ब्यूरो,
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी 80 लोकसभा सीटें जीतने की अपनी रणनीति के तहत यादवों, जाटवों और पसमांदा मुसलमानों के बीच अपने आधार का विस्तार करने की योजना बनाई है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी 80 लोकसभा सीटें जीतने की अपनी रणनीति के तहत यादवों, जाटवों और पसमांदा मुसलमानों के बीच अपने आधार का विस्तार करने की योजना बनाई है। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने भी हाल के एक ट्वीट में इसका संकेत दिया थे। उन्होंने कहा था कि यदुवंशी (यादव), रविदासियों (जाटव) और पसमांदा मुसलमानों को भाजपा के करीब लाया जाएगा ताकि यूपी के हर बूथ पर कमल “खिल” सके।
आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में पार्टी की जीत के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया था कि बीजेपी लोकसभा आम चुनाव में सभी 80 सीटें जीतेगी। आपको बता दें कि यादव और मुस्लिम समाजवादी पार्टी (सपा) के “एमवाई” समीकरण के हिस्सा हैं। वहीं जाटव अब तक मायावती के नेतृत्व वाली बसपा के साथ रहे हैं।
सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी ने मौर्य के बयानों को खारिज करते हुए कहा कि उनकी पार्टी जातिवाद की राजनीति में विश्वास नहीं करती है। चौधरी ने कहा, “हमारी विचारधारा समाजवाद और सामाजिक न्याय पर आधारित है।”
इस बीच न्यूज एजेंसी पीटीआई ने भाजपा के सूत्रों के हवाले से कहा कि पार्टी ने 11 से 17 अगस्त तक अपनी “तिरंगा यात्रा” सप्ताह के दौरान यादवों, जाटवों और पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने के लिए एक व्यापक जन संपर्क अभियान शुरू करने की योजना बनाई है।
बीजेपी को इस बात का अंदाजा है कि यूपी की 80 लोकसभा सीटों के 1.70 लाख बूथों में से 22,000 पर उसका प्रभाव तुलनात्मक रूप से कम है। सूत्रों के मुताबिक इन बूथों में ज्यादातर यादव, जाटव और मुस्लिम मतदाताओं का दबदबा है।
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि राज्य सचिव (संगठन) सुनील बंसल के निर्देश पर भाजपा सांसदों और विधायकों ने हाल ही में पार्टी के पदचिह्न को बढ़ाने के लिए जन संपर्क कार्यक्रम शुरू किए थे।
आपको बता दें कि भाजपा के उत्तर प्रदेश से 64 सांसद हैं जबकि उसकी सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) के दो सांसद हैं। हाल ही में हुए उपचुनावों में बीजेपी के हाथों आजमगढ़ और रामपुर सीट हारने के बाद सपा के महज तीन सांसद शेष रह गए हैं, जबकि बीएसपी के सांसदों की संख्या दस है। सोनिया गांधी कांग्रेस की एकमात्र सांसद हैं। वह रायबरेली सीट का प्रतिनिधित्व करती हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, यादव यूपी की आबादी का 11 फीसदी हैं। दलित आबादी का लगभग 21 प्रतिशत है और मुसलमानों की उपस्थिति का अनुमान 18 प्रतिशत है। दलितों में जाटव संख्यात्मक रूप से मजबूत हैं। वहीं, यूपी में 17 लोकसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। यादव और मुस्लिम मतदाता 10-10 लोकसभा क्षेत्रों में फैसला करते हैं।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता संतराज यादव ने पीटीआई से कहा, ”ज्यादातर यादव अब सपा के साथ नहीं रहना चाहते। उन्हें कांग्रेस में कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है और बसपा उनकी पसंद की नहीं है। इसलिए भाजपा उनके लिए सबसे अच्छा विकल्प है, जहां उन्हें बेहतर अवसर और महत्व मिल रहा है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालकर 25 जुलाई को कानपुर में हरमोहन सिंह यादव की 10वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लिया। हरमोहन सिंह यादव यादव महासभा के अध्यक्ष थे। उनके बेटे सुखराम सिंह यादव, जो पूर्व राज्यसभा सांसद हैं, ने पीएम की जमकर तारीफ की। सुखराम के बेटे मोहित यादव पहले ही भाजपा की सदस्यता ले चुके हैं।
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव विधानसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर भाजपा में शामिल हुई थीं, जबकि वरिष्ठ समाजवादी नेता शिवपाल सिंह यादव अपने भतीजे अखिलेश के साथ हैं। भाजपा से उनकी निकटता हाल के राष्ट्रपति चुनावों में स्पष्ट रूप से दिखाई दी, जहां उन्होंने एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया था।
दूसरी तरफ भाजपा जाटवों को प्रमुखता दे रही है। भाजपा ने पहले दलितों के बीच कोरी, धानुक, खटीक और पासी वर्गों को अधिक महत्व दिया था। अपना ट्रैक बदलते हुए उसने विधानसभा चुनावों में जाटवों पर ध्यान केंद्रित किया। उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को चुनाव जीतने के बाद योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली वर्तमान यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। उन्होंने पहले आगरा मेयर के रूप में कार्य किया जहां जाटवों की अच्छी उपस्थिति है और बसपा सुप्रीमो मायावती अक्सर इस क्षेत्र से अपना चुनाव अभियान शुरू करती हैं।
बीजेपी पसमांदा मुसलमानों को भी जीतने की कोशिश कर रही है। पार्टी ने आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में दानिश आजाद अंसारी को जगह दी है। उन्हें अल्पसंख्यक मामलों का राज्य मंत्री बनाया गया है। पिछले कार्यकाल में एकमात्र मुस्लिम मंत्री मोहसिन रजा थे जो शिया हैं।
चुनाव के बाद के सर्वेक्षणों ने संकेत दिया कि मुसलमानों के बीच भाजपा का वोट शेयर बढ़कर 8 प्रतिशत हो गया है। 2017 के चुनाव की तुलना में यह एक प्रतिशत अधिक है। राज्य भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रमुख बासित अली ने पीटीआई को बताया, “मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं में मुसलमानों के कई लाभार्थी हैं। पार्टी उनके संपर्क में है।”