सरकार विरोधी वोट की दावेदारी में अखिलेश और मायावती

ब्यूरो,

अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी दो दशक पुरानी रार भुलाकर पिछले लोकसभा चुनाव में गठबंधन किया और एक साथ मिलकर भाजपा के खिलाफ हुंकार भरी थी। अब पांच साल बाद दोबारा चुनाव करीब आया तो दोनों एक-दूसरे पर हमलावर हैं। सरकार विरोधी वोटों पर कब्जा करने के लिए एक-दूसरे को भाजपा की बी-टीम बताया जा रहा है। सपा जहां विपक्ष के इंडिया एलायंस का हिस्सा है तो वहीं बसपा ने सत्ता पक्ष और विपक्षी, दोनों गठबंधनों से दूरी बनाते हुए अकेले ही मैदान में उतरने की तैयारी कर रखी है।

सपा-बसपा के बीच वार-पलटवार का ताजा दौर दो दिन पहले अखिलेश यादव के बयान के बाद शुरू हुआ। अखिलेश ने मायावती के इंडिया गठबंधन में शामिल होने की संभावना पर पूछे गए सवाल पर कहा कि चुनाव बाद की गारंटी कौन लेगा। अखिलेश का इशारा साफ था। इसी के बाद मायावती ने इसका जवाब एक्स पर दिया। मायावती ने लिखा कि अपनी व अपनी सरकार की दलित-विरोधी आदतों, नीतियों और कार्यशैली से मजबूर सपा प्रमुख द्वारा बीएसपी पर तंज कसने से पहले अपने गिरेबान में भी झांककर देख लेना चाहिए। उनका दामन भाजपा को बढ़ाने व उनसे मेलजोल के मामले में कितना दागदार है।

मायावती ने अखिलेश के साथ ही उनके पिता और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव पर भी भाजपा का करीबी बता दिया। कहा कि सपा प्रमुख द्वारा भाजपा को संसदीय चुनाव जीतने से पहले और बाद आर्शीवाद दिए जाने को कौन भुला सकता है। और फिर भाजपा सरकार बनने पर उनके नेतृत्व से सपा नेतृत्व का मिलना-जुलना जनता कैसे भुला सकती है।

मायावती ने यह भी कहा कि सपा अति-पिछड़ों के साथ-साथ जबरदस्त दलित-विरोधी पार्टी भी है। बीएसपी ने पिछले लोकसभा आमचुनाव में सपा से गठबन्धन करके इनके दलित-विरोधी चाल, चरित्र व चेहरे को थोड़ा बदलने का प्रयास किया। लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद ही सपा फिर से अपने दलित-विरोधी जातिवादी एजेण्डे पर आ गई।

अब सपा मुखिया जिससे भी गठबंधन की बात करते हैं उनकी पहली शर्त बसपा से दूरी बनाए रखने की होती है। इसे मीडिया भी खूब प्रचारित करता है। वैसे भी सपा के 2 जून 1995 (गेस्ट हाउस कांड) सहित घिनौने कृत्यों को देखते हुए व इनकी सरकार के दौरान जिस प्रकार से अनेकों दलित-विरोधी फैसले लिये गये हैं। वैसे सपा और बसपा का इतिहास गठबंधन के साथ-साथ तकरार का भी रहा है। 2019 में भाजपा से मुकाबला करने के लिए एकजुट हुए लेकिन 80 में से केवल 15 (बसपा 10 और सपा 5) जीतने में सफल रहे। भाजपा ने 62 सीटें जीतीं। इसके बाद बसपा गठबंधन से बाहर हो गई और अकेले चुनाव लड़ी।

दोनों पार्टियों के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए पिछले उदाहरणों से अपनी बातों को सही साबित करने की कोशिश करते हैं। सपा नेता का कहना है कि बसपा ने कभी भी किसी भी नीति को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार या योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को निशाने पर नहीं लिया है। उनकी (मायावती की) टिप्पणियां भाजपा को अपने कामकाज में सुधार लाने के सुझाव के रूप में सामने आती हैं।

सपा के राष्ट्रीय प्रवक्त राजेंद्र चौधरी बसपा के इंडिया एलायंस में शामिल होने के कयासों को सिरे से इनकार करते हुए दावा किया कि हाल के चुनावों में बसपा ने भाजपा की मदद करने और विपक्ष की हार सुनिश्चित करने की रणनीति अपनाई है। उदाहरण देते हुए कहा कि 2021 के विधानसभा चुनावों में बसपा ने 100 से अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। इसके कारण सपा के वोट बंट गए और अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को मदद मिली।

इसी तरह आजमगढ़ के उपचुनाव में भी बसपा ने शाह आलम उर्फ ​​​​गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा और सपा के वोटों में सेंधमारी कर भाजपा को जीतने में मदद की थी। इसी तरह एक अन्य सपा नेता ने कहा कि बसपा ने राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव में एएनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया था। दूसरी ओर, दिसंबर 2022 में मैनपुरी लोकसभा और रामपुर विधानसभा उपचुनाव के नतीजों के बाद मायावती ने मुसलमानों को भविष्य के चुनावों में धोखा देने के प्रति चेतावनी दी थी। रामपुर में कम मतदान को योजनाबद्ध बताते हुए बसपा प्रमुख ने आश्चर्य जताया कि क्या मैनपुरी में सपा की जीत और आज़म खान के गढ़ रामपुर में उसकी हार सपा और भाजपा के बीच मिलीभगत का परिणाम थी।

एक अन्य एसपी नेता ने कहा कि कैसे बीएसपी ने संसद में बीजेपी पर हमले के लिए अमरोहा के सांसद दानिश अली को निलंबित कर दिया था। उन्होंने कहा कि पिछले साल मई में जब 20 से अधिक विपक्षी दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार किया तो बसपा प्रमुख ने इसका स्वागत किया था। सपा प्रमुख ने बसपा पर भाजपा के साथ मिलीभगत का आरोप लगाते हुए पिछले साल कहा था कि 2022 के उपचुनाव के लिए बसपा के उम्मीदवारों का फैसला सपा को जीतने से रोकने के लिए भाजपा के कार्यालय में किया गया था।

इस बीच, बीएसपी के यूपी अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने एसपी के आरोपों को खारिज करते हुए 2017 में आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण में अखिलेश और मुलायम की उपस्थिति पर सवाल उठाया। कहा कि बहनजी (मायावती) ने कभी भी भाजपा को समर्थन नहीं दिया है। पाल ने कहा कि यह भाजपा ही थी जिसने बसपा को समर्थन दिया और गठबंधन में सरकार चलाते समय अपनी विचारधारा से समझौता नहीं किया। मुख्यमंत्री के रूप में मायावती के चार कार्यकालों में से दो कार्यकाल भाजपा के समर्थन से थे।

इसके विपरीत, बसपा यूपी प्रमुख ने कहा कि सपा ने घोसी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस से समर्थन मांगा, जबकि उसने बागेश्वर में उनके खिलाफ एक उम्मीदवार खड़ा किया। इससे पता चलता है कि बागेश्वर में सपा और भाजपा आपस में मिले हुए थे। उन्होंने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी पहले से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारे। उन्होंने विश्वास जताया कि बसपा आगामी लोकसभा चुनाव में इंडिया एलायंस और एनडीए दोनों को हरा देगी। कहा कि पार्टी राज्य की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।

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