दिल्ली में लॉकडाउन के 40 दिनों के दौरान हवा पहले के मुकाबले ज्यादा साफ रही। इसका सीधा फायदा अस्थमा के मरीजों को हुआ है। डॉक्टरों के मुताबिक, वायु गुणवत्ता सुधरने से आपात स्थिति में आने वाले अस्थमा के गंभीर मरीजों की संख्या 30 फीसदी तक कम हुई है।
लेडी हॉर्डिंग अस्पताल के सांस रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अश्विन ने बताया कि अगर लंबे समय तक हवा की गुणवत्ता में यह बदलाव देखने को मिलता है तो स्थिति और बेहतर होगी उनके मुताबिक, कोरोना संक्रमण के इस दौर में अस्थमा के रोगियों को खतरा अधिक है। वैसे तो अस्थमा के रोगी सर्दियों में अधिक आते हैं लेकिन गर्मियों में भी अस्थमा अटैक आने पर ऐसे मरीज इमरजेंसी में आते हैं। इस बार प्रदूषण से राहत मिलने पर लोग कम बीमार पड़ रहे हैं।
गुरुग्राम के एक अस्पताल में ब्रोंकोलॉजी प्रमुख और रेस्पायरेटरी मेडिसिन के वरिष्ठ सलाहकार नेविन किशोर ने भी माना कि प्रदषण का स्तर कम होने से परामर्श लेने वाले मरीजों की संख्या एक चौथाई तक कम हुई हैं।
फेफड़ों पर असर : एम्स के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर कर्ण मदान के मुताबिक कोरोना काल में अस्थमा के मरीजों को अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। विटामिन-सी युक्त फलों एवं सब्जियों का अधिक सेवन करें। इससे फेफड़े में होने वाली सभी परेशानियों से निजात मिलेगी। प्रतिरोधकता भी बेहतर होगी। लॉकडाउन के पहले चरण यानी 25 मार्च से 14 अप्रैल तक की हवा लॉकडाउन के दूसरे चरण यानी 15 अप्रैल से 03 मई तक से ज्यादा साफ थी। 21 में से 14 दिन ऐसे रहे जब वायु गुणवत्ता सूचकांक 100 से नीचे यानी संतोषजनक श्रेणी में रहा। फिनलैंड स्थित ऊर्जा और साफ हवा शोध संस्थान के मुताबिक, हवा साफ होने के कारण पिछले एक महीने में पूरे यूरोप में 11 हजार मौतों को टाला जा सका है। अकेले जर्मनी में 2083 और ब्रिटेन में 1700 लोगों की जान बचाई जा सकी है। संस्था का कहना है कि उद्योगों और ट्रैफिक के कारण पैदा होने वाली नाइट्रोजन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में पिछले 30 दिनों के दौरान 40 फीसदी की कमी आई है। इससे पार्टिकुलेट मैटर का स्तर 10 फीसदी तक कम हुआ है।