धृतराष्ट्र ने की भीम का वध करने की कोशिश, कृष्ण ने अपनी सूझबूझ से बचाई जान

देश में लगे लॉकडाउन के दौरान दूरदर्शन पर प्रचलित धार्मिक सीरियल ‘महाभारत’ का प्रसारण हो रहा है। दर्शक इस सीरियल को बहुत पसंद कर रहे हैं। अब तक आपने देखा कि अश्वथामा, अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार देते हैं। जब यह बात वासुदेव को पता चलती है तो अश्वथामा बच्चे को जीवित करने के लिए अपना मणि निकालकर देते हैं और कहते हैं कि मुझे श्राप मत दीजिए। उत्तरा का बेटा मरा हुआ पैदा होता है। वह कहती हैं कि मेरे अंतिम प्रकाश ने भी दम तोड़ दिया। ऐसे में वासुदेव कहते हैं कि यह नहीं हो सकता। प्रकाश को कोई नहीं रोक सकता। वासुदेव उत्तरा के पुत्र को जीवित कर देते हैं। अब आज के एपिसोड में जानिए क्या हुआ :-

गांधारी से मिलने के लिए ऋषिवर पहुंचते हैं। गांधारी कहती हैं मेरा भाग्य तो 100 टुकड़ों में कटकर रणभूमि पर पड़ा हुआ है। ऋषिवर कहते हैं कि रणभूमि में पड़ा हुआ तुम्हारा अपना शव है। गांधारी कहती हैं कि युद्ध तो धर्म के आधार पर ही होना चाहिए। मैं दुशासन के वध से दुखी नहीं हूं लेकिन उन्हें दुर्योधन का लहू तो नहीं पीना चाहिए था। ऋषिवर कहते हैं कि अगर तुम पांडवों को श्राप देना चाहती हो तो अवश्य दो लेकिन वे उसे तुम्हारा आशीर्वाद ही समझेंगे। धृतराष्ट्र, भीम को गले लगाने के लिए बुलाते हैं। इस बीच कृष्ण उन्हें इशारे से रोक देते हैं और आगे बढ़ने से मना कर देते हैं। भीम अपनी जगह पुतले को धृतराष्ट्र को आगे कर देते हैं। धृतराष्ट्र पुतले को अपने हाथों से पुतले को तोड़ देते हैं। धृतराष्ट्र को कृष्ण बताते हैं कि उन्होंने भीम को नहीं बल्कि पुतले को तोड़ा है। इसके बाद धृतराष्ट्र पांडव भाइयों से माफी मांगते हैं।  

विदुर ने कहा कि पांडव हस्तिनापुर आ चुके हैं। उन्हें आशीर्वाद दीजिए। पांडव भाई धृतराष्ट्र से आशीर्वाद लेने के लिए राज भवन पहुंचते हैं। इस दौरान कृष्ण भी उनके साथ होते हैं। युधिष्ठर कहते हैं एक एक करके आओ ताकि मैं आप लोगों को पहचान सकूं। पहले वासुदेव पहुंचते हैं। कृष्ण के महाराज कहने पर धृतराष्ट्र गुस्सा हो जाते हैं और बोलते हैं कि मैं अब महाराज नहीं हूं मुझे महाराज मत कहो। मैंने क्षत्रिय की तरह युद्ध हारकर इस स्थान को रिक्त किया है। युधिष्ठर कहते हैं कि महाराज आप ही हैं।

 विदुर धृतराष्ट्र से हस्तिनापुर से क्षमा मांगने के लिए कहते हैं। विदुर ने कहा आप जिन 100 वीरों को अपना पुत्र कह रहे हैं। वह भी हस्तिनापुर के पुत्र थे। आपने दुर्योधन के हाथ में इतने अंगार रखे कि उसकी हथेली अंगार बन गई। और उसी अंगार ने उसे जलाकर भस्म कर दिया। इस युद्ध के लिए इतिहास आपको ही उत्तरदायी उठाएगा। आपने शवों की दीवार उठा दी। 

 धृतराष्ट्र कहते हैं कि मेरे 100 पुत्र वीरगति को प्राप्त हुए और तुम उसे खेल कह रहे हो। क्या यही धर्म है। विदुर कहते हैं कि आप धर्म की बात न करे। इस युद्ध में आपके प्रति युद्ध करना ही धर्म था। पांडवों ने भी टेढ़े मेढ़े रास्ते तय कर धर्म का पालन किया है। आप इस समय राजाा नहीं बल्कि एक पिता सिद्ध हुए। आपने देश का विभाजन किया। आपने धर्म और ह्रदय के बीच दीवार बना दी। धर्म आपके लिए कड़वा सच है आप उसे स्वीकार कर लीजिए क्योंकि आपने अभी तक सब कुछ नहीं खोया है। 

धृतराष्ट्र बहुत दुखीं और रो रहे हैं। विदुर उनसे मिलने के लिए पहुंचते हैं। धृतराष्ट्र कहते हैं कि तुम शोक प्रकट करने आए होगे। शोक प्रकट करो और चले जाओ। मुझे मेरे आंसुओं के साथ अकेला छोड़कर चले जाओ। मेरा दुर्योधन वीरगति को प्राप्त हुआ है। गदा युद्ध में भीम ने उनकी जंघा तोड़ी है। विदुर कहते हैं कि क्या हमारी राजनीति इस योग्य थी उसके प्रति शोक प्रकट किया जाए। धृतराष्ट्र कहते हैं कि दुर्योधन, दुशासन राजनीति नहीं थे, मेरे पुत्र थे। विदुर कहते हैं कि ये ना भूलिए भ्राताश्री यह दाव आपने ही लगाया था और आप हार गए। 

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