामना ‘शमामा’ नाम के इत्र से पड़ा। ये गर्म मसालों और केसर से तैयार होने वाला इत्र है I बेहद गर्म तासीर। इसको पुराने लोग रजाई की रुई में डलवाते थे ताकि वो गर्म रहें।
भारतीय और फ्रेंच परफ्यूमरी की समझ या यूं कहें कि सौंदर्यबोध में बुनियादी अंतर है। फ्रेंच इत्रसाज़ जहां कई सारी गन्धों को एकरूप करके नई सुगंध रचते आए हैं तो वहीं भारतीय इत्रसाज़ो का नजरिया ऑर्गेनिक रहा। सुगंध के फ्यूजन की बजाए इन्होंने इसे ब्लेंड करना अधिक अच्छा समझा।गन्धों की इस जुगलबंदी में हर गंध( चरायंध) अपनी पहचान संजोए रख पाती है।

रही बात मेरी तो, न तो मुझे इत्र पसंद है न ही पर्फ्यूम या डियो!

वो तो कहिए आप की खुशबू ने पहचाना मुझे
इत्र कह के जाने क्या क्या बेचते अत्तार लोग!

खुशबू से किस जुबान में बातें करेंगे लोग
महफिल में ये सवाल उसे देख कर हुआ।

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