चीन के साथ सीमा पर तनाव कम करने की कोशिश के बावजूद भारत चीन की हर चाल का कूटनीतिक स्तर पर जबरदस्त जवाब देने में जुटा है। मलक्का को लेकर भारत खास रणनीति पर काम कर रहा है। अगर चीन ने चालबाजी की तो भारत उसकी दुखती रग को छेड़ने से नहीं चूकेगा।
मलक्का रूट के जरिए चीन का बड़े पैमाने पर व्यापार होता है। उसकी 80 फीसदी ऊर्जा जरूरत इसी मार्ग से पूरी हो सकती है। वह अरब देशों से इसी रास्ते तेल मंगाता है। भारत मलक्का रूट को अवरुद्ध कर दे तो चीन को व्यापार के मोर्चे पर बड़ा झटका लग सकता है।
भारत और उसके सामरिक सहयोगियों को पता है कि चीन की सबसे बड़ी घेराबंदी मलक्का में हो सकती है। लिहाजा क्वाड के सहयोगी देश भारत को इस इलाके में अपनी रणनीतिक लामबंदी में मदद कर रहे हैं। क्वाड देशों ने समुद्री मार्ग में चीन के प्रभाव को कम करने को लेकर चर्चा भी की है।
भारत के साथ मुखर तरीक़े से अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं। ऑस्ट्रेलिया पहले नरम था, लेकिन अब वह पूरी आक्रामक रणनीति के साथ चीन के खिलाफ मोर्चेबंदी में शामिल है। इजरायल जरूरत पड़ने पर भारत को लॉजिस्टिक मदद कर सकता है। फ्रांस ने भारत के पैरोकार के रूप में लगभग वह जगह ली है, जो कभी रूस की हुआ करती थी। दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागिरी से परेशान आसियान देश भी धीरे-धीरे भारत के पक्ष में खड़े हो रहे हैं। पिछले दिनों आसियान ने चीन के खिलाफ काफी सख्त बयान दिया था। ब्रिटेन भी पिछले दिनों भारत के साथ आया है।
रूस भारत को हथियार की सप्लाई में मदद कर रहा है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि वह चीन के खिलाफ़ मोर्चेबंदी का हिस्सा नहीं होगा। उसका रुख तटस्थ है। ईरान को लुभाने की कोशिश चीन कर रहा है। चीन ईरान से उसका पूरा तेल खरीदने का वादा करके भारत को दोहरा झटका देना चाहता है। भारत की चाबहार परियोजना पर भी चीन की बुरी निगाह है,लेकिन पुराने संबंधों के चलते भारत को उम्मीद है कि ईरान उसके खिलाफ काम नहीं करेगा। उसका रुख भी तटस्थ होगा। भारत ने हिंद महासागर में अपना सर्विलांस भी बढ़ाया है। अंडमान में अपनी तैयारियों को पुख्ता किया गया है।
पिछले तीन साल में भारत और जापान ने मिलकर 15 बार दक्षिण चीन सागर में साझा अभ्यास किया है, लेकिन इस बार चीन के साथ तनाव के बीच मलक्का जलडमरूमध्य के पास अभ्यास किया गया था। सूत्रों का कहना है ये चीन को सीधा कूटनीतिक संकेत है कि भारत समुद्री क्षेत्र में खासतौर पर मलक्का में ड्रैगन को जवाब दे सकता है।
भारत की स्पष्ट रणनीति कूटनीतिक हांगकांग और ताइवान के मुद्दे पर चीन को घेरने की है। ताइवान में खास रणनीति के तहत ही गौरांग लाल दास को दूत बनाया गया, जो विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव के तौर पर भारत अमेरिका संबंध देखते रहे हैं। वियतनाम से भी रिश्तों पर फोकस किया जा रहा है।