ब्यूरो,
पूरब से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री देने वाली भाजपा ने पहले देश और फिर प्रदेश की सत्ता हासिल की थी। अब 2022 के चुनाव में भाजपा पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के जरिए अपना असर बढ़ाना चाहती है। दरअसल यूपी के सिंहासन तक पहुंचने का रास्ता पूर्वांचल से ही होकर जाता है। पिछले तीन चुनावों से प्रदेश में बन रहीं पूर्ण बहुमत की सरकारें इसकी गवाह हैं। पहले बसपा, सपा और फिर भाजपा ने इसी रास्ते से सत्ता के ताले की चाबी हासिल की थी। यही कारण है कि पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के खुलने के साथ पूरब का सियासी घमासान भी रफ्तार पकड़ चुका है।
पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन के साथ ही भाजपा ने सूबे की सत्ता में वापसी के लिए एक बड़ा दांव खेल दिया है। यूं तो यह एक्सप्रेस-वे नौ जिलों से गुजरता है लेकिन सही मायने में इसका असर पूरब के तकरीबन 28 जिलों पर है। इन इलाकों में करीब 160 से अधिक विधानसभा सीटें हैं। वर्ष 2007 में पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली बसपा को इस इलाके से तकरीबन सौ सीटें मिली थीं। वहीं 2012 में स्पष्ट बहुमत पाने वाले सपा की जीत का द्वार भी पूर्वी उत्तर प्रदेश ही बना था। सपा को तब करीब 110 सीटें इस इलाके से मिली थीं। अब 2017 के चुनावी नतीजों पर नजर डालें तो भाजपा ने इस सबको पीछे छोड़ते हुए पूर्वांचल की लगभग 115 सीटें हासिल की थीं। भाजपा पूर्वांचल के महत्व को बखूबी समझती है इसीलिए 2022 के चुनावी संग्राम के केंद्र में उसने पूरब को ही रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह पूर्वांचल पर ही फोकस कर रहे हैं।
सपा भी पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के राजनैतिक महत्व को बखूबी समझती है। यही कारण है कि अखिलेश यादव किसी हाल में इस पर अपना दावा छोड़ना नहीं चाहते। हालांकि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में न सिर्फ अखिलेश को निशाने पर रखा बल्कि साफ तौर पर जता दिया कि पूर्वांचल के विकास का रास्ता भाजपा सरकार ने ही खोला है और पूर्वांचल लगातार उनकी प्राथमिकता में है।