ब्लैक फंगस: AIIMS विशेषज्ञों ने किया अलर्ट,कहा- इन लोगों को ज्यादा खतरा, जानिए क्या है लक्षण

एम्स ऋषिकेश के विशेषज्ञों का कहना है कि शुगर से पीड़ित और स्टेरॉयड ज्यादा लेने वाले मरीजों में ब्लैक फंगस का ज्यादा खतरा है। इससे बचने के लिये शुगर नियंत्रित रखनी चाहिए। स्टेरॉयड के अलावा कोरोना की कुछ दवाएं भी मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली पर असर डालती हैं। खासकर कोरोना से उबरे लोगों को लक्षण पर निगरानी रखनी होगी। लक्षण मिलते ही इलाज शुरू होने पर बीमारी से बचाव संभव है। एम्स ऋषिकेश के निदेशक प्रोफेसर रविकांत के मुताबिक अनियंत्रित डायबिटीज और स्टेरॉयड के अधिक इस्तेमाल से कमजोर इम्युनिटी वालों और लंबे समय तक आईसीयू में रहने वालों पर ब्लैक फंगस का ज्यादा खतरा है। किसी दूसरी बीमारी से भी फंगल का खतरा बढ़ जाता है।  

ऐसे होता है शरीर में दाखिल : 

कोरोना से उबरे लोग हवा में फैले रोगाणुओं के संपर्क में आने से भी फंगस की चपेट में आ सकते हैं। इसके अलावा स्किन पर चोट, रगड़ या फिर जले हुए भाग से भी यह शरीर में दाखिल हो सकता है। 

ये सावधानियां बरतें 
एम्स निदेशक का कहना है कि ब्लैक फंगस से बचने के लिये धूल वाली जगह पर मास्क पहनकर जाये। मिट्टी, काई के पास जाते समय जूते, ग्लब्स, फुल टीशर्ट और ट्राउजर पहने। डायबिटीज पर कंट्रोल, इम्यूनोमॉड्यूलेटिंग या स्टेरॉयड का कम से कम इस्तेमाल कर इससे बचा जा सकता है। एंटीबायोटिक्स या एंटीफंगल दवा का इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर ही करना चाहिए। स्टेरॉयड का उपयोग दस दिनों से अधिक नहीं किया जाना चाहिए। स्टेरॉयड का उपयोग होम आइसोलेशन के बाद नहीं करें।

एम्स में टीम गठित
एम्स ने ब्लैक फंगस से निपटने के लिये टीम गठित की है। इसमें न्यूरोलॉजिस्ट, ईएनटी, नेत्ररोग, दंतरोग विशेषज्ञ एवं सर्जन को शामिल किया गया है। यह टीम ऐसे मरीजों की निगरानी करेगी। साथ ही बचाव और उपचार पर काम करेगी। 

ये हैं लक्षण 
निदेशक के मुताबिक ब्लैक फंगस में आंख में लालपन और दर्द, बुखार, सिरदर्द, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी में खून या मानसिक स्थिति में बदलाव से इसकी पहचान की जा सकती है। यह संक्रमण अधिकतर उन मरीजों में देखने को मिला है, जो डायबिटीज से पीड़ित हैं। वह बताते हैं कि एम्स ऋषिकेश में भर्ती कुछ कोविड मरीजों में ब्लैक फंगस के लक्षण मिल रहे हैं। इनकी विशेषज्ञ चिकित्सक निगरानी कर रहे हैं। 

ऐसे होगा उपचार
फंगल एटियोलॉजी का पता लगाने के लिये केओएच टेस्ट और माइक्रोस्कोपी की मदद लेने से घबराएं नहीं। तुंरत इलाज शुरू होने पर रोग से निजात मिल जाती है। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। मौजूदा वक्त में बीमारी से निपटने के लिये सुरक्षित सिस्टम नहीं है। सतर्कता ही बचाव का एकमात्र उपाय है। बीमारी से मस्तिष्क, फेफड़े और त्वचा पर इसका असर देखने को मिला है।

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