बिहार चुनाव जीतने के लिए हो रही है सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर राजनीति: शिवसेना

बिहार चुनाव जीतने और विशिष्ट जाति के वोट पाने के लिए सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर राजनीति की जा रही है। शिवसेना ने मुखपत्र ‘सामना’ में लिखा है कि राजनीति की खुजलाहट शांत हो गई हो तो नेताओं और मीडिया को अब देश की गंभीर समस्याओं की ओर ध्यान देने में कोई हर्ज नहीं है। सुशांत सिंह राजपूत के मौत के मामले की जांच करके सत्य की तलाश करने आई सीबीआई की जांच समाप्त नहीं हुई लेकिन रिया चक्रवर्ती को ड्रग्स के एक मामले में गिरफ्तार हो गई है। योजनानुसार कंगना रनौत भी मुंबई आईं और मुंबई पुलिस की कड़ी सुरक्षा में ही अपने घर पहुंचीं। इसलिए अब राष्ट्रहित, राष्ट्रीय सुरक्षा और जनता के पेट के मुद्दों पर सबको ध्यान देना चाहिए।

‘सामना’ में लिखा है कि उधर हिन्दुस्तान और चीन के बीच सीमा रेखा पर संघर्ष शुरू है। चीन ने लक्ष्मणरेखा लांघी तो हमारे कमांडर्स को मुंहतोड़ जवाबी कार्रवाई के आदेश दे दिए गए हैं। चीन हमारी सीमा में घुस आया है और इंच भर भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। यह लक्ष्मणरेखा लांघने का प्रयास नहीं है क्या? अब और कौन-सी लक्ष्मणरेखा लांघने का हम इंतजार कर रहे हैं। दोनों देशों के सैनिक आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार हैं और इस बार चीनी सेना को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, यह सच है। चीन ने नियंत्रण रेखा पर 50 हजार सैनिकों की तैनाती की है। शीन जियांग और तिब्बत के पास लगभग 200 लड़ाकू विमान तैनात कर दिए गए हैं। हिन्दुस्तान की सेना ने भी जोरदार तैयारी की हुई है। सीमा की स्थिति चिंताजनक है और देश की हालत भी चिंताजनक है।

शिवसेना ने कहा कि ‘लॉकडाउन’ के कारण अर्थव्यवस्था चरमरा गई। सीधे मिट्टी में मिल गई। रोजगार पर संकट आया। इससे देशभर में आत्महत्या करनेवालों की संख्या बढ़ी है। किसानों की आत्महत्या के कारण देश पहले से ही चिंतित था। अब अत्यंत गरीब, नौकरीपेशा, मध्यमवर्गीय लोग भी आत्महत्या कर रहे हैं। बढ़ई, प्लंबर, वायरमैन, छोटे दुकानदार, मोबाइल रिपेयरिंग करनेवाले, चर्मकार, रंग काम करनेवाले, इमारतों के मजदूर आदि लोगों के पास फिलहाल कोई काम नहीं है। कोरोना महामारी के कारण आर्थिक त्रासदी से परेशान होकर रामनिहोरे नामक एक बढ़ई ने उत्तरप्रदेश के ‘बांदा’ में अपने घर में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। ऐसी खबरें अब रोज ही हर राज्य, शहर और गांव में प्रकाशित हो रही हैं। रेस्टॉरेंट्स और सड़कों पर खाद्य पदार्थ बिकना बंद है, जिससे कई लोगों के चूल्हे बुझ चुके हैं। फेसबुक आदि कंपनियों ने हमारे उद्योगपतियों से हाथ मिलाकर हमारे देश में कुछ लाख करोड़ का निवेश किया है। इसकी जिसे प्रशंसा करनी हो, उन्हें करने दो लेकिन इससे मजदूर वर्ग के हाथ क्या आएगा? हवाई अड्डे की मालकियत एक से दूसरे के हाथ में चली गई। इससे किसी राजनीतिक दल की तिजोरी तो गरम हो जाएगी लेकिन देश की मृत अर्थव्यवस्था कैसे जिंदा होगी? 

शिवसेना के मुखपत्र में लिखा है कि आत्मनिर्भर हिंदुस्थान की घोषणा रोमांचक है लेकिन आज भी चीन और पाकिस्तान से लड़ने के लिए हमें राफेल विमान की ही जरूरत पड़ती है और हम रक्षा उद्योग में विदेशी निवेश के लिए लाल कालीन बिछाकर बैठे हुए हैं। देश की कोई आर्थिक नीति बची है क्या? नीचे गिरे अर्थचक्र का ठीकरा वित्त मंत्री भगवान पर फोड़ते हैं। मतलब फिलहाल हमारा देश सिर्फ रामभरोसे ही चल रहा है। राम पर विश्वास होना अच्छी बात है। यह श्रद्धा का मामला हुआ। लेकिन राजा होने के बावजूद वनवास काल में श्रीराम को भी चूल्हा जलाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती थी। सब्जियां उगा कर सीता मइया की रसोई में ले जाना होता था। आज हालात ऐसे हैं कि किसी की सुनना ही नहीं है। इंसानों की कोई चिंता नहीं कर रहा। इसलिए राजनीति करनेवालों को आम लोगों की समस्याओं की तरफ जरा गंभीरता से देखो, ऐसा बोलना भी अपराध साबित हो रहा है। बिहार का चुनाव जीतना है। एक विशिष्ट जाति के एकमुश्त वोट पाने हैं। इसलिए किसी की मौत पर राजनीति और निवेश कैसे किया गया, इसका अनुभव सबने लिया ही है। इस बारे में राष्ट्रीय और राजनीतिक नीतियां तय की जाती हैं। लेकिन लाखों-करोड़ों लोग बेरोजगार और गरीब हो गए, इस पर कोई नीति तैयार नहीं होती। 

शिवसेना ने कहा कि एक अभिनेत्री के बेतुके बयानों पर संवेदनशील होकर एक बड़ा वर्ग एकतरफा राजनीतिक बयानबाजी करता है। इन सबके पीछे राजनीतिक दलों का समर्थन तैयार किया जाता है। यह राष्ट्रहित की राजनीति नहीं है।  चीन ने लद्दाख की सीमा पर 20 जवानों की हत्या की। उस भयंकर घटना को नेता पल भर में भूल जाते हैं और लोग भी उसे भूल जाएं, इसलिए समय-समय पर अलग-अलग माध्यमों से ‘अफीम’ बोयी जाती है। उस अफीम के सेवन से कुछ पल के लिए नशा होता भी होगा, लेकिन उससे सवालों के जंजाल से नहीं निकला जा सकता। देश का युवा वर्ग उस नशे से जल्द-से-जल्द बाहर निकला तो ही कुछ अच्छा और सकारात्मक विचार किया जा सकता है। राजनीति के लिए मौत भी चलती है लेकिन पेट पालने के मुद्दे पर कोई सुनने को तैयार नहीं है। भारतीय जनता पार्टी का मैदान फिलहाल साफ है। कहना सिर्फ इतना ही है कि उस मैदान में भूखे-कंगाल और बेरोजगारों की कब्र मत बनाओ। रिया चक्रवर्ती से लेकर कंगना तक के सारे महत्वपूर्ण मुद्दे खत्म हो गए हैं। इसलिए राष्ट्र के छोटे-मोटे पेट पालने की समस्याओं की ओर देखो, सरकार से हाथ जोड़कर सिर्फ इतनी ही विनती है।

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