शिवसेना : सचिन पायलट निकले कच्चे खिलाड़ी

शिवसेना ने बुधवार को आरोप लगाया कि राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार गिराने के असफल प्रयास के बाद बीजेपी सितंबर तक महाराष्ट्र में महा विकास आढ़ती (एमवीए) की सरकार गिराने की कोशिश करेगी। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में एक संपादकीय में कहा कि बीजेपी की नीति यह है कि वे उन सरकारों के कामकाज की अनुमति नहीं देंगे जो उनके विचारों से असहमत हैं।

शिवसेना ने कहा कि सचिन पायलट की बगावत सफल नहीं हुई क्योंकि पहले झटके में वे विधायकों का बड़ा आंकड़ा इकट्ठा नहीं कर पाए और अशोक गहलोत के चक्रव्यूह को भाजपा भेद नहीं पाई। सत्ता और दबाव को सहते हुए अशोक गहलोत ने राजस्थान की भूमि पर सरकार गिराने चले लोगों को मात दे दी। सरकार गिराने के लिए भाजपा जो हथकंडे अपनाती है, उसी ‘उपाय’ से गहलोत ने भाजपा की खरीद-फरोख्त को बेकार साबित कर दिया और सचिन पायलट की बगावत सफल नहीं होने दी। अब बचा हुआ काम दिल्ली में प्रियंका और राहुल गांधी ने कर दिया है। इससे मध्यप्रदेश में जो किया गया, वो राजस्थान की युद्धभूमि पर भाजपा नहीं कर पाई। गहलोत की तुलना में पायलट कच्चे खिलाड़ी निकले। 

मुखपत्र सामना के लेख में आगे लिखा है कि मतलब महाराष्ट्र में अल-सुबह हुई शपथविधि के बावजूद उनकी जो भद पिटी, कुछ वैसा ही सचिन पायलट के मामले में भी देखने को मिला। पैसा और जांच एजेंसियां अपने नियंत्रण में होने से हर बार सरकारें गिराई जा सकती हैं, ऐसा नहीं है। आखिर लोकतंत्र में विरोधी दल की सरकारों को चलने ही नहीं देने की जिद क्यों? भाजपा के बाहरी नेताओं ने छाती ठोंककर कहा है कि महाराष्ट्र की सरकार सितंबर तक गिरा कर ही रहेंगे। राजस्थान में असफल होने के बाद महाराष्ट्र में गिरने-गिराने के खेल की यह वैसी नीति? महाराष्ट्र सरकार को अस्थिर करने और गिराने का प्रयास शुरू होगा तो ऐसा खुशी-खुशी करें। लेकिन उसके लिए अकारण मुंह से भाप क्यों छोड़ते हो? भाजपावालों को तो झारखंड की भी सरकार गिरानी है। लेकिन अभी तक वे उसके लिए तैयार नहीं हो पाए। मानो देश के सारे महत्वपूर्ण मुद्दे समाप्त हो चुके हैं इसलिए विरोधी दलों की सरकारों को गिराकर मन बहलाने का धंधा शुरू है। देश पर वित्तीय और बेरोजगारी का भयानक संकट छाया हुआ है। उस पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। कोरोना से लोगों का जीवन संकट में आया और मौत की रफ्तार बढ़ रही है। सत्ताधीशों के लिए इन मुद्दों की कोई गिनती नहीं है। 

शिवसेना ने कहा कि बागी नेता सचिन पायलट ने दिल्ली जाकर प्रियंका-राहुल गांधी से चर्चा की। उसके बाद पायलट ने अपने कदम पीछे हटा लिए। पायलट ने कहा कि कांग्रेस के हित के लिए हम आगे भी काम करते रहेंगे। शुक्रवार से राजस्थान विधानसभा का अधिवेशन शुरू हो रहा है और मुख्यमंत्री गहलोत के पास सरकार चलाने का स्पष्ट बहुमत है। इस महीने भर की जोड़-तोड़ में सबसे ज्यादा हंसी उड़ी है भारतीय जनता पार्टी की। उनकी नीति है कि हमारे विचारों से असहमत राज्य की सरकारों को हम नहीं चलने देंगे या सीधे गिरा देंगे। लेकिन राजनीतिक घमंड में कई बार सौदा चूक जाता है और शेयर बाजार गिर पड़ता है।

राजस्थान में ‘ऑपरेशन कमल’ सफल नहीं हो पाया। इसे हम राजनीतिक विकृति की हार मानते हैं। ‘शोले’ फिल्म में ‘गब्बर सिंह’ की तरह ‘ऑपरेशन कमल’ की दहशत बनाई गई थी। ‘सो जा बच्चे नहीं तो गब्बर आ जाएगा’ की तर्ज पर विरोधी सरकारों के लिए सीधे घुटने टेको, नहीं तो ‘ऑपरेशन कमल हो जाएगा’ का डर दिखाया गया। हालांकि, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ‘ऑपरेशन कमल’ का ही ऑपरेशन करके भाजपा को सबक सिखाया है। कुछ ऑपरेशन टेबल पर असफल हो जाते हैं। महाराष्ट्र में भी सुबह का ऑपरेशन असफल हो गया। अब सितंबर महीने में ऑपरेशन की नई तारीख बोगस डॉक्टरों ने तय की है। राजस्थान का ऑपरेशन महीना भर चला और असफल रहा। भाजपा इससे अब तो सबक सीखे। थोड़ा रुकने में क्या हर्ज है। रुको और आगे बढ़ो, मोड़ पर खतरा है ही!
 

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