चुनाव नहीं सम्मान और अपमान की जंग।
भाजपा में मची भगदड़ को लोग भले ही बेटा बेटी के टिकट का नाम दे रहे हो या जाने वालों को अवसरवादी बताते नहीं थक रहे हो, लेकिन वास्तविकता की बात करें तो यह चुनाव नहीं सम्मान और अपमान की जंग है , जिसे भाजपा में रहकर ओबीसी के लोग बर्दाश्त करते आ रहे थे। जैसे ही चुनाव आचार संहिता लगी वैसे ही लंबे समय से भाजपा छोड़ने की योजना बनाने वाले इन मंत्रियों व विधायकों ने भाजपा को अलविदा करने में देर नहीं की। ऐसा नहीं कि अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ही इसका प्लेटफार्म बनी हो, समाजवादी पार्टी की बात करें तो वह खुद ही एक ऐसा प्लेटफार्म रही है जिसने लोकसभा हो या विधानसभा बात भले ही पिछड़ों की हों लेकिन अधिकतर काम केवल 2 लोगों के लिए ही किए। हालांकि वर्तमान में समाजवादी पार्टी की कमान अखिलेश यादव के हाथों में है जिन्हें पता चल चुका है कि वह मुलायम सिंह यादव के बेटे के साथ-साथ पिछड़े वर्ग में सियासी कद के नेता हैं जिस कारण स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिंह सैनी व दारा सिंह चौहान जैसे कद्दावर ओबीसी नेताओं की नजर समाजवादी पार्टी की तरफ घूम गई है। जानकार बताते हैं कि इन्हीं नेताओं ने भाजपा में रहकर भी पिछड़ों के अधिकारों के लिए जमकर लड़ाई लड़ी लेकिन पिछड़ों की लड़ाई तो यह क्या ही जीत पाते खुद अपनी लड़ाई भी नहीं जीत सके, इस कारण इन्हें भारतीय जनता पार्टी को अलविदा कहना पड़ा। भारतीय जनता पार्टी ने खुले मन से पिछड़ों के अधिकारों की रक्षा करने की बात तो कही लेकिन प्रमाण के साथ अपनी स्पष्टता जाहिर नहीं कर सकी यदि की होती तो 5 साल इनकी सरकार में रहने वाले यह नेता शायद समाजवादी पार्टी की तरफ रुख नहीं करते। खास बात यह है कि लोग भाजपा छोड़कर जाने वाले इन नेताओं द्वारा भाजपा पर लगाए गए पिछड़ा विरोधी होने के आरोप पर विश्वास नहीं कर रहे हैं, बल्कि ओबीसी के सामाजिक संगठन चलाने वाले लोग खुले मन से प्रमाण के साथ बता रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने सरकार चलाते समय किस तरह पिछड़ों के अधिकारों पर कुठाराघात किया है। भाजपा के लोग खुद जानते हैं कि ओबीसी वोटों के चलते ही तो उत्तर प्रदेश हो या देश
भारतीय जनता पार्टी को बंपर बहुमत मिला, लेकिन जांच कराई जाए तो पता चलेगा कि चाहे किसी भी विभाग की वैकेंसी भरी गई हो लेकिन किसी में भी आरक्षण की नीतियों का पालन नहीं किया गया। मुझे याद है वह दिन जब चकबंदी विभाग में करीब 11 सौ वैकेंसी लेखपाल की निकाली गई थी, विज्ञापन में आरक्षण व्यवस्था का कोई हवाला नहीं था जिस पर शोर मचा तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने न सिर्फ उस भर्ती पर रोक लगाई बल्कि दोषी अधिकारियों को भी निलंबन तक झेलना पड़ा। इसके अलावा सरकार खुद अच्छी तरह जानती है कि कहां कहां ओबीसी के अधिकारों से छलावा किया गया, सवाल यह नहीं कि स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा छोड़कर चले गए, सवाल यह है कि केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया। क्यों उन्हें पूरे पांच साल अलग-थलग रखा गया। सवाल यह भी है कि क्यों उन्हें मुख्यमंत्री कार्यालय में आफिस नहीं दिया गया। सवाल यह भी है कि क्यों उन्हें सरकारी हैलिकॉप्टर के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी। क्यों उनके कार्यों पर निगरानी रखी गई। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इस भागम भाग में भागने वालों की गलती नहीं, बल्कि सरकार का नेतृत्व करने वालों की गलती है। जिन्हें अपने जमीर में झांकने की आवश्यकता है सरकार मानें न माने लेकिन लोग दावा करते हैं कि उन्हें जहां गुंडे ,माफिया का
डर कम हुआ है वही सरकार से डर लगने लगा है जैसे स्वस्थ आलोचना करने वालों में जेल जाने का डर रहता है। मैं मानता हूं कि सरकार इमानदार हाथों में है लेकिन घूसखोरी ,भ्रष्टाचार और रिश्वत बाजी ने सारी सीमाएं लांघ दी है।आपकी सरकार पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगा लेकिन आपने सफाई देना भी उचित नहीं समझा। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जो भी आपके सलाहकार रहें वह अपने लालच में आपके भक्त बने रहे। यदि सलाहकार सही होते तो आज स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्मसिंह सैनी सहित दर्जनों विधायक आपको छोड़कर नहीं जातें। खैर जो हुआ उसकी भरपाई तो माफ़ी मांग कर भी नहीं की जा सकती, वैसे भी सत्ता और अहंकार का घनिष्ठ संबंध रहा है चाहे आप हों या अखिलेश यादव चाहे मायावती हो या राजनाथ सिंह जब-जब यूपी की सत्ता में रहें अहंकार सिर चढ़कर बोलता रहा। जिस कारण वापसी नहीं हो सकी और आप लोग जनता को खुश करने की जगह वोट हासिल करने की तिकड़म बाजी में लगे रहे। मुझे यह भी कहने में कोई संकोच नहीं है कि पन्द्रह लाख वाले बयान का मतलब न समझ आपके विरोधियों ने इसे सरकार को बदनाम करने का हथियार बना दिया जबकि उस समय मोदी जी ने कहा था कि विदेशों में इतना काला धन है कि यदि वापिस आ जाएं तो प्रत्येक के खाते में पन्द्रह लाख रुपए आ सकतें हैं लेकिन लोगों ने पूछना शुरू कर दिया की 15 लाख का वादा किया था वह क्यों नहीं आए लेकिन चाहे केंद्र सरकार रही हो या राज्य सरकार ओबीसी विरोधी होने का आरोप गलत नहीं है। जिसे किसी ओबीसी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके दूर करने की आवश्यकता है।
विनेश ठाकुर सम्पादक
विधान केसरी।