ब्यूरो नेटवर्क
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से पहले ही चीन, तालिबान से बातचीत कर रहा है। तालिबान के बड़े नेता मुल्ला बरादर ने इसी कड़ी में बीजिंग का दौरा किया था। कई चीनी राजनयिक भी तालिबानी नेताओं से मिले हैं फिर तालिबान को मान्यता क्यों नहीं दे रहा है चीन?
चीनी मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि बीजिंग तालिबान नेतृत्व वाले शासन को मान्यता देने की जल्दी में नहीं है। इसके बजाए बीजिंग ‘कंस्ट्रक्टिव इंटरवेंशन’ पर फोकस कर रहा है। तालिबान से संपर्क को लेकर विदेश मंत्री वांग यी ने 2017 में पहली बार इस तरह की बात कही थी और चीन मौजूदा वक्त में भी उसी फार्मूला पर चलता नज़र आ रहा है।
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि चीन राजनीतिक और आर्थिक साधनों का इस्तेमाल करके अफगानिस्तान में अपना प्रभुत्व बनाए रखना चाहता है। चीन ने यह साफ़ कर दिया है कि वह सेना के साथ अफगानिस्तान नहीं जा रहा। चीन ने मध्यस्थता और पुनर्निर्माण में मदद का वादा किया है लेकिन तालिबान के वादे पर भरोसा करने से हिचक रहा है। शिनजियांग और पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट मसला चीन द्वारा तालिबान को मान्यता देने का सबसे बड़ा रोड़ा है।
काबुल एयरपोर्ट पर हुए आत्मघाती हमले ने एक बार फिर साबित किया है कि अफगानिस्तान की सुरक्षा स्थिति स्थिर नहीं है। चीनी एनालिस्ट्स का मानना है कि अफगानिस्तान में आने वाले वक्त में आतंकी हमलों की धमकी और आतंकी घटनाएं लंबे वक्त तक बनी रहेगी। लेकिन इस कारण से चीन, तालिबान से संपर्क नहीं तोड़ देगा। लेकिन चीन तालिबान सरकार को मान्यता देने में कोई जल्दबाजी में नहीं है। चीन अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए है और तालिबान से बातचीत कर रहा है।
एक्सपर्ट्स चीन के अफगानिस्तान पॉलिसी को म्यांमार की तरह देख रहे हैं। म्यांमार में चीन ने सैन्य शासन को मान्यता नहीं दी है लेकिन सैन्य सरकार से चीन के बेहतर संबंध हैं। चीन ऐसा ही अफगानिस्तान मामले में कर सकता है।
काबुल एयरपोर्ट पर हुए हमले के बाद चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा है, ‘हमने देखा है कि पिछले 20 सालों से कुछ आतंकी संगठन अफगानिस्तान में जमा हुए और विकसित हुए हैं। यह क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। यह ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) के लिए एक गंभीर खतरा है।’ उन्होंने आगे कहा है कि हमने तालिबान अधिकारियों से साफ़ कह दिया है कि उन्हें सभी आतंकी संगठनों से उचित दूरी बनाने के अपने वादे के प्रति प्रतिबद्ध रहना चाहिए। यह बयान साफ़ बताता है कि तालिबान को मान्यता देने के लिए चीन कोई जल्दबाजी में नहीं है।