काशी में गंगापार रेत में बनाई जा रही नहर को लेकर वैज्ञानिकों में ऊहापोह की स्थिति के बीच हरे शैवालों की समस्या ने उनकी चिंता और बढ़ा दी है। तीन दिन के अंतराल पर एक बार फिर शैवालों के कारण काशी में गंगा जल पुन: हरा हो गया है। पिछली बार मिर्जापुर के निकट से लोहित नदी से ये शैवाल गंगा में आए थे लेकिन इस बार वे प्रयागराज से बहते हुए काशी पहुंचे हैं। शैवालों के कारण गंगा का ईको सिस्टम एक बार फिर संकट में आ गया है।
बीएचयू के वैज्ञानिकों ने पूर्व में ही आशंका जताई थी कि हरे शैवाल फिर गंगा में आ सकते हैं। हरे शैवालों के कारण गंगा जल में ऑक्सीजन स्तर कम होता जा रहा है। यह गंगा में पलने वाले जीवों के लिए बड़ा संकट है। बीते सप्ताह हरे शैवाल आने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसे अस्थायी समस्या बता कर जल्द ही स्थिति सामान्य होने की बात कही थी। बोर्ड की प्राथमिक जांच में भी यह बात भी आई थी कि गंगा जल में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा निर्धारित मानकों से ज्यादा हो गई है।
बीएचयू के नदी विशेषज्ञ प्रो. बीडी त्रिपाठी के अनुसार जब जल के अंदर का तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है, तब वातावरण शैवालों के पनपने के अनुकूल बन जाता है। बीते सप्ताह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जांच में रामनगर की ओर गंगा जल के भीतर का तापमान 32 डिग्री के आसपास मिला था। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि जल्द ही इस समस्या का स्थायी हल नहीं खोजा गया तो गंगा की पारिस्थितिकी बर्बाद हो सकती है। तब गंगा में पलने वाले जीवों की प्रजातियों पर संकट आएगा। सबसे पहले छोटे आकार वाले जीवों के जीवन पर संकट होगा।
बीओडी भी प्रभावित होगा
बीएचयू में इंस्टीट्यूट ऑफ एनवार्यनमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट के वैज्ञानिक डॉ. कृपा राम ने बताया कि जल में यूट्रोफिकेशन प्रक्रिया होने से एल्गी ब्लूम (हरे शैवाल) बनते हैं। ऐसा तब होता है, जब जल में न्यूट्रीएंट (पोषक तत्व) काफी बढ़ जाते हैं। इस कारण गैर जरूरी सूक्ष्म जीवों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होती है। ऐसे में शैवालों को प्रकाश संश्लेषण करने का सबसे उपयुक्त वातावरण मिलता है। तब पानी में ऑक्सीजन कम होने लगता है जिससे बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) सबसे पहले प्रभावित होती है।
प्रयागराज में 24 घंटे पहले गंगाजल हरा हो गया था। रसूलाबाद से लेकर संगम तक गंगा का प्रवाह यमुना जैसा दिखाई दे रहा था। जल हरा होने के साथ गंगा प्रवाह के बड़े क्षेत्र में जलकुम्भी की मात्रा भी बढ़ गई थी। प्रयाग में गंगाजल का यही रंग शिवकुटी, सलोरी, दारागंज में भी देखने को मिला। गंगा के प्रवाह क्षेत्र में जलकुम्भी का फैलना जलीय जीवों के लिए खतरनाक है। रसूलाबाद घाट के पहले गंगा के प्रवाह क्षेत्र में लगभग 100 मीटर तक जलकुम्भी दिखाई फैल चुकी है। जलकुंभियां सबसे पहले मछलियों को प्रभावित करती हैं।