आलोक वर्मा, जौनपुर ब्यूरो,
जिला अस्पताल सवालों के घेरे में
बदहाल व्यवस्था से लोग परेशान
जौनपुर। अमर शहीद उमानाथ सिंह जिला अस्पताल को पूर्णरूप से सुनियोजित तरीके से सभी सुविधाओं से सुसज्जित होना बताकर यहां के अधिकारी व कर्मचारीगण अपनी पीठ थपथपवा लेते हैं जबकि सच्चाई इनके जुमलों से कोसों दूर है। सूत्रों की मानें तो आए दिन इलाज के दौरान होने वाली मौत की लाश को ले जाने के लिए कोई भी और किसी प्रकार से सहयोग नहीं दिया जाता है। घटना 3 मार्च दिन बुधवार की है। मरीज नंदू ग्राम बीबीपुर निवासी की तबियत बिगड़ी और उन्हें सही और बेहतर इलाज हेतु जिला अस्पताल लाया गया।
देखा गया कि डॉक्टर ने उनके इलाज संभव नहीं है, बताकर बीएचयू रेफर कर दिया परन्तु उन्हें ले जाने की कोई भी सुविधा मुहैया नहीं कराई गई। ऐसे में वार्ड नर्स और कर्मचारियों ने स्ट्रेचर से द्वितीय तल से नीचे पहुंचने के लिया स्पष्ट रूप से मना कर दिया, फिर एंबुलेंस सेवा क्यों मुहैया कराते? मजबूरन मरीज के तीमारदार अकेले ही स्ट्रेचर से अपने मरीज को नीचे लाने का अथक प्रयास कर रहा था तभी वजन न संभाल पाने के कारण स्ट्रेचर ढाल पर तेजी से भागने लगा तभी वह मौजूद पत्रकार अजय पांडेय ने सहयोग कर मरीज को नीचे लाये। इतना ही नहीं, एम्बुलेंस सेवा न मिलने पर निराश होकर अपने मरीज को ई रिक्शा से बैठाकर ईश्वर का नाम लेकर बिलखते हुए घर ले गये। काफी निरीह और निर्धन होने के कारण हताश और निराश होकर चले गये। इसी प्रकार की घटनाएं जिला अस्पताल में आए दिन घटती है। यहां तक कि शव को अपने कंधे पर ले जाते हुए भी देखा गया है। इस प्रकार सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्वास्थ विभाग और उनकी समस्त योजनाएं खोखली साबित हो रही है।
सूत्रों की मानें तो यहां इलाज के नाम पर मरीजों से अच्छी खासी कमाई भी की जाती है। सवाल है कि मरता क्या न करता। फिर सरकार और उनके नुमाइंदे झूठा प्रचार प्रसार कराकर जनमानस को गुमराह क्यों किया जाता है। भोली—भाली जनता गरीब, असहाय लोगों को सही इलाज संभव हो सके, इसके लिए दूर दराज से इलाज कराने आते तो है फिर यहां के मकड़जाल में फंसाकर कर उनसे धनऊगाही का कार्य किया जाता हैं। क्यों नहीं औचक निरीक्षण कर जिम्मदार लोग इस पर विचार कर ठोस कदम उठाते? क्या इसे माना जाय कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से उच्चस्थ अधिकारी तक इस खेल में संलिप्त है। सूचना पर आते हैं बड़े अधिकारी जिन्हें दिखाने के लिए अस्पताल के अधिकारी और कर्मचारी सराफत और मानव सेवा का अच्छा खेल दिखाकर अपनी पीठ थपथपा लेते हैं लेकिन अंदर मरीज और उनके परिजनों को किस प्रकार का दंश झेलना पड़ता है। जिला अस्पताल में यह जिम्मेदारों की आंखों से दिखाई नहीं पड़ता है।