कोरोना के बाद अब ब्लैक फंगस नई समस्या खड़ी हो गई है। चपेट में आए लोगों को यह जीवन भर का दर्द दे दिया है। अब तक 14 की आंखों की रोशनी चली गई और जान बचाने के लिए बीएचयू के डॉक्टरों को उनकी आंखें निकालनी पड़ीं। कई मरीज देर से इलाज कराने पहुंचे। नतीजा यह कि आंखों की रोशनी चली गई।
बीएचयू में अब तक ब्लैक फंगस के 97 मरीज आ चुके हैं। इनमें 15 की मौत हो चुकी है। 87 का इलाज हो चुका है। इनमें 39 का ऑपरेशन किया गया। 14 मरीज ऐसे हैं जिनकी आंखों की रोशनी खत्म हो गईं। आंखों के पीछे सड़न शुरू हो गई थी और आसपास की जगह काली हो गई थी। डॉक्टरों के पास उनकी आंखें निकालने के सिवा दूसरा विकल्प नहीं था।
आईएमएस बीएचयू के नेत्र रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं नेत्र कैंसर व आकुलोप्लास्टि यूनिट के इंचार्ज डॉ. राजेंद्र प्रकाश मौर्या ने बताया कि ब्लैक फंगस के एडवांस स्टेज में शल्यक्रिया के उपरांत आंखों व चेहरे की क्रियात्मक व रचनात्मक विकृतियां उत्पन्न होती है। आंख निकलने से लोग तनाव में आ जाते हैं। उन्हे परेशानी न हो इसके लिए आर्बिटल प्रोस्थेसिस’’ या ‘‘आकुलोफेसियल प्रोस्थेसिस’ को लगा देते हैं। आजकल चश्मे में भी प्रोस्थेसिस फिट (स्पेक्अीकल माउन्ट प्रोस्थेसिस) का प्रचलन है। जिससे मरीज को रोशनी तो नहीं मिलेगी लेकिन लोगों को उसके आंखों के नहीं होना पता नहीं चलेगा।
कोरोना संक्रमित होने के बाद मरीज आंख दर्द, सिर दर्द सहित अन्य समस्या को नजरअंदाज करता है। यह लापरवाही भारी पड़ती है। नेत्र रोग विशेषज्ञ का कहना है कि कोरोना से ठीक होने के बाद यह फंगल इंजेक्शन पहले साइनस में होता है। दो चार दिन बाद आखों तक पहुंच जाता है। 24 घंटे के भीतर ब्रेन में पहुंच जाता है। साइनस और आंख के बीच की हड्डी होती है। आंख से ब्रेन के बीच हड्डी नहीं होने से यह तेजी से ब्रेन में पहुंचता है।