कोरोना संक्रमण के चलते दुनियाभर में सामान्य चिकित्सा सेवाएं प्रभावित हुई हैं और कई देशों में लॉकडाउन के चलते लोगों को भोजन की उपलब्धता भी घटी है। इसके चलते मां एवं शिशु के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका जाहिर की गई है। अमेरिका की जॉन हापकिन्स यूनिवर्सिटी के शोध में दावा किया गया है कि अगले छह महीनों में पांच साल तक की उम्र के 2.53 लाख बच्चों की अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं।
जॉन हापकिन्स यूनिवर्सिटी के शोध को लासेंट जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। वहीं इसमें कहा गया है 118 निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में स्वास्थ्य सेवाएं कोरोना वायरस के संक्रमण के उपचार पर केंद्रित होने से मातृ एवं शिशु से जुड़ीं चिकित्सा सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं। बीमारी के भय, लॉकडाउन आदि कारणों के चलते लोग स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच भी नहीं पा रहे हैं। तीसरे, इस दौरान कम आय वाले लोगों के काम-धंधा खोने के कारण प्रभावित लोगों की भोजन तक पहुंच घटी है, इससे कुपोषण बढ़ने की आशंका है जो मातृ एवं शिशु मृत्यु दर का प्रमुख कारण बनता है।
18.5 फीसदी तक मृत्यु दर में इजाफा होने की आशंका : शोधकर्ताओं ने कहा कि यदि इन स्थितियों के न्यूनतम प्रभाव से आकलन करते हैं तो 9.8 से 18.5 फीसदी तक मृत्यु दर में इजाफा होने की आशंका है। इससे छह महीनों में पांच साल तक के 2,53,500 अतिरिक्त शिशुओं की मौतें होंगी। इस अवधि में 12,200 मातृ मौतें बढ़ेंगी। यदि सबसे खराब स्थिति को मानकर आकलन किया जाए तो 39.3 से 51.9 फीसदी तक मौतें बढ़ सकती हैं। इससे 11,57,000 *शिशुओं तथा 56,700 माताओं की अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं। पापुलेशन फाउंडेशन आफ इंडिया (पीएफआई) की कार्यकारी निदेशक डॉ. पूनम मुतरेजा ने कहा कि यह अध्ययन वास्तविकता को दर्शाता है। कोविड से लड़ाई जरूरी है लेकिन मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं को किसी भी तरीके से प्रभावित नहीं होने देना चाहिए, लेकिन सच्चाई यह है कि ये प्रभावित हुई हैं। सरकार को इसके लिए आपातकालीन योजना बनानी चाहिए। मैंने चित्तौड़गढ़ जिला अस्पताल में देखा कि वहां तीन सौ बेड हैं, जिनमें से 200 कोविड मरीजों के लिए आरक्षित कर दिए हैं। मरीज अभी इतने हैं नहीं, बाकी सभी बीमारियों के लिए सौ बेड हैं।