सुशांत सिंह राजपूत केस में कोई भी FIR दर्ज होने पर जांच CBI करेगी: सुप्रीम कोर्ट

सुशांत सिंह राजपूत केस पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि केस की जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला किया है। इतना ही नहीं कोर्ट ने कहा है कि सुशांत सिंह राजपूत मौत मामले में यदि कोई अन्य मामला भी दर्ज है तो उसकी जांच भी सीबीआई ही करेगी। आपको बता दें कि इस मामले में केन्द्र सरकार पहले ही बिहार सरकार की मांग पर केस सीबीआई को सौंप चुकी है। 

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को सही बताया और कहा कि सीबीआई जांच की सिफारिश कानून सम्मत है। कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य ने आदेश को चुनौती देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 174 (आत्महत्या की जांच) के तहत जांच कर रही मुंबई पुलिस का अधिकार क्षेत्र सीमित है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुशांत सिंह राजपूत मौत मामले में पटना में दर्ज एफआईआर को सीबीआई को स्थानांतरित किए जाने के फैसले को बरकरार रखा।

बिहार सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि ‘राजनीतिक प्रभाव’ की वजह से मुंबई पुलिस ने एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के मामले में एफआईआर तक दर्ज नहीं की है। दूसरी ओर, महाराष्ट्र सरकार की दलील थी कि इस मामले में बिहार सरकार को किसी प्रकार का अधिकार नहीं है। रिया चक्रवर्ती के वकील का कहना था कि मुंबई पुलिस की जांच इस मामले में काफी आगे बढ़ चुकी है और उसने 56 व्यक्तियों के बयान दर्ज किए हैं।

इसके विपरीत, सुशांत सिंह राजपूत के पिता केके सिंह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह का कहना था कि उनका महाराष्ट्र पुलिस में भरोसा नहीं है। उनका कहना था कि इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की पुष्टि की जाए और मुंबई में महाराष्ट्र पुलिस को इस मामले में सीबीआई को हर तरह से सहयोग करने का निर्देश दिया जाए।

बिहार सरकार का दावा था कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु को लेकर पटना में दर्ज कराई गई प्राथमिकी विधि सम्मत और वैध है। राज्य सरकार ने यह भी दावा किया था कि मुंबई पुलिस ने उसे न तो सुशांत सिंह राजपूत की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराई और न ही उसने अभी तक इस मामले में कोई प्राथमिकी ही दर्ज की है।

इस मामले में केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि मुंबई में तो कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने और मजिस्ट्रेट को इसकी जानकारी दिये बगैर कोई जांच ही नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान ही केंद्र ने कहा था कि इस मामले को सीबीआई को सौंपने की बिहार सरकार की सिफारिश स्वीकार कर ली गई है और इस संबंध में आवश्यक अधिसूचना भी जारी हो गई है।

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