रिटायर्ड होना फ्यूज होना नही है

रिटायर्ड होना फ्यूज होना नही है
(डॉ0 शैलेन्द्र श्रीवास्तव)
लखनऊ। कई लोग रिटायरमेंट को फ्यूज बल्ब की तरह मानते हैं। अहम व वहम को कम करने के लिए तो ठीक है लेकिन व्यापक रूप से अनुपयुक्त है। कहते हैं कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। बेकार होने की कहानी सुनाने वाले बुजुर्ग सज्जन मन से हारे हुए हैं, सुनने वाले मन के मारे हुए हैं। फ्यूज का मतलब असहाय, बेकार, मृत हो जाना, ना कि काहिलों, कामचोरों, बुजदिलों, घमंडियों की तरह ये कहना कि बहुत काम कर लिया, बहुत कमा लिया, अब काम नही करूंगा। याद रखिये, खुशवंत सिंह 97 वर्ष की उम्र में भी लिखते रहे, 70 वर्ष की उम्र में मोदी जी भारत के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री हैं, 78 वर्ष की उम्र में अमिताभ बच्चन सबसे बड़े महानायक अभिनेता हैं, 78 वर्ष की उम्र में बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं,68 की उम्र में पुतिन रूस के राष्ट्रपति हैं, 67 वर्ष की उम्र में शी झिनपिंग चीन के राष्ट्रपति हैं। इसलिए, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों तरीके से अपने आसपास के समाज को, मित्रों रिश्तेदारों को, अपने परिवार को तथा स्वयं को यह बताने की जरूरत है…जब तक दुनिया से विदाई नही, तब तक काम से जी चुराई नही।।
अपने आसपास के कर्मयोगियों से हमे प्रेरणा लेनी चाहिए, उनके विचारों से सहमत/असहमत होना अलग बात है। उदाहरण के तौर पर वरिष्ठ पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी जी बीबीसी जैसे मीडिया हाउस से रिटायर्ड होने के बाद ‘मीडिया स्वराज’ के नाम से यूट्यूब चैनल उसी तर्ज पर चला रहे हैं। कुमार सौवीर जी भी दुलत्ती.कॉम के नाम से न्यूज़ पोर्टल हनक के साथ चला रहे हैं। पूर्व आईएएस दिवाकर त्रिपाठी जी, चुनाव आयोग वाले OSD अतीक अहमद, जैदी चचा, आदि ने दिखा दिया कि काम करते रहने के लिए उम्र से ज्यादा, सही दिलोदिमाग की भूमिका होती है। सादर।। 🌹🙏☺️

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