केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में जलवायु परिवर्तन पर बहस के दौरान पहली बार संस्कृत में संबोधन दिया। जावड़ेकर ने अन्य वक्ताओं के साथ अपने बहस की शुरुआत शुक्ल यजुर्वेद के हिम से की।
जावड़ेर ने अमपने संबेधन के दौरन जिस मंत्र का इस्तेमाल किया वह कुछ इस तरह है। ‘ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥”
यजुर्वेद के इस शांति पाठ मंत्र में सृष्टि के समस्त तत्वों व कारकों से शांति बनाये रखने की प्रार्थना करता है। इसमें यह गया है कि द्युलोक में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, शांति हो, शांति हो, शांति हो।
जावड़ेकर ने कहा कि जलवायु परिवर्तन, संघर्ष और कमजोरी के बीच संबंध का आकलन करने के लिए व्यापक रूप से स्वीकार किए जाना वाली कोइ पद्धति नहीं है। उन्होंने कहा, “जब यह डेटा उपलब्धता और प्रभाव माप की बात आती है कमजोरी और जलवायु प्रभाव अत्यधिक संदर्भ विशिष्ट हैं।”
उन्होंने कहा, “जलवायु एक्शन के विचार से जलवायु महत्वाकांक्षा के लक्ष्य को 2050 के बाद भी नहीं हटाना चाहिए। सभी दोशों को 2020 से पहले के अपने वादों को पूरा कर लेना चाहिए।
जलवायु कार्रवाई के विचार देशों ने अपने पूर्व-2020 प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए जलवायु महत्वाकांक्षा लक्ष्य पद 2050 यह महत्वपूर्ण है हटो से समझ नहीं किया जाना चाहिए। क्लाइमेट एक्शन देशों के बीच वित्तीय, तकनीकी और क्षमता निर्माण के समर्थन के लिए ढांचे के साथ हाथ से हाथ मिलाकर चलने की जरूरत है।”
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत जी -20 देशों के बीच जलवायु परिवर्तन की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने वाला एकमात्र देश है। मंत्री ने आगे कहा कि भारत पेरिस समझौते लक्ष्यों को पूरा कर रहा है। भारत में इस समय सौर ऊर्जा कार्यक्रम को लेकर सबसे तेजी से काम हो रहा है।