मोबाइल के अधिक प्रयोग से बच्चों में तेजी से बढ़ रही आटिज्म की बीमारी

ब्यूरो,

मोबाइल के अधिक प्रयोग से बच्चों में तेजी से बढ़ रही आटिज्म की बीमारी
मोबाइल का ज्यादा प्रयोग करने वाले बच्चों में आटिज्म की बीमारी तेजी से बढ़ रही है। वह मोटापा, हाईपरटेंशन जैसी बीमारियां का भी शिकार हो रहे हैं। बच्चों को लाइफस्टाइल डिसआर्डर हो जाता है। इतना ही नहीं मोबाइल को बहुत पास रखकर देखते हैं तो आंखों पर असर पड़ता है। उनकी पास और दूर दोनों की दृष्टि कमजोर पड़ सकती है।
ऑटिज्म विकास से संबंधित एक विकलांगता है जो बच्चे के सोशल, कम्युनिकेशन और बिहेवियर स्किल्स को कई तरह से प्रभावित करती है। विश्व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार विश्वि स्तर पर 160 में से एक बच्चे को ऑटिज्म होता है।
ऑटिज्मस का कोई एक कारण नहीं है । ऐसा माना जाता है कि पर्यावरणीय और जेनेटिक कारणों के मेल से ऐसा होता है। अक्सर दो या तीन साल की उम्र से बच्चे में ऑटिज्मस के संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं। ऑटिज्मस का कोई इलाज नहीं है लेकिन इस स्थिति को सुधारने के लिए कई प्रभावशाली तरीके मौजूद हैं।
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ऑटिज्मस के यह हैं लक्षण:-
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार एक साल के होने से पहले ही बच्चेे में ऑटिज्मस के संकेत मिलने शुरू हो सकते हैं। ज्यादा साफ संकेत दो या तीन साल की उम्र से पहले ही दिखने लग जाते हैं। ऑटिज्म तीन चीजों को प्रभावित करता है – सोशल स्किल्स, कम्यूनिकेशन स्किल्स और बिहेवियर स्किल्स। ऑटिज्म से ग्रस्त तीन साल के बच्चे में सोशल स्किल्स की कमी देखी जाती है। इसमें बच्चा अपना नाम सुनकर प्रतिक्रिया नहीं देता, आंखों में आंखें डालकर बात नहीं करता, अपनी चीजों को दूसरों से शेयर नहीं करता, अकेले खेलता है, उसे दूसरों से बात करना पसंद नहीं है, फिजीकल कॉन्टैक्ट से बचता है, चेहरे पर अजीबो-गरीब हाव-भाव होना और अपनी भावनाओं को व्यक्‍त नहीं कर पाता है।
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तीन साल के बच्चे में लैंग्वेज और कम्यूनिकेशन स्किल्‍स में ऑटिज्म के निम्न संकेत दिखाई दे सकते हैं

• बोलना देरी से सीखना

• किसी शब्दी या वाक्य को दोहराना

• सवालों के गलत जवाब देना

• दूसरों की बात को दोहराना

• पसंद की चीजों को प्वााइंट ना करना

• गुड बाय कहना या हाथ हिलाने जैसी कोई प्रतिक्रिया ना देना

• मजाक ना समझ पाना

ऑटिज्मा से ग्रस्त होने पर तीन साल के बच्चे में निम्न संकेत मिल सकते हैं :

• खिलौनों और चीजों को काफी संभालकर रखना।

• रोजमर्रा की जिंदगी में छोटा-सा बदलाव करने पर भी दुखी हो जाना।

• बार-बार एक ही काम करना।

• किसी एक ही चीज या खिलौने से खेलना।

• गुस्सा दिखाना।

• खुद को नुकसान पहुंचाना।

• बहुत ज्यादा नखरे दिखाना।

• कुछ परिस्थितियों में डर ना लगना।

• समय पर ना सोना और ना खाने का सही समय होना।
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क्या है वर्चुअल ऑटिज्म:-
वर्चुअल ऑटिज्म मुख्य तौर पर 4 से 5 साल तक की उम्र के बच्चों में दिखता है। ऐसा अक्सर उनके मोबाइल फोन, पीसी या फिर कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की लत के कारण होता है। स्मार्टफोन का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग, लैपटॉप और टीवी पर ज्यादा से ज्यादा पिक्चर देखना जैसी समस्याओं के कारण बच्चों को बोलने में दिक्कत और समाज में दूसरे लोगों के साथ बातचीत करने में परेशानी महसूस होने लगती है।

बच्‍चों के याददाश्‍त पर पड़ता है असर
मोबाइल फोन, टीवी पर कार्टून, किड्स शोस और दूसरे प्रोग्राम देखने से बच्चों की याददाश्त पर प्रभाव पड़ता है। और तो और जो बच्चे टीवी पर देखते हैं उसे ही दोहराते हैं बिना जाने कि उसका मतलब क्या है यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इसलिए परिजनों को अपने बच्चों से कहना चाहिए कि वह ज्यादा से ज्यादा शारीरिक गतिविधियों में शामिल हो और दिन में कम से कम 45 मिनट ही मोबाइल चलाएं
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तेजी से बढ़े हैं साइबर क्राइम जैसे अपराध
वैश्विक महामारी कोरोना ने पूरे विश्व को डिजिटल युग की तरफ धकेल दिया है , इसलिए सभी माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों के मोबाइल फोन लैपटॉप कंप्यूटर पर बिताए जाने वाले समय को कंट्रोल करें क्योंकि साइबर क्राइम जैसे अपराध भी बहुत तेजी से बढ़े हैं। माता-पिता को अपने बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए और उन्हें कार्टून यूट्यूब और दूसरे सोशल प्लेटफॉर्म से दूरी बनाने के लिए कहना चाहिए।
डॉक्टर मुकेश शुक्ल
बाल रोग विशेषज्ञ, तीर्थराज हॉस्पिटल, जौनपुर।

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