ब्यूरो,
दशकों से आर्यों के विदेश से आने की थ्योरी प्रचलित रही है, लेकिन आईआईटी खड़गपुर की ओर से जारी किए गए एक कैलेंडर में इस पर सवाल उठाए गए हैं। आईआईटी की ओर से 2022 के लिए जारी किए गए कैलेंडर में कुल 12 तथ्यों के साथ इस थ्योरी को गलत साबित किया गया है। अब इस पर लोगों की अलग-अलग राय सामने आ रही है। एक बड़े वर्ग ने कैलेंडर में दिए गए तथ्यों को सही करार दिया है तो वहीं कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर आश्चर्य जताया है और कहा कि वे अब भी इस कॉन्टेंट का अध्ययन कर रहे हैं कि आखिर यह कहां से आया है। होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन के प्रोफेसर अनिकेत सुले ने कहा, ‘क्या जिन लोगों ने कैलेंडर को तैयार किया है, उन्होंने पिछले 50 सालों में भारतीयता पर हुए अध्ययनों को पढ़ा है? आर्यों के आक्रमण का सिद्धांत लंबे समय से मृत है।’ आइए जानते हैं, कैलेंडर में क्या कहा गया है….
कैलेंडर में भारतीय सभ्यता के कई पहलुओं के बारे में बताते हुए कहा गया कि उपनिवेशवादियों ने वैदिक संस्कृति को 2,000 ईसा पूर्व की बात बताया है, जो गलत है। यही नहीं आईआईटी के इस कैलेंडर में बताया गया है कि कौटिल्य से पहले भी भारत में अर्थव्यवस्था, कम्युनिटी प्लानिंग, कृषि उत्पादन, खनन और धातुओं, पशुपालन, चिकित्सा, वानिकी आदि पर बात की गई है। कैलेंडर में कहा गया कि ऐसा बताया जाता है कि 300 ईसा पूर्व कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भारत में इन चीजों का जिक्र किया गया था। लेकिन इससे भी कहीं प्राचीन मनुस्मृति में पहले ही ऐसे तमाम पहलुओं पर बात की गई थी।
इसी तरह से कैलेंडर में जनवरी से दिसंबर तक के महीनों के साथ ही 12 तथ्य दिए गए हैं। इनके जरिए यह साबित किया गया है कि भारतीय सभ्यता की जड़ें यूरोप से संबंधित नहीं रही हैं। इससे पहले भी कई विद्वानों की ओर से इस थ्योरी पर सवाल खड़े किए जा चुके हैं। अमेरिकी लेखक डॉ. डेविड फ्रॉली ने भी अपनी पुस्तक ‘द मिथ ऑफ आर्यन इन्वेजन इन इंडिया’ में इस थ्योरी को गलत बताया था। यही नहीं बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर भी सभी जातियों को भारतीय मूल का बताते हुए इस थ्योरी को खारिज किया था।
इस कैलेंडर में एक तरफ भारतीय ज्ञान परंपरा की ऐतिहासिकता का जिक्र किया गया है तो वही ए. एल बाशम, वॉल्टेयर, जेम्स ग्रांट डफ जैसे कई पश्चिमी विद्वानों का भी जिक्र किया गया है, जिन्होंने भारतीय संस्कृति, चिकित्सा पद्धति एवं अन्य चीजों की सराहना की थी। स्कॉटिश मूल के इतिहासकार जेम्स ग्रांट डफ के भी एक उद्धरण को भी इसमें शामिल किया गया है, जिसमें वह कहते हैं, ‘आज की दुनिय़ा में विज्ञान की ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिनके बारे में हम मानते हैं कि वे यूरोप में ही बनी है, लेकिन ऐसी तमाम चीजों का सदियों पहले ही भारत में आविष्कार हुआ है।’
कैलेंडर में स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद जैसे भारतीय चिंतकों का भी जिक्र किया गया है। विवेकानंद की उस टिप्पणी को भी इसमें शामिल किया गया है, जिसमें वह कहते हैं, ‘आप किस वेद और सूक्त में पाते हैं कि आर्यन किसी दूसरे देश से भारत में आए थे? यूरोप में कहा जाता है कि ताकतवर की जीत होगी और कमजोर मारा जाएगा। लेकिन भारत की धमरती पर हर सामाजिक नियम कमजोर के संरक्षण की बात करता है।’