झारखंड में इंसानियत की एक ऐसी मिसाल देखने को मिली है, जिसमें एक सख्स को मजहब के बेड़ियों को तोड़कर किसी की जान बचाना सबसे बड़ा मजहब दिखा। गिरिडीह के बगोदर प्रखंड के कुसमरजा के सलीम अंसारी ने मानवता की मिसाल पेश की है। गांव का ही एक आठ साल का बच्चा निखिल कुमार निमोनिया से पीड़ित है। उसका हजारीबाग के एक नर्सिंग होम में इलाज चल रहा है।उसकी स्थिति गंभीर बनी हुई है और उसे बार-बार रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ रही है। सलीम को जब यह पता चला तो वह लॉकडाउन की बिना परवाह किए बगोदर से हजारीबाग पहुंचा और समय से पहले रोजा तोड़कर निखिल को खून देकर उसकी जान बचाई।
बीमार निखिल के भाई फलजीत कुमार ने बताया कि एक सप्ताह पहले भी छोटे भाई को खून की जरूरत हुई थी, उस समय ब्लड बैंक में ए पोजिटिव खून उपलब्ध था। जिसके कारण उस समय उसने खुद रक्तदान किया था। निखिल को पेशाब के रास्ते से खून आ रहा है।
विगत शुक्रवार को डॉक्टरों ने फिर निखिल को खून चढ़ाने की जरूरत बता दी, लेकिन ब्लड बैंक में ए पोजिटिव खून उपलब्ध नहीं था। उसने अपने किसान पिता भिखारी महतो के जरिए गांव में यह संदेश भिजवाया। सभी परिजन तीन दिन से परेशान थे, कहीं खून मिल नहीं पा रहा था। यह बात गांव के सलीम अंसारी को पता चली। फलजीत ने बताया कि सलीम भाई का फोन आया। उन्होंने कहा कि उसका ब्लड ग्रुप ए पोजिटिव है वह खून देने के लिए तैयार हैं। सलीम गांव के दो अन्य युवकों को साथ लेकर गाड़ी से हजारीबाग के लिए निकल पड़ा। लॉकडाउन के कारण रास्ते में दो-तीन जगह उसे पुलिस ने रोका। डॉक्टर का प्रि्क्रिरप्शन दिखाकर और बच्चे को खून देने जाने की बात कहकर वह उन चेकनाकों से किसी तरह निकल पाया। सलीम अंसारी का रोजा चल रहा था।