पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा को लेकर देश के अकादमिक जगत के 600 लोगों ने बयान जारी किया है। महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी और नालंदा विश्वविद्यालय समेत कई संस्थानों के वाइस चांसलर और प्रोफेसर्स ने बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा को लेकर चिंता जताई है। अकादमिक जगत विद्वानों की ओर से जारी साझा बयान में कहा गया है कि बंगाल में चुनाव के बाद टीएमसी के खिलाफ वोट देने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। इस बयान में बंगाल प्रशासन से अराजकता को ख़त्म करने और राज्य में लोगों के बीच विश्वास पैदा करने के लिए हर संभव प्रयास करें।
इसके अलावा डीयू, जेएनयू समेत तमाम विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर्स ने सुप्रीम कोर्ट से भी मामले का संज्ञान लेने की अपील की है। प्रोफेसर्स ने कहा कि इस हिंसा में दलितों, महिलाओं और आदिवासियों को भी शिकार बनाया गया है। इसलिए हम बंगाल में हुई इस हिंसा की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग आदि जैसे उच्चस्तरीय संस्थाओं से जांच की अपील करते हैं। प्रोफेसर्स ने कहा, ‘हम माननीय सर्वोच्च न्यायालय से इस मामले का स्वतः संज्ञान लेने की भी अपील करते हैं और हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए एसआईटी का गठन की मांग करते हैं।’
प्रोफेसर्स ने कहा कि हिंसा और आतंक की राजनीति के ऐसे कृत्य संविधान को कमज़ोर करते हैं और लोकतंत्र के बुनियादी आधारों को नष्ट करते हैं। इसे भारतीय गणराज्य में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। हम समाज के उन कमजोर वर्गों को लेकर चिंतित हैं जिन्हें भारत के नागरिक के रूप में मिले अभिव्यक्ति और संगठन की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करने के कारण राज्य सरकार द्वारा दबाया जा रहा है। इस बयान को जारी करने वाले लोगों में गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी के कुलपति, झारखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी के वीसी समेत देश के कई नामी संस्थानों के मुखिया भी शामिल हैं।