प्रतिबद्धता ने मुझे छह दशक तक जिंदा रखा: उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक

आलोक वर्मा, जौनपुर।

प्रतिबद्धता ने मुझे छह दशक तक जिंदा रखा

इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल में उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक ने अनुभव सुनाए

इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। शहर के डेली कालम में हेलो हिंदुस्तान द्वारा आयोजित इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल में जहां साहित्य और महिलाओं के हक की बातें हो रही थी वहां रविवार की अपराध कथाओं के विस्फोटक संसार विषय पर नईदुनिया ने विशेष आयोजित किया। इसमें 300 से अधिक अपराध आधारित कहानियों को लिखने वाले उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक ने अपने लेखन के 60 साल के अनुभव को श्रोताओं के साथ गुदगुदाने वाले अंदाज में साझा किया। अपने लेखन पर कहा मैं तो मामूली था, पढ़ने वालों ने मुझे गैरमामूली बना दिया। मैं भले ही अच्छा लेखक नहीं हूँ, लेकिन लेखन और अपने पाठक के प्रति प्रतिबद्ध हूँ।

उन्होंने कहा कि मैं स्वयं को हलवाई की तरह मानता हूं जो मेरे पाठक को पसंद आता है बना देता हूं। जलेबी पसंद नहीं आई तो बर्फी बनाने लगा। पहले सुनील का किरदार रचा और पाठक उसे नहीं इसलिए सुधीर और विमल जैसे पात्र प्रतिबद्धता ने ही मुझे छह दशक तक जिंदा रखा है। मेरी किताब 65 लाख की कैसी 22 बार प्रकाशित हुई। जब मैं यह किताब लिख रहा था तो यह नहीं था कि इतनी प्रसिद्ध होगी। इसे मैंने वैसे ही लिखा जैसे अपने बाकी उपन्यास लिखे थे। यह तो पाठक था जो उसने उसमें खूबी ढूंढ ली। सत्र में मध्यस्थ की भूमिका प्रो. मनीष शर्मा ने निभाई।

उन्होंने कहा कि मैं नकल नहीं करना चाहता था इसलिए सुनील का पात्र रचा

उन्होंने कहा कि उस समय पुलिस इस्पेक्टर से किरदार उपन्यास केही हुआ करते थे मैं किसी की नकल नहीं करना चाहता था और मेरे मन में किसी पात्र को रचने की इच्छा भी थी इसलिए पत्रकार के रूप मैं मैंने सुनील पात्र को रचा।

लेखन 24 घंटे का काम

लेखन के लिए होमवर्क करना पड़ता है। यह 24 घंटे का काम है। मन में आए विचार भूल न जाएं इसलिए हमारे आसपास मिलने वाले लोगों से किरदारो की झलक मिलती है। कई बार 50-60 पेज लिखने के बाद सोचते है क्या पढ़ते लिख दिया और पेज फरकर फेंक देते है। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। मेरे उपन्यासका सुनील मेरे नजदीक है।

खोजी पत्रकार जैसा कुछ होता है, लोग नहीं प्रकाशित होने का आलोचना भी बहुत हुई लेकिन मेरी जिद थी और जब दूसरी कहानी लोगों पसंद किया

साहित्यकारों पर नाराज दिखे

उन्होंने उन साहित्यकारों के प्रति नाराजगी भी दर्ज की, जो उन्हें लेखक नहीं मानते। कुछ लोगों ने कहा कि मुझे लेखन बंद कर देना चाहिए। ऐसा कहने का उन्हें अधिकार किसने दिया। उनकी किताबे कितने लोग पढ़ते हैं। आप लोगों की किताबें पढ़कर प्रकाशक के हाथ क्या आया और मेरी किताबों के प्रकाशन के बाद क्या कभी प्रकाशक के हाथ खाली रहे।

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