डा० अजय कुमार दुबे
बुढ़ापे की नजदीकियाँ
निगम साहब पिछले बीस मिनट से पूरे घर में हड़बड़ाए से घूम रहे थे। पहले उन्होंने अपनी स्टडी टेबल की सारी किताबों को इधर-उधर किया, फिर वहां से निराश हो ड्रेसिंग टेबल के सामने पहुंच गए। ड्रेसिंग टेबल के लगभग सारे सामानों को बिखेरने के बाद उनका ध्यान डाइनिंग टेबल पर गया। पूरी मेहनत के बाद भी उन्हें वांछित वस्तु नहीं मिली। इसके बाद निगम साहब अपनी अलमारी की और बढ़े और उन्होंने अलमारी को खोलकर तलाशी लेनी शुरु की। यह सुबह-सुबह क्या घर में कोहराम मचा रखा है? चेन से सोने भी नहीं देते!!
इतनी देर शोर शराबे से बेखबर सो रही मिसेज निगम की आंखें खुल गईं और वे उठकर किचन में चली गई। बदन पर ट्रैक सूट, सर पर कैप , पैरों में नई नवेले स्पोर्ट्स शूज, पूरी तरह मॉर्निंग वॉक को तैयार निगम साहब के चेहरे पर पसरी परेशानियां पत्नी के उठ जाने पर कुछ कम हुई। वे मिसेस निगम के पीछे पीछे किचन में पहुंचे।
“मेरा दूर का चश्मा नहीं मिल रहा है! पता नहीं कहां रख दिया! क्या तुमने कहीं देखा था?”
अब तक चाय का पानी चढ़ा चुकी मिसेज निगम ने उन्हें घूरा, “तुम्हारा रोज-रोज का यही हाल है! कभी जूते, कभी कैप, कभी वॉकिंग स्टिक!! इधर-उधर रख कर भूल जाते हो ! मुझे क्या पता तुम्हारा चश्मा कहां है? यार, मैं लेट हो रहा हूं! प्लीज, ढूंढ के दे दो ना !! तुम्हें पता है कि बिना चश्मे मुझे 10 फिट भी साफ नहीं दिखता।”
“किस बात के लिए लेट हो रहे हो? उन्ही बुढ्ढे दोस्तों से गप्पे लड़ाने के लिए, जो तुमने बगीचे में नए-नए बनाएं हैं।”
“तुम्हें मेरे दोस्तों से जलन क्यों हो रही है? ढूंढो तो ठीक, वरना मैं ऐसे ही चला जाऊंगा, तो जाओ और फिर कहीं ठोकर खाकर गिर जाना और इस बुढ़ापे में हड्डियां तुड़वा कर मेरी छाती पर मूंग दलना।” कहते हुए मिसेज निगम में ने चाय छानी, एक कप निगम साहब को पकड़ा कर दूसरा कप हाथ में लेकर लिविंग रूम में आकर बैठ गई । पहले चाय, फिर तुम्हारा चश्मा ढूंढूंगी।”
बेबस निगम साहब भी साथ आकर बैठे ।
“सारी जिंदगी बाहर नौकरी करने के बाद अपने शहर में शिफ्ट हुए, लेकिन क्या पता था 30 वर्ष बाद शहर का रंग रूप ही बदल जाता है। सारी इमारतें बदल चुकी होती है, परिचित शहर छोड़ चुके होते हैं और अपरिचित शहर के बाशिंदे बन जाते हैं।”
“तुम्हारे रिटायरमेंट के बाद बेटे ने तो कितने शौक से तुम्हें बैंगलोर खुद के साथ हमेशा के लिए रहने के लिए बुलाया था। लेकिन तुम ही नहीं माने!”
“क्यों हम वहां दो महीने रहे नहीं थे क्या? लेकिन वहां ना तो तुम्हारा मन लगा ना ही मेरा । यहां आकर बसने का फैसला हम दोनों का था। सोचा था कि यहां हमें कंपनी मिल जाएगी।”
“परायों की छोड़ो!! यहां तो अपने भी मॉर्निंग टी में कंपनी नहीं देते!” मिसेज निगम ने इशारों ही इशारों में निगम साहब पर ताना कसा ।
“भई! मेरी आंख सुबह साढ़े तीन बजे खुल जाती है, तुम 5:30 से पहले उठती नहीं तो बताओ मैं क्या करूं बस तैयार होकर 5:00 बजे घूमने निकल जाता हूं।”
“तुम्हें तो पता ही है कि मुझे रात को देर तक नींद नहीं आती तो मैं तुम्हारे साथ भला कैसे उठ सकती हूं।”
“पता नहीं क्या, मुझे डायबिटीज है? अगर एक दिन भी वॉक नहीं करो तो शुगर लेवल बढ जाता है।”
“वह तो ठीक है, लेकिन तुम तो बाहर से कुंडी लगा कर चले जाते हो! पीछे से जब मेरी आंख खुलती है तो पूरा घर वीरान लगता है और मुझे लगता है कि अगर मुझसे पहले तुम चले गए तो यही वीराना जिंदगी बन जाएगा।”कहते हुए मिसेज निगम चाय का कप रख उठी और उन्होंने दो ही मिनट में चश्मा ढूंढ निगम साहब के हाथ में रख दिया। लो, मत पियो चाय मेरे साथ, बस! उस सुबह निगम साहब का मन ना तो बग़ीचे में लगा न ही नये नये बनाए हम उम्र दोस्तों के साथ।
उस रात उन्होंने नींद का बहाना किया लेकिन आंखें बंद किए जागते रहे। कुछ ही देर में वह जान गए कि मिसेज निगम ने आज उनकी वाकिंग स्टिक उठाकर वॉशिंग मशीन के पीछे रख दी है।वे मुस्कुराए और यह प्रण कर सो गए कि कल सुबह मिसेज निगम के साथ चाय पीने के बाद ही घूमने जाना है। परिवार में यही सब कुछ होना चाहिये ….एक दूसरे को समझने की भावना….घर को स्वर्ग की ओर ले जाती है🙏🙏
सुप्रभातं सुमंगलं।। जो प्राप्त है-पर्याप्त है, जिसका मन मस्त है, उसके पास समस्त है! आपका हर पल मंगलमय हो!