कोरोना संक्रमण ठीक होने वाले बच्चों में दो से छह सप्ताह में मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेंटरी सिंड्रोम (एमआईएस) के मामले देखे जा रहे हैं। इसमें बच्चों को बुखार आना, शरीर पर लाल चकते बनना, आंखें आना, सांस फूलना यानी जकड़न आदि लक्षण आ रहे हैं। उल्टी, डायरिया, थकान के लक्षण भी हो सकते हैं। हालांकि केंद्र सरकार के अनुसार, यह एक आपातकालीन स्थिति है और समय रहते यदि उपचार शुरू हो जाए तो ज्यादा कठिन नहीं है। उपचार को लेकर दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, ये लक्षण कोरोना से मिलते-जुलते हैं लेकिन आरटीपीसीआर टेस्ट नेगेटिव आता है। कोरोना में जहां संक्रमण फेफड़ों में होता है एमआईएस में ऐसा लगता है कि बीमारी शरीर के एक सिस्टम में नहीं बल्कि सब जगह है, इसलिए इसे मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेंट्ररी सिंड्रोम कहा जाता है। ऐसे में जब कोरोना महामारी की तीसरी लहर बच्चों के लिए ज्यादा खतरनाक होने की आशंका जताई जा रही है, इस तरह के लक्षण चिंताजनक हैं।
नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल के अनुसार, बच्चों में कोरोना का संक्रमण दो प्रकार से देखा जा रहा है। एक कोरोना का संक्रमण हुआ और घर में या अस्पताल में उपचार के बाद बच्चे ठीक हो गए। संक्रमण के 2-3 फीसदी मामलों में बच्चों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ रही है। लेकिन हमारी तैयारियां इससे दोगुनी या इससे ज्यादा हैं, इसलिए बच्चों के मामले में भर्ती की कोई समस्या नहीं है।
उन्होंने कहा कि सरकार बच्चों में होने वाले कोरोना पर विशेष ध्यान केंद्रित कर रही है। इसकी उपचार की रणनीति तय करने के लिए बाल रोग विशेषज्ञों का एक समूह तैयार किया गया था, जिसने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है तथा जल्द ही उसके अनुरूप दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे।
महामारी की प्रवृत्ति बदल जाए तो बच्चों के लिए ज्यादा खतरा
पॉल ने दोहराया कि अब तक बच्चों में कोरोना संक्रमण कम हो रहा है और ज्यादातर मामलों में कोई लक्षण प्रकट भी नहीं होते हैं। लेकिन यदि वायरस अपने व्यवहार में कोई बदलाव कर दे या महामारी की प्रवृत्ति बदल जाए तो स्थिति बदल भी सकती है। इस मामले में लगातार वैज्ञानिक जानकारियों को अपडेट किया जा रहा है। सरकार नए तरीके से इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है।