पूरी दुनिया कोरोना वायरस वायरस (कोविड-19) के संकट से जूझ रही है। इसके साथ ही इस बीमारी पर काबू पाने के लिए कई देश वैक्सीन बनाने मे जुटे हैं। भारत भी उन्हीं में से एक हैं, हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना के लिए वैक्सीन को बनाने का काम देश में अभी शुरुआती स्तर पर ही है और उसे पूरी तरह से तैयार होने में एक साल से ज्यादा का वक्त लग सकता है।
केंद्र सरकार और निजी कंपनियां कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए वैक्सीन विकसित करने में लगी हैं। वहीं, पीएम केयर्स फंड ट्रस्ट ने फैसला किया है कि कोरोना वायरस वैक्सीन को विकसित करने की कोशिश में 100 करोड़ रुपए आवंटित किए जाएंगे। भारत में इस वायरस की वजह से अब तक कुल 3,700 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि संक्रमित मरीजों की तादाद 1,25,000 से ज्यादा है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना वायरस के इलाज के लिए तैयार प्रायोगिक टीके का परीक्षण अगले चरण में पहुंच रहा है और सफल होने पर इसे दस हजार से अधिक लोगों को लगाने की तैयारी की जा रही है। उल्लेखनीय है कि पिछले महीने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने प्रायोगिक टीके का प्रभाव और सुरक्षा की जांच करने के लिए एक हजार से अधिक स्वयंसेवकों पर परीक्षण की शुरुआत की थी। वैज्ञानिकों ने शुक्रवार (22 मई) को घोषणा की कि उनकी योजना अब पूरे ब्रिटेन में बच्चों और बुजुर्गों सहित 10,260 लोगों पर इस टीके का परीक्षण करने की
कोरोना संकट से जूझ रही पूरी दुनिया के लिए चीन से अच्छी खबर आई है। अमेरिकी दवा कंपनी मोडेर्ना द्वारा कोविड-19 वैक्सीन के पहले फेज के सफल ट्रायल की घोषणा के बाद अब शुक्रवार को शोधकर्ताओं ने कहा कि चीन में विकसित एक वैक्सीन सुरक्षित लगती है और लोगों को खतरनाक कोरोना वायरस से बचा सकती है। क्लिनिकल ट्रायल के पहले चरण तक पहुंचने वाला कोविड-19 का पहला टीका मनुष्यों के लिए सुरक्षित, सहनीय और कोरोना वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक प्रतिक्रिया उत्पन्न करने में सक्षम है। ‘द लांसेट पत्रिका’ में प्रकाशित एक नए अनुसंधान में यह दावा किया गया है। 108 वयस्कों पर किए गए इस अध्ययन के मुताबिक, इस टीके ने सार्स-सीओवी-2 को खत्म करने वाले एंटीबॉडी पैदा किए और रोग प्रतिरोधक तंत्र की टी-कोशिकाओं की मदद से प्रतिक्रिया उत्पन्न की।