राजस्थान के करीब पांच माह पहले पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों की बगावत के बाद राजस्थान की सियासत में आया भूचाल अब फिर जोर पकड़ने लगा है। सरकार गिराने और बचाने की कवायद में ईडी, इनकम टैक्स, एसओजी से लेकर एसीबी तक का राजनैतिक इस्तेमाल हुआ।
कांग्रेस की तरफ से भाजपा नेताओं के तथाकथित फोन टेपिंग कांड भी सामने आए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर सरकार गिराने के षड्यंत्र में शामिल होने के आरोप लगाए। कोरोना काल के बीच गहलोत को अपने विधायकों को करीब 34 दिन तक बाड़बंदी में रखना पड़ा था। आखिर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की दखल के बाद पूरा मामला सुलझा।
पायलट का डिप्टी सीएम और प्रदेशाध्यक्ष का पद चला गया। उनके साथ गए कैबिनेट मंत्री विश्वेंद्र सिंह व रमेश मीणा भी बर्खास्त कर दिए गए। अब दोबारा वही स्थिति बन रही है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि सियासी संकट के समय आए पॉलिटिकल डेडलॉक को तोड़ने के लिए कांग्रेस ने क्या किया? बीते 5 माह से न राजनीतिक नियुक्तियां हुईं न संगठन में बदलाव। मंत्रिमंडल फेरबदल भी नहीं हुआ। जिन विधायकों ने सियासी संकट में गहलोत का साथ दिया था वे अपने लिए किसी तोहफे की उम्मीद लगाए बैठे थे। लेकिन उन्हें भी किसी तरह का ईनाम नहीं मिला है। ऐसे में कई विधायकों में असंतोष की आशंका जताई जा रही है।
नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि सरकार के गठन के साथ ही दिल्ली में परेड शुरू हो गई थी और उपमुख्यमंत्री को शुरू से इग्नोर किया गया, जिसका नतीजा यह रहा कि जल्द सरकार गिरने की नौबत आ गई। सरकार बचाने के लिए लोगों को आश्वासन देते हुए कैंप में रखा और यह आश्वासन पूरा नहीं होने पर विस्फोट की ओर जा रहा है, यह खुद महसूस कर रहे हैं। कटारिया ने आरोप लगाया कि आपसी फूट के आंकड़े को इन्होंने 36 ही रखा, वे इसको 63 भी बना सकते थे।