2025 तक कार्बनडाइऑक्साइड अधिकतम स्तर तक-समझने की शक्ति प्रभावित

यूनिवर्सिटी ऑफ साउथहैम्पटन की ओर से किए गए एक शोध में अनुमान लगाया गया है कि 2025 तक कार्बनडाइऑक्साइड को स्तर पिछले 33 लाख साल में सबसे अधिकतम स्तर पर पहुंच जाएगा। शोधकर्ताओं ने कहा कि अगर कार्बनडाइऑक्साइड के उर्त्सजन को रोकने के लिए कुछ नहीं किया गया तो यह पृथ्वी के सबसे गर्म युग यानि प्लियोसीन युग के बराबर हो जाएगा। इस शोध में पत्रिका नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट में प्रकाशित किया गया है। इंसानी की प्रजातियों ने पिछले 15 लाख सालों में इतनी रिकॉर्ड गर्मी अब तक नहीं महसूस की है जितनी वर्तमान में कर रहे हैं। 

वैज्ञानिकों ने कैरेबियन द्वीप के पास समुद्र की गहराई से लिए गए मिट्टी के नमूने से प्लियोसीन काल के वातावरण के बारे में पता लगाया। शोधकर्ताओं ने शोध में दावा किया है कि अगले पांच सालों में गर्मी में रिकॉर्ड बढ़ोतरी होगी। पांच साल में कार्बनडाइऑक्साइड का स्तर 427 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) पहुंच जाएगा। यह प्लियोसीन युग के बराबर हो जाएगा जब पृथ्वी का तापमान वर्तमान से तीन से चार डिग्री ज्यादा था और समुद्र तल 20 मीटर ऊंचा था। इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने कहा कि 2025 तक वातावरण में उसी तरह के बदलाव आएंगे जैसे तब आए थे जब इंसानी पूर्वज ऑरंगुटन्स (बंदरों की एक प्रजाति) से परिवर्तित होकर इंसान जैसे दिखने लगे थे। 

प्रमुख शोधकर्ता थॉमस कुक ने कहा, इस शोध में हमने सबसे महत्वपूर्ण बात यह पाई है कि प्लियोसीन युग में वातावरण में कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा 380 से 420 पीपीएम के आसपास थी। इससे पता चलता है कि वर्तमान में वातावरण में मौजूद कार्बनडाइऑक्साइड प्लियोसीन युग के बराबर पहुंच चुका है और इसलिए अब समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होना बेहद स्वाभाविक बात है। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस शोध के निष्कर्षों से पता चलता है कि आने वाले समय में पृथ्वी इतनी भारी मात्रा में हो रहे ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देगी। वर्ल्ड मेटिरियोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन के अनुसार पिछले दो शताब्दियों में औद्योगिकरण के कारण वातावरण इतना प्रदूषित हो गया है कि समुद्र का जलस्तर बढ़ने और तबाही आने से रोकना नामुमकिन प्रतीत हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ वातावरण पर ही नहीं बल्कि अब तो हमारी सेहत पर भी पड़ने लगा है। एक स्टडी में यह बात सामने आयी है कि वातावरण में बढ़ता कार्बनडाईऑक्साइड का स्तर हमारी सोचने और समझने की क्षमता धीरे-धीरे कम कर रहा है। स्टडी में ये भी कहा गया है कि मानव की बढ़ती गतिविधियों के कारण कार्बनडाइऑक्साइड समेत कई हानिकारक गैसों का स्तर लगातार बढ़ रहा है।

स्टडी में कहा गया है कि कार्बनडाइऑक्साइड  के असर से व्यक्ति को किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि बाहर के वातावरण के मुकाबले हमारे कमरों में कार्बनडाइऑक्साइड का स्तर ज्यादा होता है। इससे पहले साल 2016 की एक रिसर्च में दावा किया गया था कि जब कमरों में कार्बनडाइऑक्साइड का स्तर 945 पार्ट्स प्रति मिलियन तक पहुंचता है तो वहां मौजूद लोगों की सोचने-समझने की क्षमता 15 फीसदी तक कम हो जाती है। 1400 पार्ट्स प्रति मिलियन के स्तर पर यह क्षमता 50 फीसदी तक खत्म हो जाती है। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि ये खतरनाक गैसें बढ़ती रहीं तो इस सदी के आखिर तक सही फैसले लेने की हमारी क्षमता लगभग आधी हो जाएगी। 

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