जिस खतरनाक कोरोना वायरस से बचने के लिए लोग लाखों जतन कर रहे हैं, उसी वायरस की खोज में हर रोज खतरों के खिलाड़ी घंटों जूझ रहे हैं। हम बात कर रहे उन योद्धाओं की जो पर्दे के पीछे कोरोना की जंग में अहम किरदार निभा रहे हैं। संदिग्ध लोगों के नमूनों की प्रयोगशाला में जांच कर बीमारी की तलाश कर रहे हैं। मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के माइक्रो बायोलॉजी विभाग की लैब में 10 अप्रैल से कोरोना संदिग्धों के नमूनों की जांच की शुरुआत हुई। उसके बाद से हर दिन लगातार यहां नमूनों की जांच की जा रही है। पांच जिलों के नमूनों से शुरू हुई इस लैब पर इस वक्त आठ जिलों की जांच का जिम्मा है। इनमें प्रयागराज के अलावा प्रतापगढ़, कौशाम्बी, चित्रकूट, फतेहपुर, मिर्जापुर, सोनभद्र और भदोही हैं।
नमूनों की जांच के लिए पांच माइक्रोबायोलॉजिस्ट के साथ 12 लोगों की टीम लगी है। लैब की शुरुआत कराने में कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. एसपी सिंह व एचओडी डॉ. मोनिका सिंह के अलावा माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. राजनारायण एवं डॉ. अरिंदम चतुर्वेदी भी काफी सक्रिय रहे। इसके अलावा टीम में डॉ. रीना सचान, बायोकेमेस्ट्री विभाग के डॉ. अनूप जायसवाल, माइक्रोबायोलॉजी की जूनियर रेजीडेंट डॉ. प्रियंका एवं डॉ. रवि कुमार शर्मा भी इस लैब में काम कर रहे हैं। प्रयोगशाला में 12 लैब टेक्नीशियन भी लगाए गए हैं। इनमें बांदा मेडिकल कॉलेज से भेजे गए अरविंद कुशवाहा, विजय पाल, अखिलेश पांडेय, पीएल प्रकाश, ममता शुक्ला, ऋचा मिश्रा, शिव गोपाल, सीके सिंह, अतुल कुशवाहा संदीप कुमार एवं मो. वासिक हैं। ये सभी लैब टेक्नीशियन अलग-अलग जिम्मेदारी निभा रहे हैं। डॉ. अजय बरनवाल के नेतृत्व में डॉ. राजीव पटेल व डॉ. सौरभ कुमार रिपोर्ट की जिम्मेदारी निभाते हैं। डॉ. मोनिका ने बताया कि उनकी लैब की साफ-सफाई का जिम्मा संजय पर है। पूरे समय वही साफ-सफाई की जिम्मेदारी निभा रहा है। एचओडी डॉ. मोनिका के मुताबिक नमूने की जांच प्रकिया करीब सात से साढ़े सात घंटे की होती है। यह चार चरणों में पूरी होती है। प्रथम चरण ही सबसे कठित होता है। इसे आरएनए एक्सट्रैक्सन कहते हैं। नमूना प्रयोगशाला में पहुंचने के बाद सबसे पहले माइक्रोबायोलॉजिस्ट की निगरानी में दो टेक्नीशियन पीपीई किट के साथ नमूनों में मौजूद वायरस को किल करते हैं। यह प्रक्रिया दो से तीन घंटे की होती है। डॉ. मोनिका के मुताबिक पूरी जांच में सबसे खतरनाक चरण यही है। इसमें जरा भी लापरवाही कई की जान पर बन सकती है। इसलिए इस चरण को बहुत ही सावधानी के साथ पूरा किया जाता है। इस चरण को ही करने के लिए अलग टीम होती है। दूसरा चरण मास्टर मिक्स सिप्रेशन का है। इसमें अलग से सॉल्यूशन बनाया जाता है। तीसरे चरण में नमूना और मास्टर मिक्स सिप्रेशन के सॉल्यूशन को आपस में मिलाया जाता है। अंतिम चरण में नमूने को पीसीआर में लगाया जाता है। यह प्रक्रिया भी करीब दो घंटे की होती है। पूरी होने के बाद रिपोर्ट आती है।
डॉ. मोनिका ने बताया कि स्टाफ की कमी के चलते कोई भी छुट्टी नहीं ले रहा है। संडे के दिन भी लगातार सभी काम कर रहे हैं। प्रयोगशाला में काम करने का समय निर्धारित होता है। इसलिए रात में लैब के अंदर काम करने का भी पहली बार अनुभव मिल रहा है। जांच पूरी करने के बाद सभी माइक्रोबायोलॉजिस्ट व टक्नीशियन अपने घर भी जाते हैं। प्रथम चरण का टेस्ट करने वाली टीम लैब से निकलने के बाद पीपीई किट को उतारते हैं। उसके बाद पूरी बॉडी वॉश करते हैं। कपड़े चेंज करने के बाद ही घर जाते हैं। डॉ. मोनिका के मुताबिक स्टाफ को ट्रेंड करना बहुत मुश्किल होता है। ये ट्रेंड स्टाफ है। सभी हॉस्टल में अकेले ही रहते हैं। स्टाफ की भी दिक्कत है। इसलिए क्वारंटीन की जरूरत नहीं पड़ी। सभी को कहा गया है कि खाने-पीने में इम्युनिटी बढ़ाने वाले सामान का ही उपयोग करें।