उच्च हिमालयी क्षेत्रों पर पहुंचने लेगे शहरों में रहने वाले कबूतर,गौरेया सहित कई पक्षी….
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण असंतुलन अब पक्षियों पर विपरीत असर डाल रहा है। शोध में पाया गया है कि हिमालयी क्षेत्रों में जहां मूल रहवासी पक्षी तेजी से घटे हैं तो मैदानी क्षेत्रों में पाए जाने वाले पक्षियों ने ऊंचाई वाले इलाकों में जगह बना ली है। पक्षियों के प्राकृतिक रहवास में आ रहे इस बदलाव पर पर्यावरणविद भी हैरान हैं। देहरादून स्थित सेंटर फॉर इकोलॉजी, डेवलपमेंट एंड रिसर्च (सेडार) और हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) ने उत्तराखंड में 1700 से 2400 मीटर ऊंचाई वाले 1285 वर्ग किमी जंगल में करीब चार माह तक शोध किया है। शोध में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
सेडार की पक्षी विशेषज्ञ डॉ. गजाला बताती हैं हिमालयी क्षेत्र के जंगलों में मूलरूप से निवास करने वाले पक्षी कम हुए हैं और अब मैदानी क्षेत्र के पक्षी वहां नजर आ रहे हैं। यह परिवर्तन पहली बार देखा गया है। डॉ. गजाला पक्षियों के रहन-सहन में आ रहे इस बदलाव की वजह जंगलों में कटान अतिक्रमण, बढ़ता प्रदूषण, पर्यटन के नाम पर गैर जरूरी गतिविधियां को मानती हैं। उनका कहना है मैदान के पक्षी हिमालय क्षेत्र के जंगलों ना सिर्फ घूमते मिल रहे हैं, बल्कि यहां घोंसला बना कर प्रजनन भी कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि पर्यावरण में हो रहा यह परिवर्तन आने वाले समय में सभी को प्रभावित करेगा।
किस चिड़िया की कितनी क्षमता
कबूतर : 6,000 फीट तक की ऊंचाई पर उड़ सकते हैं. हवा में उड़ने की इनकी औसत रफ्तार 77.6 मील प्रति घंटे की होती है. कबूतर एक दिन में 600 मील की दूरी तय करके वापस अपने ठिकाने पर आ सकते हैं।
चील :चील और बाज आसमान में 6000 फीट तक से अधिक ऊंचाई तक उड़ सकते हैं।
गौरेया: 50 ग्राम से भी कम वजन वाली इस चिड़िया की जीवनकाल 4 से 7 वर्ष का है। यह 35-40 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकती है।
बुलबुल : बुलबुल पक्षी का औसत जीवनकाल लगभग 1 से 3 साल तक होता है। यह करीब 50 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकती है।