मीजल्स-रूबेला से बचाव पर कार्यशाला आयोजित 95 फीसदी एमआर टीकाकरण पर दिया गया ज़ोर

ब्यूरो नेटवर्क

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मीजल्स-रूबेला से बचाव पर कार्यशाला आयोजित
95 फीसदी एमआर टीकाकरण पर दिया गया ज़ोर
कार्यशाला

  • बुखार के साथ दाने हैं तो जरूर कराएं जांच
  • निगरानी, जांच, उपचार व रिपोर्टिंग भी बेहद जरूरी
    वाराणसी
    बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली मीजल्स (खसरा) और रूबेला जैसी गंभीर बीमारी से निपटने को स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से तैयार है । मीजल्स-रूबेला (एमआर) से निपटने के लिए सभी बच्चों को मुफ्त में एमआर का टीका लगाया जा रहा है, जिससे वायरस के दुष्परिणाम से बचा जा सके। पोलियो मुक्त भारत की तरह अब खसरा मुक्त भारत के लिए भी काम चल रहा है। इसी को लेकर मंगलवार को कैंट स्थित होटल में मीजल्स- रुबेला से बचाव, प्रबंधन, निगरानी व उपचार को लेकर कार्यशाला का आयोजन अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी व जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ वीएस राय की अध्यक्षता में किया गया। कार्यशाला के मुख्य वक्ता डब्ल्यूएचओ के एसएमओ डॉ जयशीलन थे।
    जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ वीएस राय ने बताया- मीजल्स-रूबेला गंभीर और जानलेवा बीमारी होती है। इसका वायरस संक्रमित व्यक्ति के शरीर में पाया जाता है, लेकिन इसकी रोकथाम टीकाकरण के जरिए की जा सकती है। लगभग 95 फीसदी तक एमआर का टीकाकरण होने से खसरा मुक्त भारत का लक्ष्य पूरा किया जा सकता है। यह वैक्सीन बच्चों को खसरा, रूबेला रोग से बचाती है। खसरे का टीका देश में काफी सालों से उपलब्ध है। इसके बावजूद खसरा छोटे बच्चों की मृत्यु का एक प्रमुख कारण बना हुआ है। यह सबसे अधिक संक्रामक बीमारियों में से एक है। खसरा पैरामाइक्सोवाइरस परिवार के एक वायरस के कारण एक तेजी से फैलने वाली घातक बीमारी है। खसरे के लक्षण कई बार इतने सामान्य होते हैं कि यह बीमारी पकड़ में ही नहीं आती। खासतौर पर बच्चों में इस बीमारी के लक्षणों की पहचान कर पाना कई बार बहुत ही मुश्किल हो जाता है। इस बीमारी के लक्षण फौरन पकड़ में भी नहीं आते। वायरस के हमले के करीब दो से तीन हफ्ते के बाद ही इस बीमारी की पहचान सम्भव हो पाती है। इसके लक्षण दो से तीन दिन तक रहते हैं।
    खसरा की पहचान – डॉ राय ने बताया कि खसरा किसी भी परिवार में फैल सकता है। कफ, काराईजा और कन्जक्टिवाइटिस मुख्य रूप से इसकी पहचान होते हैं। मुंह में तालू पर सफेद धब्बे भी नजर आते हैं। यह संक्रामक बीमारी है और संक्रमित व्यक्ति के मुंह और नाक से बहते द्रव के सीधे या व्यक्ति के संपर्क क्षेत्र में आने से होती है।
    डॉ जयशीलन ने बताया – मीजिल्स-रूबेला की रोकथाम के लिए निगरानी, जांच, रिपोर्टिंग, उपचार व फॉलो अप सबसे महत्वपूर्ण है। खसरा अत्यधिक संक्रामक होता है। संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने से यह बीमारी फैलती है। इसमें निमोनिया, डायरिया व दिमागी बुखार होने की संभावना बढ़ जाती है। चेहरे पर गुलाबी-लाल चकत्ते, तेज बुखार, खांसी, नाक बहना व आंखें लाल होना इस बीमारी के लक्षण हैं। रूबेला का संक्रमण गर्भावस्था के दौरान होने पर संक्रमित माता से जन्मे शिशु को आंखों से संबंधित बीमारी, बहरापन, मंद बुद्धि व दिल की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। रूबेला से गर्भपात, समय पूर्व प्रसव व गर्भ में बच्चे की मौत भी हो सकती है।
    डॉ जयशीलन ने बताया – एक बार जब वायरस शरीर में चला जाता है तो संक्रमण पूर्णतया नाक, सांस की नली और फेफड़ों, त्वचा और शरीर के अन्य अंगों में फैलता है। खसरे के साथ एक व्यक्ति लक्षण शुरू होने के एक से दो दिन पहले से लेकर बड़े लाल दाने (ददोरा) प्रकट होने के चार दिन बाद तक दूसरों तक खसरा फैला सकता है। खसरा आम तौर पर औसत दर्जे की बीमारी का कारण बनता है। छोटे बच्चों में, जटिलताओं में मध्य कान का संक्रमण (ओटिटिस मीडिया), निमोनिया, और दस्त शामिल हैं। वयस्कों में भी बीमारी की और भी गंभीर होने की संभावना हो जाती है। खसरा के वायरस से ददोरा, खांसी, नाक का बहना, आंखों में जलन और तेज बुखार होता है। इसके साथ ही कानों में संक्रमण, निमोनिया, बच्चों को झटके आना, घूरती आंखे, दिमाग को नुकसान और अंत में मौत तक हो जाती है।
    कार्यशाला में एसीएमओ डॉ एसएस कनौजिया, डॉ एके मौर्य, डिप्टी सीएमओ डॉ सुरेश सिंह, वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ एके पांडे, डबल्यूएचओ से एसएमओ डॉ जयशीलन, डबल्यूएचओ से सतरुपा, डीएचईआईओ हरिवंश यादव, यूनिसेफ से डीएमसी डॉ शाहिद, जनपद के ग्रामीण व शहरी स्वास्थ्य केंद्रों के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी के साथ ही स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी, टीकाकरण अधिकारी मौजूद रहे।

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