महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को पूरा वेतन देने के केंद्र कि अधिसूचना पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मामले में कोर्ट 12 जून को फैसला सुनाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तब तक उन फैक्टरी वालों/नियोक्ताओं पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं होगी, जिन्होंने श्रमिकों को वेतन नहीं दिया है। कोर्ट ने कहा कि तीन दिनों में सभी पक्ष अपनी लिखित दलीलें दाखिल कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के 29 मार्च के अधिसूचना को लेकर कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। साथ ही कई फैक्टरियों व उद्योगों की ओर से याचिका दाखिल कर इस अधिसूचना को चुनौती दी गई है। इस अधिसूचना में केंद्र ने कहा था कि नियोक्ता मजदूरों का वेतन दें और काम कर नहीं आने कर उनका वेतन न काटा जाए। लेकिन केंद्र सरकार ने अब कोर्ट में रुख बदल लिया और कहा कि लॉकडाउन अवधि के दौरान श्रमिकों को मज़दूरी का भुगतान नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच का मामला है। केंद्र सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी।
केंद्र का कहना है कि इसने मजदूरों के कार्यस्थल से उनके घरों के लिए पलायन रोकने के लिए मजदूरी का पूरा भुगतान करने का आदेश दिया था। केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि हम चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था फिर से शुरू हो। यह नियोक्ताओं और कर्मचारियों पर है कि वे आपस में बातचीत करें कि लॉकडाउन अवधि के लिए कितने वेतन का भुगतान किया जा सकता है।
जस्टिस अशोक भूषण और एस के कौल की पीठ ने कहा कि सरकार ने औद्योगिक विवाद अधिनियम के प्रावधानों को लागू नहीं किया है, बल्कि आपदा प्रबंधन अधिनियम को लागू किया है। क्या सरकार के पास इस तरह का आदेश जारी करने का अधिकार है कि मजदूरों को पूरा वेतन दिया जाए। भुगतान करने की आवश्यकता 50 प्रतिशत हो सकती है, लेकिन केंद्र ने 100 प्रतिशत भुगतान करने का निर्देश दिया है। ये समझौता उद्योगवार हो सकता है, लेकिन 100 प्रतिशत देना संभव नहीं हो सकता।
कोर्ट ने सरकार से पूछा कि ई एस आई फंड का इस्तेमाल प्रवासी/ अन्य मजदूरों के हित में किया जा सकता है। वेणुगोपाल ने कहा कि उस फंड का इस्तेमाल रिटायरमेंट के बाद की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए होता है। उस फण्ड को रिडायरेक्ट नहीं कर सकते। लेकिन कर्मचारी उससे कर्ज ले सकता है।