दोनों का होगा नुकसान, ड्रैगन ने इशारों में ट्रंप को चेताया

चीन और अमेरिका को अपनी असहमतियों को दूर करना चाहिए और एक-दूसरे के ”मुख्य हितों का सम्मान” करना चाहिए। यह बात प्रधानमंत्री ली किकियांग ने बृहस्पतिवार (28 मई) को कही और ट्रंप प्रशासन को चेतावनी दी कि दोनों बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को पटरी से उतारने के प्रयास से किसी का भी भला नहीं होगा और पूरी दुनिया को नुकसान होगा। साथ ही प्रधानमंत्री ने कहा कि घातक वायरस के स्रोत पर स्पष्ट विचार होना जरूरी है क्योंकि वह विज्ञान के आधार पर इसका पता लगाने के प्रयासों का समर्थन करते हैं।

व्यापार, कोरोना वायरस महामारी की उत्पत्ति, हांगकांग में नए सुरक्षा कानून को लेकर चीन की कार्रवाई और विवादित दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक सैन्य रवैये को लेकर अमेरिका की चीन के साथ तनातनी चल रही है। संसद सत्र के अंत में वार्षिक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए ली ने वॉशिंगटन और बीजिंग के बीच बढ़ते तनाव के बारे में सवालों का सावधानीपूर्वक जवाब दिया। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी थी कि वह दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच संबंध तोड़ देंगे। चीन में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बाद ली दूसरे नंबर के नेता हैं।

ली ने कहा, ”यह सच है कि वर्तमान में चीन और अमेरिका के बीच संबंधों में नई समस्याएं और चुनौतियां आ गई हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि दोनों शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं के बीच संबंध कठिन दौर से गुजर रहा है।” उन्होंने कहा, ”चीन-अमेरिका के बीच संबंधों को ठीक करना दोनों देशों और पूरी दुनिया के लोगों के हित में है।” उन्होंने ट्रम्प और अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो द्वारा रोजाना लगभग कई मुद्दे उठाए जाने का जिक्र नहीं किया जिसमें वे कोरोना वायरस महामारी के लिए बीजिंग को जिम्मेदार ठहराते हैं।

ली ने कहा, ”हमारे आर्थिक व्यवसाय ने लंबा सफर तय किया है और इससे दोनों पक्षों को काफी लाभ पहुंचा है। उन्होंने कहा कि दोनों अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।” दोनों देशों के बीच शीत युद्ध जैसी स्थिति पैदा होने और अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने की चेतावनी पर ली ने कहा, ”हमने शीत युद्ध की मानसिकता को छोड़ दिया है। और दोनों बड़ी अर्थव्यवस्था के बीच संबंध तोड़ने से किसी पक्ष का भला नहीं होगा और पूरी दुनिया को नुकसान होगा।”

चीन में अमेरिकी कंपनियों द्वारा व्यापक निवेश का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह के निर्णय बाजार और व्यवसाय पर छोड़ दिया जाना चाहिए और इसमें सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सामाजिक व्यवस्था और ऐतहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए दोनों देशों के बीच मतभेद हो सकता है। उन्होंने कहा, ”इसलिए कुछ असहमतियों और टकराव से नहीं बचा जा सकता है। महत्वपूर्ण यह है कि हम इन असहमतियों और मतभेदों को कैसे दूर करें। संबंधों में कई दशकों से उतार-चढ़ाव आता रहा है और इस दौरान सहयोग बढ़ा और कई बार इसमें उतार भी आए।” वास्तव में यह जटिल संबंध हैं। आम हितों का विस्तार करने के लिए हमें अपनी बुद्धिमता का इस्तेमाल करना चाहिए और असहमतियों एवं मतभेदों को दूर करना चाहिए।” उन्होंने कहा, ”यह काफी महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंध है। दोनों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्य हैं। कई क्षेत्रों में दोनों देशों को एक-दूसरे के साथ काम करना चाहिए और कर सकते हैं।”

कोरोना वायरस की उत्पति चीन के वुहान से होने की आलोचना को दूर करने के प्रयास के तहत चीन के प्रधानमंत्री ली किकियांग ने कहा कि घातक वायरस के स्रोत पर स्पष्ट विचार होना जरूरी है क्योंकि वह विज्ञान के आधार पर इसका पता लगाने के प्रयासों का समर्थन करते हैं। कोरोना वायरस के वुहान से जन्म लेने के अमेरिकी आरोपों का कड़ा विरोध करते हुए चीन के शोधकर्ताओं ने बुधवार (27 मई) को इन रिपोर्ट को खारिज कर दिया कि जानवरों के बाजार से इसकी उत्पति हुई थी। कोरोना वायरस से जुड़े विवाद और वायरस पर व्यापक शोध कराने के विश्व स्वास्थ्य सभा के प्रस्ताव पर ली ने कहा कि वायरस से हर कोई आश्चर्यचकित है क्योंकि यह नई बीमारी है।

ली ने कहा, ”चीन और कई अन्य देशों का मानना है कि कोरोना वायरस के स्रोत पर स्पष्ट विचार होना चाहिए।” उन्होंने कहा, ”हमें कोविड-19 से निपटने के लिए विज्ञान पर आधारित खुले एवं पारदर्शी तरीके पर काम जारी रखना चाहिए।” कोरोना वायरस की उत्पति को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और विदेश मंत्री माइक पोम्पियो चीन की लगातार आलोचना कर रहे हैं। कोरोना वायरस के कारण दुनिया भर में तीन लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। अमेरिका में कोरोना वायरस के कारण मरने वालों की संख्या बुधवार (27 मई) को एक लाख से अधिक हो गई। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने रविवार (24 मई) को कहा था कि अमेरिका कोरोना वायरस के बारे में ”झूठ” फैलाकर द्विपक्षीय संबंधों को ”नए शीत युद्ध” तक ले जा रहा है।

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