कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं और किसान आंदोलने से जुड़े याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है और एक कमेटी का गठन करने का आदेश दिया है। इससे पहले कोर्ट ने समिति के पास न जाने की बात पर किसानों को फटकार लगाई है और कहा कि हम समस्या का हल चाहते हैं, मगर आप अनिश्चितकालीन आंदोलन करना चाहते हैं तो आप कर सकते हैं। उम्मीद की जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट कृषि कानूनों को लेकर आज यानी मंगलवार को अपना फैसला सुना सकता है। संभव है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार और किसानों के बीच जारी इस गतिरोध को दूर करने के इरादे से देश के किसी पूर्व प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर दे। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने सोमवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान संकेत दिया था कि वह कृषि कानूनों और किसानों के आन्दोलन से संबंधित मुद्दों पर अलग अलग हिस्सों में आदेश पारित कर सकती है। तो चलिए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के सारे लेटेस्ट अपडेट्स…
-सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर लगाई रोक, कमेटी का गठन किया
-सुप्रीम कोर्ट ने हरीश साल्वे के आरोप पर ध्यान दिया, जिसमें कहा गया है कि प्रतिबंधित संगठन इस प्रदर्शन को फंडिंग कर रहे हैं। इसका उल्लेख अदालत के समक्ष एक याचिका में किया गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एजी वेनुगोपाल से पूछा- क्या आप कन्फर्म कर सकते हैं कि यह सही है?
एजी वेनुगोपाल ने कहा- हम पुष्टि कर सकते हैं। हमें एक दिन का समय दीजिए … 26 जनवरी को देश में हाई सिक्योरिटी होती है। एक लाख लोगों को राजधानी में प्रवेश करने की अनुमति का कोई सवाल ही नहीं उठता। उन्हें अपने फायदे के लिए न्यायालय की सहायता नहीं लेनी चाहिए।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे पुलिस पर ही छोड़ दिया जाए। हमें इसका निर्णय लेने का हक नहीं।
– हरिश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की कि कोर्ट जब आदेश दे तो उसमे लिख दे एम एस पी जारी रहेगी और किसानों को रामलीला मैदान में प्रदर्शन के लिए रहने दिया जाए। इस पर कोर्ट ने कहा यदि वे आग्रह करें तो विचार किया जाएगा। मगर किसानों को प्रदर्शन के लिए पुलिस से अनुमति लेनी होगी।
-उच्चतम न्यायालय ने किसान संगठनों से कहा, ‘यह राजनीति नहीं है। राजनीति और न्यायतंत्र में फर्क है और आपको सहयोग करना ही होगा।’
– सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बनाने की बात पर जोर देते हुे कहा कि कमेटी हम बनाएंगे ही, दुनिया की कोई ताकत उसे बनाने से हमें नहीं रोक सकती है। हम जमीनी स्थिति समझना चाहते हैं। इसके बाद अटार्नी जनरल ने कहा कि कमेटी अच्छा विचार है हम उसका स्वागत करते हैं।
–याचिकाकर्ताओं में से एक के लिए पेश होने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे का कहना है कि कानूनों को लागू करने पर रोक को राजनीतिक जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसे कानूनों पर व्यक्त चिंताओं की एक गंभीर परीक्षा के रूप में देखा जाना चाहिए।
-कृषि कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि समिति इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है। हम कानूनों को निलंबित करने की योजना बना रहे हैं लेकिन अनिश्चित काल के लिए नहीं होगा।
-किसानों की ओर से कोर्ट में पेश हुए वकील एमएल शर्मा ने कहा कि किसानों का कहना है कि कई व्यक्ति चर्चा के लिए आए थे, लेकिन इस बातचीत के जो मुख्य व्यक्ति हैं, प्रधानमंत्री नहीं आए। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम प्रधानमंत्री को नहीं कह सकते कि आप मीटिंग में जाओ। वह इस केस में कोई पार्टी नहीं हैं।
-सीजेआई ने कहा कि हम एक समिति इसलिए बना रहे हैं ताकि हमारे पास एक स्पष्ट तस्वीर हो। हम यह तर्क नहीं सुनना चाहते कि किसान समिति में नहीं जाएंगे। हम समस्या को हल करने के लिए देख रहे हैं। अगर आप (किसान) अनिश्चितकालीन आंदोलन करना चाहते हैं, तो आप ऐसा कर सकते हैं।
-कृषि कानूनों पर आगे चीफ जस्टिस ने कहा कि यह समिति हमारे लिए होगी। आप सभी लोग जो इस मुद्दे को हल करने की उम्मीद कर रहे हैं, इस समिति के समक्ष जाएंगे। यह न तो कोई आदेश पारित करेगा और न ही आपको दंडित करेगा, यह केवल हमें एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
-इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि हम कानूनों की वैधता, विरोध प्रदर्शनों से प्रभावित नागरिकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा के बारे में भी चिंतित है। हम अपने पास मौजूद शक्तियों के अनुसार समस्या को हल करने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे पास जो शक्तियां हैं, उनमें से एक है कि हम कानून को निलंबित करें और एक समिति बनाएं।
-कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने वाले एडवोकेट एमएल शर्मा ने अदालत को बताया कि किसानों ने कहा है कि वे अदालत द्वारा गठित किसी भी समिति के समक्ष उपस्थित नहीं होंगे।
-कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई।
-सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि अदालत के फैसले के बाद हमारी कमेटी की बैठक होनी है। इसके बाद हम अपनी लीगल टीम से बात करेंगे। इसी बैठक में हम आगे का फैसला करेंगे और रणनीति बनाएंगे।
– पीठ ने सोमवार को तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ ही किसानों के आन्दोलन के दौरान नागरिकों के निर्बाध रूप से आवागमन के अधिकार के मुद्दे उठाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी। न्यायालय ने किसानों के साथ बातचीत का अभी तक कोई हल नहीं निकलने पर केन्द्र को आड़े हाथ लिया था और सारी स्थिति पर घोर निराशा व्यक्त की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसानों के साथ उसकी बातचीत के तरीके से वह बहुत निराश है। इस विवाद का समाधान खोजने के लिए वह एक समिति गठित करेगा। इस बारे में आदेश मंगलवार को दिया जाएगा। मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए यहां तक संकेत दिया कि यदि सरकार इन कानूनों का अमल स्थगित नहीं करती है तो वह उन पर रोक लगा सकती है।
इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी संकेत दिया था कि वह किसी पूर्व प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर सकता है जिसमें देश की सभी किसान यूनियनों के प्र्रतिनिधियों को भी शामिल किया जा सकता है। न्यायालय ने इस गतिरोध का सर्वमान्य समाधान खोजने के लिये केन्द्र सरकार को और समय देने से इंकार करते हुये कहा था कि पहले ही उसे काफी वक्त दिया जा चुका है।
पीठ ने कहा, अटॉर्नी जनरल! हम पहले ही आपको काफी समय दे चुके हैं। कृपया, संयम के बारे में हमें भाषण मत दीजिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में कृषि कानूनों और किसानों के आन्दोलन के संबंध में वह हिस्सों में आदेश पारित करेगी। पीठ ने इसके साथ ही पक्षकारों से कहा कि वे शीर्ष अदालत द्वारा गठित की जाने वाली पीठ के अध्यक्ष के लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर एम लोढा सहित दो-तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के नामों का सुझाव दें।
वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने टिप्पणी की कि यह सब क्या हो रहा है। राज्य आपके कानूनों के खिलाफ विद्रोह कर रहे हैं। हम बातचीत की प्रक्रिया से बेहद निराश हैं। हम आपकी बातचीत के बारे में कोई टिप्पणियां नहीं करना चाहते, लेकिन हम इस प्रक्रिया से बहुत निराश हैं। शीर्ष अदालत तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली और दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले किसानों को हटाने के लिए याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी। न्यायालय ने कहा कि इस समय वह इन कानूनों को खत्म करने के बारे में बात नहीं कर रही है। यह बहुत ही संवेदनशील स्थति है। हमारे सामने एक भी ऐसी याचिका नहीं है, जो इन कानूनों को लाभकारी बता रही हो।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी कि किसी भी कानून पर उस समय तक रोक नहीं लगाई जा सकती, जब तक न्यायालय यह नहीं महसूस करे कि इससे मौलिक अधिकारों या संविधान की योजना का हनन हो रहा है। उन्होंने कहा कि कोर्ट को ध्यान रखना चाहिए कि इस तरह से कानून स्थगित कराना एक चलन बन जाएगा। इस मामले की अब आज सुनवाई होगी या फिर आदेश भी आ सकता है।