आलोक वर्मा
तेरे लबों की खामोशी करती है बयां अनकहा
लोगों के कहकहों में पाया खुद को सबसे तन्हा तेरे बिना
दरख्तों के लंबे होते साये में
करता हूं इंतजार तन्हा तन्हा
भीड़ में हूं फिर भी हूं तन्हा
भीड़ में हूं फिर भी हूं तन्हा
तेरे बिना ….
तेरे बिना….
आलोक वर्मा
तेरे लबों की खामोशी करती है बयां अनकहा
लोगों के कहकहों में पाया खुद को सबसे तन्हा तेरे बिना
दरख्तों के लंबे होते साये में
करता हूं इंतजार तन्हा तन्हा
भीड़ में हूं फिर भी हूं तन्हा
भीड़ में हूं फिर भी हूं तन्हा
तेरे बिना ….
तेरे बिना….