हिंदी और भोजपुरी के प्रख्यात कवि और साहित्यकार पं हरिराम द्विवेदी ‘हरि भैया’ का निधन

ब्यूरो,

हिंदी और भोजपुरी के प्रख्यात कवि और साहित्यकार पं हरिराम द्विवेदी ‘हरि भैया’ (87) का सोमवार को निधन हो गया। दोपहर 2:15 बजे वाराणसी में महमूर गंज के मोती झील स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह कफा समय से बीमार चल रहे थे। पिछले साल मार्च में उनकी पत्नी सत्यभामा देवी का भी निधन हो गया था। हरिराम द्विवेदी को साहित्य अकादमी भाषा सम्मान, राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार, साहित्य भूषण, साहित्य सारस्वत जैसे सम्मानों से सम्मानित किए जा चुके थे। पं हरिराम द्विवेदी आकाशवाणी से जुड़े थे और बहुत लोकप्रिय थे। इसके साथ ही संकट मोचन संगीत समारोह सहित अनेक बड़े-बड़े मंचों के प्राण पुरुष के रूप में उनकी विशेष ख्याति थी। दो दर्जन से अधिक काव्य संग्रह के माध्यम से उन्होंने आधुनिक भोजपुरी साहित्य की समृद्धि के लिए अत्यंत विशेष योगदान किया।

पंडित हरिराम द्विवेदी विगत 8 महीना से गंभीर रूप से अस्वस्थ चल रहे थे रविवार की रात करीब 12:00 बजे उनकी तबीयत बहुत अधिक बिगड़ गई परिजनों ने शहर के एक निजी चिकित्सालय से तुरंत डॉक्टर को बुलाया था। डॉक्टर ने रात में ही जवाब दे दिया था पंडित हरिराम द्विवेदी का अंतिम संस्कार 9 जनवरी को मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा। उनके बड़े पुत्र राजेश कुमार द्विवेदी फिर हर उड़ीसा में हैं। वह अपने पुत्र का उपचार करने गए हैं। उनका पुत्र उड़ीसा के एक चिकित्सालय में आईसीयू में भर्ती है। पिता के निधन की सूचना पाकर राजेश कुमार द्विवेदी काशी के लिए रवाना हो चुके हैं।

‘माई हो ललनवा दे दs, बाबू हो सुगनवा दे दs,देसवा के करनवा अपने, बहिनि हो बिरनवा दे दs…’जैसे हजारों कालजयी भोजपुरी गीतों और कविताओं के रचयिता श्री हरिराम द्विवेदी जी  हरि भैया…उम्र के आखिरी पड़ाव पर कैंसर से जूझ रहे थे। कार्यक्रमों में ले जाने के लिए जहां पहले लोगों की लाइन लगा करती थी आखिरी दिनों में ऐसे सभी लोगों ने पल्ला झाड़ लिया था।

आखरी समय तक उनकी सेवा में लगे रहे कवि गौतम अरोड़ा सरस ने कहा कि किसी की चापलूसी और पैरवी न करने की वजह से उन्हें पद्म पुरस्कार के योग्य नहीं समझा गया। उनके प्रशंसक रामयश मिश्र ने कहा कि यह विडंबना ही है कि पं. हरिराम द्विवेदी के गीत चोरी करके कईयों ने नेशनल और इंटरनेशनल पुरस्कार जीते पर आखिरी समय में कोई उनका मददगार नहीं बना। उनके परिजन और गिनती के चंद करीबी लोग हैं उनसे नियमित मुलाकात करते रहे।

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