परिवर्तन के दौर का एक दर्पण, तर्क वितर्क पर आधारित सिद्धांत..

 

परिवर्तन के दौर का एक दर्पण, तर्क वितर्क पर आधारित सिद्धांत..

आज मैं आप सब के समक्ष पिछले 60 वर्ष के परिवर्तन के दौर का एक दर्पण प्रस्तुत कर रहा हूँ आज लोगो को सन्तान पालना एक बहुत मुश्किल काम हो गया है बच्चों को किन सिद्धांतों से पाला जाए यह मुश्किल विषय है दौरों का परिवर्तन इस प्रकार हुआ…
(1) 60 वर्ष पहले बच्चे आदेश आधारित सिद्धांत था… इस समय घर के बुजुर्ग दादा दादी पिता या बड़ा भाई जो घर का मुखिया होता था उसके आदेशो पर बच्चों को चलना होता था और बच्चे उनके आदेशो पर संस्कार व्यवहार सीखते थे बात मानते थे इस समय कोई तर्क नही न ही कोई चांस नही की आदेश का पालन न हो…
(2) दूसरा दौर आया विचार विमर्श का सिद्धांत… अब इस दौर में माता पिता के आदेशों पर विचार विमर्श होने लगा और कहा गया पापा आपकी बात समझ नही आ रही है पर चलिए ठीक है बातें मानी गई पर धीमी गति से चर्चाओं से…
(3) अब आया तीसरा दौर तर्क वितर्क पर आधारित सिद्धांत..
अब माता पिता जो बात कहते बच्चे तर्क करने लगे नही पापा यह गलत और यह सही है अब माता पिता बोले भगवान है बोले दिखाओ बोले पैर छुओ बोले क्यो छुए माता पिता बोले भगवान आशीर्वाद देगा बोले पूजा पर ही आशीर्वाद यैसा क्यो मुख्य रूप से इस दौर में बच्चे अपने को माता पिता से अधिक बुद्धि वाले समझने लगे और माता पिता फेल होने लगे परिणाम बदलने लगे संस्कार खत्म होने लगे ..
(4)अब आया वर्तमान और चौथा दौर हर बात को इनकार कर अपनी मर्जी से काम करना… माता पिता की बातों का कोई परवाह नही कोई फिक्र नही अब बच्चों और माता पिता में कलह झगड़े तिरस्कार बाहर और घर का वातावरण बहुत खराब संस्कार हीनता, दुष्कर्मो की आंधियां हुई गलत रास्तो पर गमन नग्नता का प्रदर्शन व्यवहार में परिवर्तन….
एक वक्त था जब बच्चों को बड़ा होते देख माता का ह्रदय प्रफुल्लित होता था पिता की छाती चौड़ी होती थी घर मे खुशियों का आगाज होता था परिवार में नाम सम्मान बढ़ता था आज बच्चे बड़े हुए पिता की कमर झुक गई मां के आखो के नीचे काले घेरे आ गए परिवार घर सब चिंता कलह टेंशन से माता पिता बीमारी ग्रस्त अभी रौशनी दो कदम ही गई है दिए को किसी की नजर लग गई है…बस आज का समय आया माता पिता बच्चों से डरने लगे उनसे भागने लगे डर डर के जीने लगे बेटे जबाब देने लगे बहुये जबाब देने लगी आज माता पिता आधार शून्य हो गए इसे आप शिक्षा का युग कहे या पैसे का युग कहे या शोहरत का युग कहे पर समाज आडोलित है हम अपने ही घर मे आसुओ पर जी रहे है संस्कार नही व्यवहार नही विषय विचारणीय है पर क्या कोई रौशनी की उम्मीद है कि पाँचवे दौर में क्या दिखेगा…

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