ब्यूरो,
हम 1500 किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलकर यहां तक पहुंचे हैं। 47 दिन तक चलते रहे। रोज कम से कम 35 किमी चलते थे। रास्ते में कभी कोई गाड़ी नहीं ली, न ही कोई टेम्पो लिया। जहां जगह मिल जाती, वहीं रात गुजार लेते थे।’ सुकुलाल मरांडी ये बताते हुए चुप हो जाते हैं। करीब डेढ़ महीने पैदल चलने की थकान उनके चेहरे पर नहीं है। हां, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलने की उम्मीद की चमक उनकी आंखों में जरूर नजर आती है।
सुकुलाल उन 5 लोगों में से एक हैं, जो ओडिशा के मयूरभंज से पैदल चलकर दिल्ली पहुंचे हैं। मयूरभंज वही जगह है, जहां राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पैदा हुई थीं। राष्ट्रपति का घर मयूरभंज के गांव ऊपरबेड़ा में है।
सुकुलाल मजबूती से कहते हैं- ‘जब तक राष्ट्रपति हमसे नहीं मिलतीं, हम नहीं लौटेंगे। हम चाहते हैं कि मयूरभंज को अलग राज्य का दर्जा दिया जाए।’ सुकुलाल और उनके साथी राष्ट्रपति भवन से महज 4.5 किमी दूर बड़ौदा हाउस बस स्टॉप में बीते 3 दिन से रुके हुए हैं।