आलोक वर्मा, जौनपुर ब्यूरो,
जौनपुर: मानीकला गांव में 35 बीघा विवादित जमीन प्रदेश भर में बना चर्चा का विषय
अल्पसंख्यक समुदाय के हाईप्रोफाईल दो परिवारों के बीच झगड़ा होने के कारण होता जा रहा दिलचस्प
जौनपुर। जिले के खेतासराय थाना क्षेत्र के मानीकला गांव में 35 बीघा की एक विवादित जमीन प्रदेश भर में चर्चाओं का विषय बना हुआ है। यह झगड़ा अल्पसंख्यक समुदाय के हाईप्रोफाईल दो परिवारों के बीच होने के कारण दिलचस्प होता जा रहा है। एक पक्ष का आरोप है कि सिंगापुर के बड़े व्यापारी ने कुटरचित दस्तावेज के सहारे मेरी जमीन को कब्जा करना चाहता है तो वही व्यापारी का परिवार का कहना है कि चकबंदी विभाग के कर्मचारियों की लिपिकीय त्रुटि को आधार बनाकर दूसरा पक्ष मेरी जमीन को अपना होने का दावा करके हथियाना चाहता है। फिलहाल मामला हाईकोर्ट में चल रहा है कौन सही है, कौन गलत है इसका पता तो अदालत के फैसले के बाद ही पता चल पायेगा। लेकिन यह बात आम जनता के गले नही उतर रहा है, जिले में यह चर्चा होना शुरू हो गया है कि जिस परिवार का जौनपुर से लेकर विदेशों तक हजारों करोड़ रूपये का कारोबार है वह दूसरे की जमीन क्या हड़प सकता है?
खेतासराय थाना क्षेत्र के मानीकला गांव के निवासी अनवारूद्दीन खान ने सरायख्वाजा थाना क्षेत्र के भरेठी गांव के निवासी अंसार अहमद समेत उनके चार भाईयों पर अपनी 35 बीघा जमीन को कुटरचित दस्तावेज के सहारे हड़पने का आरोप लगाया है। मामला सहायक चकबंदी अधिकारी की कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक चल रहा है। यह विवाद चार दशक पुराना है। बोतल में बंद जिन्न की तरह यह मामला चार नवम्बर को बाहर आ गया। दर असल चार नवम्बर को चकबंदी आयुक्त भानुचंद्र गोस्वामी जिले में विभागीय समीक्षा बैठक किया। बैठक में चकबंदी आयुक्त इस मामले को गम्भीरता से लेते हुए तत्काल आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया। आलाअफसर के फरमान से विभागीय अधिकारियों कर्मचारियों में हड़कंप मच गया।
सिंगापुर के व्यवासायी परिवार के अंसार अहमद ने मीडिया के सामने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि मेरी दादी बशिरून्निशा का मायका खेतासराय थाना क्षेत्र मानीकला गांव में था। वे अपने माता पिता की एकलौती संतान थी । जमीन जायदाद की देख रेख के लिए उन्होंने पड़ोसी को दे रखा था। इसी बीच चकबंदी हुई तो गांव के गोगा खां पुत्र बाबू खां व उनके खानदान के लोगों ने अपना चढ़वा लिया। इस बात की जानकारी हम लोगो को हुई तो सीओ चकबंदी के अदालत में मुकदमा दायर कर दिया। जिसकी डिग्री मेरे पक्ष में हो गया इसके बाद विपक्षी मेरी दादी बशिरून्निशा का नाम दाखिल नही होने दिया। 1992-1993 में धारा 48/3 के तहत खतौनी में मेरी दादी का नाम दर्ज हो गया। उनकी मौत होने के बाद उनकी पूरी जमीन का वरासत हाजी शम्सुद्दीन के नाम हो गया। नाम दर्ज होने के बाद वे सिंगापुर चले गये। सन् 2011 में देहांत हो गया। उसके बाद 2016 में हमारे समेत चारों भाईयों के नाम वरासत हुआ। जिसका हम लोगों ने नकल भी लिया था लेकिन नकल बनाते समय कर्मचारी ने 21 दिसम्बर 1993 की जगह 21 दिसम्बर 1992 लिख दिया।
इसी गलती को आधार विपक्षी बनाते हुए मेरे ऊपर कुटरचित दस्तावेज होने का दावा पेश कर रहे है।
उन्होने कहा कि विपक्षी यह नही बता पा रहे है कि किस अधार पर बशिरून्निशा के जमीन पर अपना हक जता रहे है न तो परिवार खानदान के है न ही बैनामा कराया न ही दादी ने उन्हे गोद लिया।
फिलहाल मामला हाईकोर्ट में अब अदालत के फैसले के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा कि यह विवादित जमीन किसकी है।