अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के वे चेहरे, जिनके बिना यह सपना रह जाता अधूरा

आज अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर 492 साल का लंबा इंतजार खत्म होने जा रहा है। अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निर्धारित मुहूर्त में भूमि पूजन के साथ मंदिर निर्माण की आधारशिला का भी पूजन करेंगे। आज अगर राम मंदिर निर्माण का सपना पूरा होता दिख रहा है, तो इसके पीछे कई लोगों का बड़ा योगदान है। वर्षों से अयोध्या में भव्य राम मंदिर के लिए हुए आंदोलन ने कई प्रमुख चेहरों को समय-समय पर अभियान को आगे बढ़ाते देखा है। राम मंदिर के आंदोलन से जुड़े कुछ चेहरों को जहां प्रसिद्धि और प्रचार मिला, मगर कुछ चेहरे ऐसे भी हैं जिनके नसीब में सिर्फ गुमनामी ही आई। तो चलिए जानते हैं राम मंदिर के उन सभी चेहरों को, जिनके प्रयास के बिना राम मंदिर का सपना अधूरा था।

मंदिर आंदोलन के आरंभकर्ताओं में से एक महंत रघुबर दास थे, जिन्होंने बाबरी मस्जिद के पास राम मंदिर बनाने की अनुमति के लिए फैजाबाद कोर्ट में याचिका दायर की थी। अयोध्या में कई संत अभी भी राम मंदिर के निर्माण के लिए कानूनी लड़ाई शुरू करने का श्रेय महंत रघुबर दास को देते हैं। हालांकि, बहुत से लोगो ऐसे हैं जिन्होंने गुमनाम रहना ही पसंद किया।

राम मंदिर निर्माण के प्रमुख योद्धाओं में एक नाम है गोपाल सिंह विशारद का, जिन्होंने 1950 में स्वतंत्र भारत में मंदिर विवाद को लेकर पहला मामला दायर किया था। गोपाल सिंह विशारद बलरामपुर जिले के निवासी थे और हिन्दू महासभा के जिला प्रमुख थे। जब वह 1950 में भगवान राम का दर्शन करे जा रहे थे तो पुलिस ने उन्हें रोक लिया, इसके बाद उन्होंने एक याचिका दायर की और हिन्दुओं को रामजन्मभूमि तक बेरोक-टोक जाने की अनुमति मांगी। 

राम मंदिर के इस सफर में 1930 बैच के आईएएस अधिकारी के.के. नायर भी गुमनाम हैं। के.के. नायर उस वक्त फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट थे, जब 23 दिसंबर, 1949 की रात को राम लला की मूर्ति विवादित परिसर में रखी गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उस वक्त के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने विवादित स्थल से रामलला के मूर्ति को हटाने का आदेश दिया था, मगर नायर ने ऐसा करने से मना कर दिया। नायर ने अपने राजनीतिक आकाओं से कहा था कि मूर्ति हटाने से पहले उन्हें हटाना होगा। केरल के एलेप्पी के निवासी के. के नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुना और 1967 में जनसंघ के टिकट पर बहराइच से चौथी लोकसभा के लिए चुने गए। कैसरगंज लोकसभा सीट से उनकी पत्नी शकुंतला नायर भी दो बार चुनी गईं।

साल 1949 में गोरखपुर में गोरक्ष मंदिर के मुख्य पुजारी महंत दिग्विजय नाथ ने मूर्ति को विवादित परिसर में रखने के बाद मंदिर आंदोलन का नेतृत्व किया। महंत ने सभी संतों और साधकों को एक मंच पर लाया और आंदोलन का खाका तैयार किया जो बाद में पूरे देश में फैल गया। साल 1969 में उनके निधन के बाद, उनके उत्तराधिकारी महंत अवैद्यनाथ ने मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महंत अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, जिन्होंने मंदिर आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई है।

सुरेश बघेल भी इस सफर के गुमनाम चेहरे ही हैं, जिनके मंदिर में योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता, क्योंकि मस्जिद ढाहने वालों में इनका नाम प्रमुख है। मथुरा के वृंदावन के निवासी ‘कार सेवक’ सुरेश बघेल ने बाबरी मस्जिद को गिराने का पहला प्रयास किया और पुलिस कार्रवाई का सामना किया। बघेल ने राम मंदिर के लिए पुलिस गिरफ्तारी से लेकर अदालतों के कई चक्कर लगाए हैं। फिलहाल, बघेल एक प्राइवेट कंपनी में 6 हजार रुपये प्रतिमाह की नौकरी करते हैं और इन्होंने मंदिर से संबंधित मुद्दे पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। 

1990 के दशक में जब मंदिर आंदोलन को गति मिली तब बाबरी मस्जिद के विध्वंस के की वजह से विश्व हिन्दू परिषद यानी विहिप नेता अशोक सिंघल हिंदुत्व के प्रमुख वास्तुकार बन गए।  उनके नारे ‘एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो’ ने एक उन्माद पैदा किया और हिंदुओं को पहले की तरह लामबंद कर दिया। 2015 में सिंघल का निधन हो गया और वह राम मंदिर का निर्माण देखने के लिए अब इस दुनिया में नहीं हैं।

परवीन तोगड़िया ( उस वक्त के वीएचपी के वरिष्ठ नेता) को मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका के लिए भी जाना जाता था। हालांकि, अशोक सिंघल के निधन के बाद उन्होंने अपना दबदबा खो दिया।

लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के कारण राम जन्मभूमि आंदोलन का वास्तुकार माना जाता है। इतना ही नहीं, राम मंदिर के पक्ष में आडवाणी के रथयात्रा को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सबसे अहम कड़ी के रूप में देखा जाता है। भाजपा के शीर्ष नेताओं, आडवाणी मुरली मनोहर जोशी ने भी मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे उनकी पार्टी को बड़ा राजनीतिक लाभ मिला। एक तरह से देखा जाए तो भारत की राजनीति में भाजपा का उदय, सीधे मंदिर आंदोलन और इन दोनों नेताओं द्वारा निभाई गई भूमिका से जुड़ा हुआ है।

विनय कटियार न सिर्फ बजरंग दल के संस्थापक हैं, बल्कि एक फायरब्रांड हिंदू नेता भी हैं, जिन्होंने मंदिर आंदोलन को एक धार दी। कटियार अयोध्या से तीन बार के सांसद बने, मगर बाद में राजनीतिक गुमनामी में चले गए।

राम मंदिर निर्माण आंदोलन में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह एक अन्य महत्वपूर्ण शख्स हैं। जब बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया गया था, तब वह यूपी के मुख्यमंत्री थे और उसी दिन उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। कल्याण सिंह को अदालत की अवमानना के लिए दोषी ठहराया गया था। 

बीजेपी नेता उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा ने मंदिर आंदोलन में महिला ब्रिगेड का नेतृत्व किया है। दोनों अपने उग्र भाषणों के लिए जाने जाते रहे हैं। कहा तो यह भी जाता है कि साध्वी ऋतंभरा के उग्र भाषणों के कैसेट बाजार में प्रीमियम पर बेचे गए। उमा भारत और साध्वी ऋतंभरा दोनों आज भूमि पूजन कार्यक्रम में शामिल होंगी। 

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