ब्यूरो
रूवार को इलाहाबाद उच्च न्यायलय में इसरार अहमद और अन्य बनाम यू.पी. राज्य केस की सुनवाई चल रही थी. इसी कड़ी ने अदालत के समक्ष, कथित पीड़ित शिकायतकर्ता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उसने एक मामले में विपक्षियों के साथ समझौता कर लिया है और अब वह याचिकाकर्ता, आरोपी के खिलाफ कोई कार्यवाही जारी नहीं रखना चाहता.SC/ST अधिनियम को लेकर गुरूवार को बड़ी खबर सामने आई. इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने गुरूवार इस अधिनियम को लेकर बड़ा आदेश दिया. दरअसल इलाहाबाद उच्च न्यायलय में आईपीसी की धारा 147, 323, 504, 506 और एससी / एसटी की धारा 3 (1) (डीए), 3 (1) (डीए) के तहत कार्रवाई के विरुद्ध एक याचिका दायर की गई थी.
इसी मामले में सुनवाई करते हुए इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी अधिनियम के तहत किसी भी पीड़ित को केवल प्राथमिकी दर्ज करके अथवा चार्जशीट दाखिल होने पर तत्काल कोई भी मुआवजा दिया जाना सर्वथा अनुचित है. कोर्ट ने टिपण्णी की कि जब तक आरोपी की दोषसिद्धि नहीं हो जाती उसे मुआवजे का कोई अधिकार नहीं है.
गुरूवार को इलाहाबाद उच्च न्यायलय में इसरार अहमद और अन्य बनाम यू.पी. राज्य केस की सुनवाई चल रही थी. इसी कड़ी ने अदालत के समक्ष, कथित पीड़ित शिकायतकर्ता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उसने एक मामले में विपक्षियों के साथ समझौता कर लिया है और अब वह याचिकाकर्ता, आरोपी के खिलाफ कोई कार्यवाही जारी नहीं रखना चाहता.इसी दलील के आधार पर इलाहाबाद उच्च न्यायलय की लखनऊ खंडपीठ के न्यायामूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने ट्रायल की पूरी कार्यवाही के साथ-साथ दर्ज चार्जशीट को भी रद्द कर दिया. उन्होंने यह आदेश जारी किया कि SC/ST के तहत पीड़ित FIR दर्ज होने के बाद मुआवजे के हकदार नहीं है बल्कि दोषसिद्धि के पश्चात ही मुआवजे के हकदार होंगे.
अदालत ने यह साफ किया कि FIR दर्ज होने के बाद ही कोई भी मुआवजा देना अनुचित होगा. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस बावत आदेश की प्रति मुख्य सचिव को जारी की और आदेश को तत्काल प्रभाव से आवश्यक कार्यवाही हेतु जारी करने के आदेश दिए.