द कन्वरसेशन: लंदन में रहने वाले 43 बरस के पॉल का कहना है कि कई बार जब वह खुद से पूछते हैं कि उन्होंने कोई खास फैसला या चुनाव क्यों किया तो उन्हें एहसास होता है कि दरअसल उन्हें इस सवाल का जवाब नहीं मालूम। ऐसे में यह सवाल पैदा होता है कि हम किस हद तक उन चीजों के आधीन होते हैं, जिनके बारे में हम कुछ नहीं जानते? आपने अपनी कार क्यों खरीदी? आपको अपने पार्टनर के साथ प्यार क्यों हुआ? जब हम अपने जीवन की कुछ पसंदों के बारे में विचार करते हैं, चाहे वह महत्वपूर्ण हों या एकदम साधारण, तो हमें एहसास होता है कि इस चयन की वजह हम नहीं जानते। हमें इस बात पर हैरानी हो सकती है कि क्या हम अपने दिमाग के बारे में जानते हैं कि हमारी चेतना से परे इसके भीतर क्या चलता रहता है।
सौभाग्य से, मनोविज्ञान हमें इस बारे में महत्वपूर्ण और संभवत: आश्चर्यजनक अंतर्दृष्टि देता है। सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्षों में से एक 1980 के दशक में मनोवैज्ञानिक बेंजामिन लिबेट ने पेश किया। उन्होंने एक ऐसा प्रयोग तैयार किया जो सरल लगने का भ्रम देता था, लेकिन उसने एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया। इस प्रयोग में लोगों को एक अनुकूलित घड़ी के सामने आराम से बैठने के लिए कहा गया। घड़ी के पटल पर एक छोटी सी रोशनी घूम रही थी। सभी लोगों को बस इतना करना था कि जब भी वे कोई चाह महसूस करें, अपनी उंगली को मोड़ें, और उस समय घड़ी के घूमते प्रकाश की स्थिति को याद रखें जब उन्हें ऐसा करने की शुरूआती इच्छा हुई थी। जिस समय यह सब कुछ हो रहा था, एक इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (ईईजी) के माध्यम से लोगों के दिमाग की विद्युत गतिविधियों को रिकॉर्ड किया जा रहा था। यह मशीन मस्तिष्क में विद्युत गतिविधि के स्तर का पता लगाती है। लिबेट यह दिखाने में सक्षम रहे कि वास्तव में समय मायने रखता है, और वह इस संबंध में एक महत्वपूर्ण संकेत देते हैं कि क्या अचेतन हमारे कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है या नहीं। उन्होंने दिखाया कि किसी चाह के बारे में मस्तिष्क में विद्युत गतिविधि बहुत पहले अंकित हुई और लोगों ने चेतन अवस्था में बाद में अपनी उंगली मोड़ने का इरादा किया।
दूसरे शब्दों में, तंत्रिका गतिविधि की तैयारी के माध्यम से हमारा अचेतन तंत्र हमें कोई भी निर्णय लेने से पहले इसके लिए तैयार करता है। लेकिन यह सब हमारे चेतन मन में कोई इरादा करने से पहले ही हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि हमारा अचेतन हमारे द्वारा की जाने वाली सभी क्रियाओं पर शासन करता है।
हम हमारे अचेतन द्वारा शासित होते हैं, इस विचार के करीब पहुंचने का एक और तरीका है ऐसे उदाहरणों को देखना जहां हम अचेतन के आधीन होने की उम्मीद कर सकते हैं। वास्तव में, मैंने अपने शोध में लोगों से पूछा कि ऐसा मौका कब आया था।
इसका सबसे आम उदाहरण विपणन और विज्ञापन था। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हम अक्सर ”अचेतन विज्ञापन जैसे शब्दों का सामना करते हैं, जिसका अर्थ है कि हम उपभोक्ता विकल्पों को इस तरह से बनाने की दिशा में काम करते हैं, जिनपर हमारा सचेत रूप से कोई नियंत्रण नहीं होता है।
1950 के दशक के बाजार विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक जेम्स विकरी ने इस अवधारणा को लोकप्रिय बनाया। उन्होंने एक सिनेमा मालिक को फिल्म स्क्रीनिंग के दौरान संदेशों को दिखाने के लिए अपने उपकरण का उपयोग करने के लिए मना लिया। ”कोका-कोला पियो जैसे संदेश एक सेकंड के 3,000वें भाग के लिए फ्लैश हुए। उन्होंने दावा किया कि फिल्म खत्म होने के बाद पेय की बिक्री बढ़ गई। इस खोज की नैतिकता पर सवाल उठने के बाद विकरी ने सफाई दी और स्वीकार किया कि यह सब धोखा था-उसने डेटा बनाया था।वास्तव में, प्रयोगशाला प्रयोगों में यह दिखाना बेहद मुश्किल है कि सचेत सीमा के नीचे शब्दों का चमकना हमें उन उत्तेजनाओं से जुड़े कीबोर्ड पर बटन दबाने के लिए प्रेरित कर सकता है, जो वास्तविक दुनिया में हमें हमारी पसंद बदलने के लिए उकसाता है। इस विवाद के इर्द-गिर्द सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि लोग अभी भी मानते हैं, जैसा कि हाल के अध्ययनों में दिखाया गया है, कि अचेतन विज्ञापन जैसे तरीके उपयोग में हैं, जबकि वास्तव में इससे हमारी रक्षा करने वाला कानून है।