हिन्दी दिवस की ढेर सारी बधाई व शुभकामनायें

सर्वप्रथम हिन्दी दिवस की ढेर सारी बधाई व शुभकामनायें

हिन्दी के सुविख्यात व्यंग्यकार श्रद्धेय हरिशंकर परसाई जी ने कहा था, “दिवस कमजोर का मनाया जाता है, जैसे महिला दिवस, अध्यापक दिवस, मजदूर दिवस। कभी थानेदार दिवस नहीं मनाया जाता।” कुछ ऐसी ही परिस्थिति आज हिन्दी की हो चली है। विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति, मानवता की सबसे उर्वर व सहिष्णु भूमि और सबसे बड़े लोकतन्त्र के सबसे बड़े जन समूह के अभिव्यक्ति का माध्यम यह भाषा आज अपनी गरिमा व प्रासंगिकता को जूझ रही है।

आचार्य विनोबा भावे जी की एक उक्ति है — “मैं दुनिया की सभी भाषाओं की इज्जत करता हूँ पर मेरे देश में हिन्दी की इज्जत न हो, यह मैं सह नहीं सकता।” क्या आज हम यह कह पाने की स्थिति में हैं कि हम हिन्दी को वो मान देते हैं जिसकी वो अधिकारी है?

आज हमें रुककर यह सोचने की आवश्यकता है कि प्रति वर्ष एक दैनिक या पाक्षिक आयोजन करके वाग्देवी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर दुखड़ा रो लेने और भाषण दे लेने से वस्तुस्थिति में कुछ सकारात्मक परिवर्तन होने वाला है क्या? यदि हाँ, तो आज तक क्यों नहीं हुआ और यदि नहीं, तो इस औपचारिकता की, इस ढकोसले की क्या प्रासंगिकता है? यदि चीन अपनी भाषा में काम करके विश्व के अग्रणी राष्ट्रों की पंक्ति में पहुँच सकता है, यदि पश्चिमी दुनिया के देश अपनी अपनी भाषाओं में कार्य करके सहजता से आगे बढ़ सकते हैं तो भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता? आखिर कब हम अँग्रेजी भाषा की मानसिक गुलामी करने से बाज आयेंगे? आखिर कब हमें समझ आयेगा कि हिन्दी और भारतीय भाषाएँ आपस में दुश्मन नहीं हैं बल्कि हमारी भाषा, संस्कृति, संस्कार, सभ्यता, समाज और गौरव के लिये हमारी भाषा के मिटने का जो खतरा है, उसका कारण हमारे अन्दर बैठा गुलाम है — अँग्रेजी मानसिकता का गुलाम? भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी की महत्त्वपूर्ण पंक्तियाँ इस बात को ठीक ही उद्घाटित करती हैं –
“निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल॥”

आज तक हम कई भाषण सुनते आये हैं, लेख पढ़ते आये हैं कि सरकारों को ये करना चाहिये, अकादमिक संस्थानों को वो करना चाहिये और भी न जाने क्या-क्या! आज हम ये सोचते हैं कि हमें क्या करना चाहिये! याद रहे, इतिहास का हर बड़ा और सफल आन्दोलन जनता का रहा है, तो आज आपको यह तय करना है कि आप सिर्फ औरों को कोसते रहेंगे या अपनी जिम्मेदारी उठाकर अपनी संस्कृति, समाज, राष्ट्र के लिये कुछ करेंगे।

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