लेखक: ऐश्वर्या शर्मा
इंटरनेशनल राइटर शेरॉन ब्लैकी ने पिछले साल ‘Hagitude: Reimagining the Second Half of Life’ नाम की किताब लिखी। ‘हैगीट्यूट’ की शुरुआत में उन्होंने लिखा कि ‘मैं समाज को दिखाई न दूं, ऐसा कोई मेरा इरादा नहीं है। मैं हूं और आगे भी एक्टिव रहूंगी। मैं हर असहज हालात का सामना करने को तैयार हूं।’
ये असहज हालात क्या हैं? तो यहां हम आपको बता दें कि शेरॉन का इशारा ‘मेनोपॉज’ की तरफ है जिसे हमारा समाज ‘रजोनिवृति’ कहता है। या आम औरत इसे ‘महीने का रुकना’ कहकर बात करती है और समाज ये मानकर चलता है कि पीरियड्स का ना होना स्त्री के ठप हाेने का समय है।
अंग्रेजी का शब्द ‘ओल्ड हैग’, जो अक्सर अधेड़ उम्र की महिलाओं को नीचा दिखाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, उस शब्द को शेरॉन ने बदलकर ‘हैगीट्यूट’ नाम दिया और नए शब्द में जान डाल दी। यानी वो अधेड़ महिला जो पूरी जिंदादिली और टशन के साथ बढ़ती उम्र का लुत्फ उठाती है। आज बात उसी मेनोपॉज पर करते हैं।
समाज स्त्री को हर तरह के डर का वातावरण देता है। जिसमें मेनोपॉज का डर भी शामिल है। इस डर को दूर भगाना बेहद जरूरी है। क्योंकि यह उम्र का वही पड़ाव है जब एक महिला हर महीने होने वाले पीरियड्स, उसके दर्द और समाज की रोक-टोक से मुक्त हो जाती है।
यूं तो मेनोपॉज एक नेचुरल प्रोसेस है। हर स्त्री एक उम्र के बाद इस स्थिति से गुजरती है। ये दादी-नानी के साथ हुआ, मां के साथ भी हुआ और हर स्त्री इस असहज स्थिति से गुजरेगी।
लेकिन क्या इसके बाद औरत वाकई ठप हो जाती है? हमारी सोसायटी बढ़ती उम्र को पसंद भी करती है और उससे डरती भी है। लेकिन क्या स्त्री को भी उम्र से डर लगता है?
सीनियर साइकोलॉजिस्ट डॉ. अवनि तिवारी कहती हैं कि बढ़ती उम्र की महिलाओं को हमारा समाज ध्यान देने योग्य नहीं समझता। इस उम्र की महिलाओं को इग्नोर करना और उनकी खिल्ली उड़ाना आम बात है। क्योंकि उन्हें हंसी का पात्र समझा जाता है और इस सोच को हमारे समाज ने ही बढ़ावा दिया है।
गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. माला पाठक के अनुसार ‘जब स्त्री के पीरियड्स बंद होने लगते हैं तो यह एक असुविधाजनक स्थिति होती है। इसमें वह शारीरिक रूप से तैयार नहीं होती, लेकिन मानसिक रूप से तैयार होती है। वह जानती है कि ऐसा एक दिन तो होना ही है।’
मेनोपॉज की स्टेज में पहुंचने पर एक स्त्री का शरीर कैसा अनुभव करेगा और वह खुद कैसा महसूस करेगी, इसका उसे अंदाजा नहीं होता। वह इस स्थिति में उस अनिश्चितता के बीच खिंची रहती है और हमारा समाज उसे असमर्थ करार कर देता है। जबकि पीरियड्स की जरूरत और कनेक्शन सिर्फ बच्चे पैदा करने से ही होता है।
डॉ. अवनि तिवारी कहती हैं कि मेनोपॉज के दौरान शरीर में होता हॉर्मोंस का उत्पात उसे गुस्सैल, चिड़चिड़ा और खुद से नाराज बनाता है। लेकिन ये समाज की ही सोच है जो स्त्री को इस समय ‘पगलाई चुड़ैल’ की तरह देखती है।
उसकी नाराजगी और गुस्सा न घर पर समझा जाता है और न बाहर। जबकि एंग्री मैन या गुस्सैल पुरुष को समाज मजबूत, ताकतवर और निर्णायक की स्थिति में देखता है।
अक्सर देखा जाता है कि स्त्री हमेशा दूसरों की जरूरतों पर ध्यान देती है बजाय इसके कि वह कभी अपनी जरूरतों पर भी ध्यान दे। मेडिकल मदद की बजाय वो अपने शरीर में हो रहे बदलावों से चुपचाप जूझती है, उनके साथ एडजस्ट करने की कोशिश करती है।
स्त्री के मन और शरीर की यह गुत्थमगुत्था लंबे समय तक चलती है।
उम्र के इस दौर में पहुंची स्त्री के लिए कहा जाता है कि इन तिलों में तेल नहीं लेकिन उम्र की कोई उम्र नहीं होती। भावनाओं पर कोई झुर्रियां नहीं पड़तीं। हां लेकिन सोच पर सिलवटें जरूर पड़ सकती हैं जो समाज में देखने को मिलती हैं।
अभी तक हमने मेनोपॉज के मन पर होने वाले असर को जाना, अब स्त्री शरीर में होने वाले बदलावों को भी समझते हैं।
डॉ. माला पाठक बताती हैं कि मेनोपॉज में हॉट फ्लैशेज का आना और पीरियड्स का चले जाना ही सिर्फ महसूस नहीं होता। शरीर से होकर जो कुछ गुजरता है उसका गहरा असर मन पर भी पड़ता है। उलझा-सा दिमाग, मनहूस-सी थकन, परेशान-सा मन, जोड़ों का दुखना, छाती में खिंचन और ना जाने क्या-क्या।
अमेरिका की फर्स्ट लेडी रहीं मिशेल ओबामा तक अपने हॉट फ्लैशेज पर खुलकर बोल चुकी हैं। जब वो मरीन-1 से ट्रैवल कर रही थीं, उन्होंने अपना उस वक्त का अनुभव शेयर करते हुए कहा था कि उन्हें ऐसा महसूस हुआ मानो उनके शरीर के अंदर कोई भट्टी पूरी आंच पर सुलग रही है।
कहते हैं औरत जल्दी बुढ़ाती है लेकिन फैसला हमारे दिमाग को करना है कि हम उम्र को कैसे स्वीकार करते हैं और उसे किस रंग रूप में ढालते हैं। स्त्री चाहे तो कड़वी सच्चाइयों को भूलकर जिंदगी को जीने और देखने का नजरिया बदल सकती है।
गुरुग्राम के क्लाउडनाइन हॉस्पिटल में गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. रितु सेठी कहती हैं कि मेनोपॉज एक अनछुआ विषय है। भारत में अधिकतर महिलाओं को 47 से 49 उम्र के बाद कभी भी मेनोपॉज दस्तक दे सकता है। अगर 1 साल तक पीरियड्स नहीं आएं तो मेनोपॉज माना जाता है। आम औरत और उसके परिवार के लिए पीरियड्स का ना होना ही मेनोपॉज है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि इससे ज्यादा कोई जानने की कोशिश ही नहीं करता कि मेनोपॉज क्या है और स्त्री किन शारीरिक और मानसिक स्थिति से गुजरती है। इसमें ओवरी ‘डेड’ हो जाती हैं यानी उसमें एस्ट्रोजन हॉर्मोन बनना बंद हो जाता है। इन्हीं हॉर्मोंस की वजह से हर महीने पीरियड्स आते हैं।
कई बार मेनोपॉज की वजह दवा या सर्जरी भी हो सकती है। अगर किसी महिला को कैंसर, टीबी या कोई जेनेटिक बीमारी हो तो कुछ दवाओं की वजह से ओवरी में एग बनने बंद हो जाते हैं। इसे इंड्यूज्ड मेडिकल मेनोपॉज कहा जाता है। वहीं, जब कुछ महिलाओं की मेडिकल कारण से ओवरी निकाल दी जाती है तो इसे सर्जिकल मेनोपॉज कहते हैं।
मेनोपॉज की 3 स्टेज होती हैं:
प्री मेनोपॉज: यह स्टेज 40 की उम्र के बाद शुरू होती है। इस समय रिप्रोडक्टिव हॉर्मोंस कम होने लगते हैं, जिस वजह से पीरियड्स अनियमित होते हैं।
पेरिमेनोपॉज: यह स्टेज तब तक चलेगी जब तक पीरियड्स पूरी तरह बंद नहीं हो जाते। अमेरिकन मेनोपॉज सोसायटी के अनुसार यह बदलाव का दौर 4 से 8 साल तक चल सकता है।
पोस्ट मेनोपॉज: इस स्टेज में ओवरी काम करना बंद कर देती है और पीरियड्स पूरी तरह रुक जाते हैं। 1 साल पीरियड्स नहीं आए तो डॉक्टर मान लेते हैं कि महिला का मेनोपॉज हो चुका है।
आपने भी आसपास ऐसी कई महिलाएं देखी होंगी जो 45 पार या फिर 50 की उम्र में प्रेग्नेंट हो जाती हैं। दरअसल मेनोपॉज से पहले पीरियड्स अनियमित होते हैं। यह पेरिमेनोपॉज की स्टेज होती है।
कभी-कभी 3-4 महीनों तक पीरियड्स नहीं होते। ऐसे में कई बार महिलाओं को लगता है कि उन्हें मेनोपॉज हो चुका है लेकिन पेरिमेनोपॉज की स्टेज में संबंध बनाए जाएं तो महिला प्रेग्नेंट भी हो सकती है। इसलिए डॉक्टर ये सलाह देते हैं कि पेरिमेनोपॉज स्टेज में सेफ सेक्स की ज्यादा जरूरत है क्योंकि ये सबसे संवेदनशील स्टेज होती है।
डॉ. रितु सेठी के अनुसार मेनोपॉज को सेक्स लाइफ का ‘दि एंड’ ना मानें। लेकिन इस दौरान महिलाएं मूड स्विंग से गुजरती हैं। इस स्टेज पर उनके अंदर संबंध बनाने की इच्छा में कमी आती है। संबंध बनाती हैं तो वह कष्टदायक होता है क्योंकि शरीर में एस्ट्रोजन नहीं बनता जिसकी वजह से प्राइवेट पार्ट में ड्राईनेस आ जाती है।
दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में गायनोकोलॉजिस्ट माला श्रीवास्तव के अनुसार मेनोपॉज के बाद हॉर्मोंस कम हो जाते हैं इसलिए यूरेथ्रल लाइनिंग सेंसिटिव होकर पतली होने लगती हैं। इससे यूटीआई यानी यूरिन इंफेक्शन की आशंका बढ़ जाती है।
मेनोपॉज के बाद महिलाओं को बार-बार यूरिन आने की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है। यूरिन को रोकना मुश्किल होता है क्योंकि पेल्विक फ्लोर मसल्स कमजोर हो जाती हैं।
मैक्स मल्टी स्पेशलिटी सेंटर, नई दिल्ली की डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. सोनी गुप्ता ने बताया कि महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन बहुत अहम रोल निभाता है। इसका लेवल कम होते ही शरीर में कई बदलाव देखने को मिलते हैं-
- स्किन ड्राई और बाल पतले होते हैं जिससे स्कैल्प दिखने लगती है। स्किन की ड्राइनेस दूर करने के लिए ओरल सप्लिमेंट्स जैसे विटामिन-ई और फिश ऑयल कैप्सूल खाने चाहिए।
- मेनोपॉज के दौरान एजिंग तेजी से होती है। इस समय महिलाएं डॉक्टर की सलाह से एंटी एजिंग ट्रीटमेंट ले सकती हैं।
- मेनोपॉज के दौरान आंखें ड्राई और ओरल कैविटी बढ़ सकती है। कैल्शियम का स्तर भी घटता है जिससे दांत कमजोर होने लगते हैं।
डॉ. मीरा पाठक ने 2 महिलाओं के मेनोपॉज के अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि एक महिला जब मेनोपॉज से गुजर रही थी तब उन्हें महसूस होता था कि उनकी त्वचा पर कीड़ा रेंग रहा है। इससे वह चिड़चिड़ी हो जाती थीं। यह उन्हें कभी रात में तो कभी दिन में महसूस होता। कई बार उन्हें तेज दर्द भी होता, लेकिन यह केवल फिजिकल सेंसेशन थी जिसे ‘टैक्टाइल हैल्यूसिनेशन’ (tactile hallucination) कहते हैं।
दूसरी महिला के अनुभव के बारे में वह कहती हैं कि मेनोपॉज में उनकी जीभ जलती और कानों में घंटी बजने की आवाज आती। दरअसल इस दौरान मुंह सूखता है जिससे कुछ भी खाओ तो लगता है कि जीभ जल रही है और कान में घंटी, घड़ी की सूई या फोटो क्लिक करने जैसी आवाज इसलिए आती है। क्योंकि इस समय हॉर्मोंस के स्तर में उतार-चढ़ाव होता है जो कानों को सुनाई देता है।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि किसी महिला को मेनोपॉज किस उम्र में होगा, यह उनकी मां पर निर्भर करता है। गायनोकोलॉजिस्ट मानते हैं कि मेनोपॉज का समय कब आएगा काफी हद तक महिला की मां और बड़ी बहन के मेनोपॉज के आधार पर जाना जा सकता है।
अधिकतर महिलाओं के मेनोपॉज उसी उम्र के आसपास होते हैं जब उनकी मां या बड़ी बहन के हुए हों। यानी मेनोपॉज जेनेटिक भी होते हैं। इसलिए अगर किसी महिला को जानना है कि उनका मेनोपॉज कब होगा तो वह अपनी मां या बड़ी बहन से उनकी मेनोपॉज की उम्र पूछ सकती हैं।
स्त्री नहीं बदलती लेकिन समाज सोचता है कि स्त्री बदल गई। जबकि उसके अंदर बनने वाले हॉर्मोंस कुदरती बंद हो जाते हैं। जो कुदरत महिला को प्रेग्नेंसी का सुख देती है, वही कुदरत उसे आराम से जिंदगी बसर करने का हक भी देती है।
लेकिन इस हॉर्मोन के नहीं होने के साइड इफेक्ट्स भी हैं। स्किन की चमक खोना, ड्राईनेस, बाल, हाथों और एड़ियों का रफ होना।
आज मेनोपॉज को लेकर ब्यूटी प्रोडक्ट इंडस्ट्री की आंखें खुली हैं। अभी तक इनका फोकस ब्यूटी चमकाने पर था। अब बाजार एंटी एजिंग प्रोडक्ट्स बनाकर उम्रदराज स्त्री की नेचुरल ब्यूटी बरकरार रखने के वादे भी करने लगा है।
इसमें हेयर प्रोडक्ट्स से लेकर स्किन केयर क्रीम तक शामिल हैं। खासकर स्किन के हाइड्रेशन के लिए सीरम, एंटी एजिंग क्रीम, आई थेरेपी, स्किन इलास्टिसिटी के लिए नाइट क्रीम, बालों के पतलेपन या झड़ने से रोकने के लिए शैंपू, कंडीशनर भी शामिल हैं।
2021 में मेनोपॉज और एंटी एजिंग इंडस्ट्री 12 हजार करोड़ रुपए की थी। एंटी एजिंग प्रोडक्ट्स की कीमत 1 हजार रुपए से शुरू होती है।
भारत में हर साल 15 करोड़ महिलाएं मेनोपॉज से गुजरती हैं लेकिन कोई इस पर बात नहीं करना चाहता। खुद महिलाएं भी इस टॉपिक पर चुप्पी साध लेती हैं। यह वह दौर होता है जब महिला खुद से विश्वास खो बैठती है, टूट जाती है, दुखी रहती है क्योंकि उसे डिप्रेशन घेर रहा होता है।
वहीं, मर्द सोचते हैं कि अब उनकी पत्नी किसी काम की नहीं रही क्योंकि उनके दिमाग में औरत वही है जिसे पीरियड्स होते हैं और जो प्रेग्नेंसी के लिए सक्षम होती है। मेनोपॉज के बाद पुरुष प्रधान समाज ही उन्हें बूढ़ा समझता है।
शायद इसलिए मर्द 60 पार करने के बाद भी बूढ़ा नहीं होता और ‘साठा पाठा’ कहलाता है। वहीं, औरत 40 की चौखट पार करते ही बूढ़ी समझ ली जाती है। अगर वह अपनी ख्वाहिशें पूरी करने की बात सोचती है या अपने अनुसार खुद को सजाती-संवारती है तो उसे ‘बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम’ कह दिया जाता है।
समाज की सोच का नमूना इस घटना से देखा जा सकता है कि अक्टूबर 2014 में दिल्ली हाई कोर्ट से 2010 के एक केस में रेप और मर्डर के आरोपी को रेप के आरोप से बरी कर दिया था। वजह बताई गई कि मृतक महिला की उम्र 65-70 साल की थी और वह मेनोपॉज की उम्र पार कर चुकी थी इसलिए इसे दुष्कर्म नहीं माना जा सकता है। जरूरत समाज की ऐसी सोच से सिलवटें हटाने की है।
मेनोपॉज आज फुसफुसाहटों में बात करने वाला विषय नहीं रहा। सालोंसाल स्त्री को यह महसूस कराया जाता रहा है कि तुम अगर पूरी तरह खत्म न भी हुई हो पर इतना तय है कि तुम्हारे भीतर का कुछ हिस्सा मर चुका है। फैशन इंडस्ट्री में ब्यूटी और साइज के मापदंड बदल रहे हैं और लोगों की झिझक खत्म हो रही है तो उम्र से जुड़े मेनोपॉज को लेकर इतनी झिझक क्यों?
महिलाओं के लिए जरूरी है कि मेनोपॉज को टाइम बम की तरह ना लें। हमारे समाज में सेक्स को जहां भारी भरकम शब्द माना जाता है, वहां मेनोपॉज शब्द कितनी मुश्किल से हजम होगा, ये समझना आसान नहीं।
उम्र में 50 का आंकड़ा सबसे खुशगवार होता है। लेकिन आम स्त्री की मुश्किलें ये हैं कि उसे कभी भी कहीं से भी साफ-सुथरी सुलझी जानकारियां नहीं मिलतीं। उसे हमेशा अपने शरीर से जुड़ी सभी जानकारियों के लिए दूसरे के अनुभवों का सहारा लेना पड़ता है…
जैसे तुम्हारे पीरियड्स रुक गए क्या? तुम्हें कैसा लगा था? तुम्हारे साथ क्या हुआ?
अगर महिला को पहले से ही मेनोपॉज के बारे में सही जानकारी होगी तो वह खुद में हो रहे बदलावों को देख परेशान नहीं होगी और न ही डिप्रेशन का शिकार होगी, लेकिन हां, इस दौरान पति, बच्चों और पूरे परिवार को महिला की ढाल बनना होगा और समाज को इस उम्र की स्त्री को पॉजिटिव नजर से देखना होगा।
लेखक: ऐश्वर्या शर्मा ( सौजन्य से)