बिहार विधानसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 अक्तूबर से चुनावी सभाएं शुरू करने जा रहे हैं। सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि चुनाव में मोदी फैक्टर कितना असरदार रहेगा। पिछले चुनाव में नीतीश कुमार भाजपा के खिलाफ खड़े थे और तमाम प्रयासों के बावजूद मोदी फैक्टर भाजपा के लिए कारगर नहीं रहा था, लेकिन इस बार स्थितियां उलट हैं। इस बार मोदी नीतीश कुमार को फिर से मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोट मांगेंगे।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक पिछला चुनाव 2015 में हुआ था, उस समय मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी। नीतीश कुमार ने राजद के साथ मिलकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा और जीतने में सफल रहे। मोदी की छवि बिहार चुनावों में तब कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई।
अकेले सत्ता में आना मुश्किल
राजनीतिक विश्लेषक सीएसडीएस के संजय कुमार कहते हैं कि बिहार में कोई पार्टी अकेले सत्ता में नहीं आ सकती है। यानी तीन में से दो बड़े दलों को एक साथ मिलना होगा, इसलिए इस बार स्थितियां जुदा हैं। दो बड़े नेता एक साथ आए हैं। एक चेहरा बिहार का है। एक पूरे देश का। यह स्पष्ट है कि दोनों के एक साथ आने से चुनाव में फायदा होगा। पिछले अनुभवों से स्पष्ट है कि विधानसभा चुनावों में अकेले मोदी का इतना असर नहीं है कि पार्टी को जिता सकें। हालांकि, यह सबने देखा है कि लोकसभा चुनावों में मोदी के नाम का असर होता है। बिहार में भी हुआ।
संजय कुमार के अनुसार, नीतीश एवं मोदी के एक साथ मैदान में होने से राजग को फायदा होगा। इसकी दो वजह हैं। मोदी एवं नीतीश दोनों की अपनी लोकप्रियता है। दूसरे, मोदी की वजह से नीतीश कुमार के खिलाफ उत्पन्न सत्ता विरोधी लहर कमजोर पड़ती दिख रही है। यदि नीतीश अकेले लड़ते तो उन्हें सत्ता विरोधी लहर का सामना कहीं ज्यादा करना पड़ सकता था। यह तो स्पष्ट है कि दोनों दलों के मिलने से साफ है कि राजग को फायदा हो रहा है। हालांकि, किसका असर कितना है, यह बता पाना मुश्किल है।
जिन सीटों पर भाजपा चुनाव लड़ रही है, वहां भी पार्टी का असली चेहरा नरेंद्र मोदी ही हैं। यानी जो भी हासिल होगा, वह मोदी के चेहरे पर ही होगा। हालांकि, इस मामले में मुस्लिम वोटों के जद यू से छिटकने, लोजपा उम्मीदवारों के खड़े होने से भी चुनावों पर कहीं-कहीं असर पड़ेगा। यह कितना असर डालेगा, अभी कहना मुश्किल है।