नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि के दिन घट स्थापना के साथ ही नौ दुर्गा की पूजा शुरू हो जाती है। देवी पूजा में घट स्थापना की अपनी खास महत्ता होती है। इस बार 17 अक्तूबर यानी शनिवार को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त है। सुबह 6:27 से 10:13 तक और अभिजित मुहूर्त 11:44 से 12:29 बजे दोपहर तक आप कलश स्थापना कर सकते हैं। इस बार देवी भगवती का आगमन शनिवार को हो रहा है, जो घोड़े पर आ रही हैं। घोड़ा युद्ध का प्रतीक है। इस बार 9 दिनों में ही 10 दिनों का यह पर्व पूरा हो जाएगा, क्योंकि तिथियों का उतार-चढ़ाव है। 24 अक्तूबर को सुबह 6:58 तक अष्टमी है। उसके बाद नवमी लग जाएगी, तो अष्टमी व नवमी की पूजा एक ही दिन होगी। इसलिए दशहरा और देवी का गमन 25 अक्तूबर को ही हो जाएगा।
ऐसे करें कलश स्थापना : कलश की स्थापना मंदिर के उत्तर-पूर्व दिशा में करनी चाहिए और मां की चौकी लगा कर कलश को स्थापित करना चाहिए। सबसे पहले उस जगह को गंगाजल छिड़क कर पवित्र कर लें। फिर लकड़ी की चौकी पर लाल रंग से स्वास्तिक बनाकर कलश को स्थापित करें। कलश में आम का पत्ता रखें और इसे जल या गंगाजल भर दें। साथ में एक सुपारी, कुछ सिक्के, दूर्वा, हल्दी की एक गांठ कलश में डालें। कलश के मुख पर एक नारियल लाल वस्त्र से लपेट कर रखें। चावल यानी अक्षत से अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा रखें। इन्हें लाल या गुलाबी चुनरी ओढ़ा दें। कलश स्थापना के साथ अखंड दीपक की स्थापना भी की जाती है। कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें। हाथ में लाल फूल और चावल लेकर मां शैलपुत्री का ध्यान करके मंत्र जाप करें और फूल और चावल मां के चरणों में अर्पित करें। मां शैलपुत्री के लिए जो भोग बनाएं, गाय के घी से बने होने चाहिए। या सिर्फ गाय के घी चढ़ाने से भी बीमारी व संकट से छुटकारा मिलता है।
विशेष मंत्र : ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ।’ मंगल कामना के साथ इस मंत्र का जप करें।
ज्योतिषी सरिता गुप्ता