देश में लगे लॉकडाउन के दौरान दूरदर्शन पर प्रचलित धार्मिक सीरियल ‘महाभारत’ का प्रसारण हो रहा है। दर्शक इस सीरियल को बहुत पसंद कर रहे हैं। अब तक आपने देखा कि दुर्योधन कहते हैं कि कल हमें युद्ध में जयद्रथ को बचाना होगा। अगर कल जयद्रथ बच जाएगा तो अर्जुन खुद समाधि ले लेगा। इसके बाद हम बचे सभी पांडवों को गाजर मूली की तरह काटकर फेंक देंगे। शकुनि दुर्योधन को बताते हैं कि कल का दिन शुभ होगा। इस दौरान जयद्रथ बोलते हैं कि मैं वापस लौट जाने की सोच रहा हूं। इस पर शकुनि कहते हैं कि आप ऐसा मत करिए। आपकी सुरक्षा के लिए कल बड़े-बड़े योद्धा रणभूमि में तैनात रहेंगे। यह सुनकर जयद्रथ का डर थोड़ा कम होता है।
अर्जुन के रथ के घोड़े थक चुके हैं वासुदेव रथ रोक देते हैं। वह कहते हैं कि यह थक चुके हैं तुम्हारे रथ को आगे नहीं ले जा सकते। ऐसे में अर्जुन कहते हैं कि अब सूर्यास्त को बहुत देर नहीं है। अर्जुन रथ से उतर जाते हैं। वासुदेव कहते हैं कि नियम यह था कि जब कोई व्यक्ति रथ पर न हो तो उसे कोई योद्धा तीर नहीं मारेगा। दुर्योधन कहते हैं कि मैं यह नियम नहीं मानता। अर्जुन रणभूमि पर रहकर दुर्योधन पर बाण चलाते हैं और दुर्योधन बुरी तरह घायल हो जाते हैं। वासुदेव और अर्जुन दोबारा रथ पर आ गए हैं। वासुदेव कहते हैं कि जयद्रथ का सिर कटकर भूमि पर न गिर जाए। जयद्रथ के पिता का वरदान था कि जो उसका सिर भूमि पर गिराएगा उसके सिर में एक विस्फोट होगा। इस बात का ध्यान रखना पार्थ कि जयद्रथ का सिर उसके पिता की गोद में कटकर गिरे। ऐसा बाण चलाना। उधर जयद्रथ परेशान हैं कि अर्जुन इतनी तेजी से उनकी ओर आगे कैसे बढ़ रहे हैं। उन्हें अपनी मृत्यू दिखाई दे रहे हैं। वह प्रार्थना कर रहे हैं कि सूर्यास्त जल्दी हो जाए और उस दिन का युद्ध खत्म हो जाए।
धृतराष्ट्र और संजय आपस में बात कर रहे हैं। कह रहे हैं कि कुंती पुत्र अर्जुन तो आज किसी भी स्थिति में रुक नहीं रहे हैं। वह जयद्रथ की ओर बढ़ते ही जा रहे हैं। सभी को उन्होंने घायल कर दिया है। अर्जुन काफी गुस्से में हैं। कुंती पुत्र अर्जुन से घबराकर दुर्योधन गुरुद्रोण की ओर जा रहे हैं महाराज। इधर, दुर्योधन गुरुद्रोण पर गुस्सा हो रहे हैं। वह कह रहे हैं कि गुरुद्रोण आपने अर्जुन की पीठ पर वार क्यों नहीं किया। गुरुद्रोण कहते हैं कि मैं पीठ पर वार नहीं किया करता। मैं यहां से नहीं जा सकता। मुझे तुम्हारे लिए युधिष्ठर को बंदी बनाना है। जयद्रथ की रक्षा के लिए तुम जाओ। अभी युधिष्ठर के साथ कोई नहीं है इसलिए मुझे उसे बंदी बनाने में कोई मुश्किल नहीं होगी। दुर्योधन जयद्रथ की रक्षा के लिए सार्थी के साथ रथ पर निकल पड़ते हैं। अर्जुन के सामने अश्वथामा हैं और दोनों के बीच युद्ध हो रहा है। अर्जुन ने अश्वथामा को भी घायल कर दिया है और अब कर्ण का सामना कर रहे हैं। कर्ण घायल होकर रथ से नीचे गिर गए हैं।
कुंती पुत्र दुर्योधन से युद्ध कर रहे हैं। दुर्योधन को अर्जुन के दो तीर छाती पर लगते हैं और वह घायल हो जाते हैं। अर्जुन जयद्रथ से सामना करने के लिए आगे बढ़ चुके हैं। अर्जुन द्रोण से कहते हैं कि आज मेरा मार्ग न रोकें गुरुवर। मुझे जयद्रथ के पास जाने से आज कोई नहीं रोक सकता। गुरुद्रोण कहते हैं कि कुंती नंदन आज मैं तुम्हारे मार्ग से नहीं हटूंगा। पहले मुझे मार्ग से हटाओ इसके बाद जयद्रथ के पास जाने के लिए आगे बढ़ना। अर्जुन और वासुदेव रथ लेकर युद्ध के मैदान से दूसरी ओर चले जाते हैं। और अब अर्जुन दुशासन से युद्ध कर रहे हैं। सूर्योदय होने से पहले उन्हें जयद्रथ के पास पहुंचना होगा ऐसा वासुदेव कहते हैं। अर्जुन युद्ध के मैदान में आग के तीर छोड़ रहे हैं। इससे एक साथ कई सैनिक घायल हो रहे हैं। उधर, दुर्योधन इस चिंता में हैं कि अर्जुन युद्ध में उनकी ओर बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। वह आचार्य द्रोण से कहते हैं कि उसे रोकें वरना वह आज युद्ध कत्म कर विजय हो जाएगा। गुरुद्रोण और अर्जुन के बीच तीर चल रहे हैं। वासुदेव से अर्जुन कहते हैं कि मुझे जयद्रश की ओर ले चलिए।
आज मुझे कोई दीवार नहीं रोक पाएगी। लेकिन, वासुदेव समझाते हैं कि कि कर्म और धर्म में फर्क समझो पार्थ। कल जयद्रथ ने महादेव का कवच पहना हुआ था। अपने सारे सवालों का जवाब महादेव से पूछा पार्थ। लक्ष्य को भेदने पर ध्यान दो पार्थ। तुम्हारी आंखों पर धूल जम चुकी है। लेकिन अर्जुन नहीं मनाते और कहते हैं कि मुझे जयद्रथ के पास ले चलिए। 12 हजार कोस दूर पर ही क्यों न हो जयद्रथ मैं उसे ढूंढ निकालूंगा। आज युद्ध के मैदान में जयद्रथ आचार्य द्रोण के कमल चक्रव्यूह का कवच पहने हुए हैं, जिसे तोड़ना बहुत ज्यादा मुश्किल है। द्रौपदी और उत्तरा दोनों ही अभिमन्यु के जाने का दुख मना रही हैं। उत्तरा का रो-रोकर बुरा हाल हो रहा है। द्रौपदी उन्हें संभाल रही हैं। भीष्म पितामह के पास अर्जुन आते हैं। पितामह अभी-भी बाणों की शय्या पर लेटे हुए हैं। अर्जुन पुत्र की मृत्यू से बहुत दुखी हैं और रो रहे हैं। अर्जुन कहते हैं कि मैं शोक प्रकट करने आया हूं आज। आज के युद्ध में अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हो गया पितामह। भीष्म कहते हैं कि यानी चौथी पीड़ी में भी हाथ लग गया। अर्जुन कहते हैं कि गुरुद्रोण आचार्य, अश्वथामा, दुर्योधन, दुशासन, शकुनि और कर्ण ने उसका वद्ध कर दिया।
भीष्म कहते हैं कि लेकिन निर्णय तो यह लिया गया था कि एक से एक लड़ेगा। अर्जुन कहते हैं कि लेकिन इसका किसी ने पालन नहीं किया। सात योद्धाओं ने मेरे पुत्र को घेरकर मार डाला। मैं उसकी सहायता नहीं कर पाया। कुंती कहती हैं कि आज रणभूमि में बहुत बड़ी घटना घटी। अभिमन्यु की मत्यू ने सभी को हिला कर रख दिया है। सभी बहुत दुखी हैं। रणभूमि में हर योद्धा को यह युद्ध जलाए जा रहा है। इस युद्ध ने सैकड़ों मांओं की नींद उड़ाई हुई है। एक तरफ कुंती परेशान हैं तो दूसरी ओर गांघारी को भी नींद नहीं आ रही है। दोनों ही सोते हुए रो रही हैं। देर रात गांधारी कुंती के पास आती हैं। दोनों को नींद नहीं आ रही है। गांधारी कहती हैं कि जिन मां के पुत्र रणभूमि में होते हैं उन्हें न तो नींद आती है और न जगा जाता है।