चीन में फिर जिंदा हो रही है #MeToo पर चर्चा

ब्यूरो नेटवर्क

चीन में फिर जिंदा हो रही है #MeToo पर चर्चा

अलीबाबा कंपनी और सेलिब्रिटी क्रिस वू से जुड़े यौन शोषण के मामलों ने देश में एक बार फिर #MeToo पर चर्चा को शुरू कर दिया है. पिछली बार इस आंदोलन पर चर्चा को दबा दिया गया था.यौन शोषण और हमले जैसे विषयों पर चीन में पहले सार्वजनिक स्तर पर कम ही चर्चा होती थी. 2018 में दुनिया भर में चल रहे #MeToo आंदोलन ने देश में चर्चा शुरू तो की, लेकिन जल्द ही इंटरनेट पर सेंसरशिप और सरकार का दबाव शुरू हो गया. एक्टिविस्टों को गिरफ्तार भी किया जाने लगा. अब एक बार फिर ये मुद्दे चर्चा में वापस आ रहे हैं. बीते कुछ दिनों में चीन के सोशल मीडिया मंच वीबो पर कार्यस्थल पर महिलाओं द्वारा यौन शोषण का सामना करने के मामलों पर सबसे ज्यादा चर्चा हुई है.

इस तरह की चर्चाओं को सिर्फ दो दिनों में 50 करोड़ से भी ज्यादा बार देखा गया. सोशल मीडिया पर छाया विषय सबसे ज्यादा ट्रेंड कर रहे विषयों में शामिल थे “कामकाजी महिलाओं को सहकर्मियों के साथ शराब पीने के दौरान सामने आने वाली घिनौनी संस्कृति से कौन बचाएगा?” और “कार्यस्थल पर महिलाएं यौन शोषण से अपनी सुरक्षा कैसे करें?” सरकारी टीवी चैनल सीसीटीवी ने एक वीडियो सोशल मीडिया पर डाला जिसमें विशेषज्ञ बता रहे थे कि अगर किसी महिला पर कार्यस्थल के अंदर यौन हमला होता है तो वो उसके सबूत जुटाने के लिए क्या कदम उठा सकती हैं. इस वीडियो पर प्रतिक्रिया देते हुए लोगों ने कहा कि पुरुषों पर इसकी जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वो जानें कि ऐसा करना गलत है. हाल ही में पुलिस ने चीनी-कैनेडियन पॉप गायक क्रिस वू को नाबालिग महिलाओं को शराब पिला कर बहकाने के आरोप में हिरासत में ले लिया था. इसी सप्ताह तकनीकी कंपनी अलीबाबा ने अपने एक कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया जिसके खिलाफ उसकी एक सहकर्मी ने यौन हिंसा का आरोप लगाया था. इस बार नहीं हो रहा सेंसर यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है की चीन के सेंसर “ग्रेट फायरवॉल” ने इन दोनों में से किसी भी मामले को अभी तक सेंसर क्यों नहीं किया है. समीक्षकों का कहना है कि ये मामले ऐसे समय पर सामने आए हैं जब सरकार ने सेलेब्रिटियों की अत्यधिक भक्ति को नापसंद करने के संकेत दिए हैं.

इसके अलावा सालों तक चीनी तकनीकी कंपनियों से अपने हाथ दूर रखने के बाद अब उन पर नकेल कसने के चीनी सरकार के अभियान का अलीबाबा सबसे बड़ा शिकार बन गया है. बीजिंग फॉरेन स्टडीज विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त पत्रकारिता के प्रोफेसर शान चियांग का कहना है कि वू और अलीबाबा मामलों पर जनता के ध्यान सरकार के कोई संवेदनशील बात नहीं है. उन्होंने बताया, “मनोरंजन का राजनीति से कोई लेना देना नहीं है. अलीबाबा इस समय एक तूफान के केंद्र में है और इसका सरकार के हितों से कुछ खास लेना-देना नहीं है, इसलिए सरकार चिंतित नहीं है” मौजूदा हालात चीन का कहना है कि वो महिलाओं को सशक्त करना चाहता है और उनके अधिकारों की रक्षा करना चाहता है. पिछले ही साल एक नया कानून लाया गया जिसके तहत पहली बार कौन कौन से कदम यौन शोषण माने जाएंगे इसकी परिभाषा दी गई. लेकिन चीन इस तरह की गतिविधियों और बातचीत को बर्दाश्त नहीं करता है जिनसे उसे यह चिंता हो कि वो सामाजिक व्यवस्था को हिलाएंगे या सरकार की शक्ति का निरादर करेंगे. महिलावादी समूहों पर दबाव आज भी जारी है.

हाल के महीनों में उनके कई ऑनलाइन मंच बंद कर दिए गए हैं. फिर भी, #MeToo एक्टिविस्टों का कहना है कि वो इस बात से खुश हैं कि वू और अलीबाबा मामलों पर लोगों का जो गुस्सा भड़का है उससे इन विषयों के बारे में नई जागरुकता आ रही है. 2018 में अपने आरोपों से आंदोलन को शक्ति देने वाली झाऊ शिओशुआन मानती हैं, “इसका जरूर सकारात्मक असर होगा” झाऊ ने टीवी की मशहूर हस्ती झू जुन पर सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया कि जुन ने उन्हें जबरन छुआ और चूमा. झाऊ ने झू से हर्जाने की मांग करते हुए उनके खिलाफ अदालत में मामला दर्ज कराया था, लेकिन उनकी शिकायत पर आज तक फैसला नहीं आया है. उन्होंने हाल के इन नामी मामलों के बारे में कहा,”इनसे महिलाओं के अधिकारों के लिए समर्थन का विस्तार ही होता है. इससे शक्तिशाली पदों पर बैठे लोगों द्वारा की जाने वाली हिंसा पर चर्चा भी होती है” सीके/एए (रॉयटर्स).

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