कोरोना वायरस महामारी के बीच जम्मू-कश्मीर में 4जी इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने की मांग करने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले के सभी पहलुओं पर विचार किया जाएगा। कश्मीर में इंटरनेट की रफ्तार बढ़ाने की मांग वाली इस याचिका का विरोध करते हुए केंद्र ने कहा कि इससे आंतकी गतिविधियां बढ़ेंगी।
केंद्र सरकार की ओर से हंदवाड़ा की घटना का भी हवाला दिया। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है और ये नीतिगत मामला है, जिसमें अदालत को दखल नहीं देना चाहिए। 4जी स्पीड को शुरू नहीं किया जा सकता। रोजाना आतंकवादी भारत में भेजे जा रहे हैं। इसकी वजह से सेना के आवागमन का आसानी से पता लग जाता है। वैसे भी वहां फोन सेवाएं चल रही हैं।
दूसरी ओर याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि छात्र वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। डॉक्टर मरीजों की रिपोर्ट नहीं देख पा रहे हैं। आरोग्य सेतू भी 2 जी स्पीड से डाउनलोड नहीं हो सकता। सरकार का ये फैसला सुप्रीम कोर्ट के अनुराधा भसीन मामले में दिए गए फैसले का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया था कि समीक्षा कमेटी हर हफ्ते हालात की समीक्षा करेगी। उन्होंने कहा कि प्रयोग के तौर पर एक हफ्ते के लिए 4जी चालू किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि अगर 4जी से खतरा हो सकता है, तो 2जी से भी हो सकता है। ये इंटनेट के जरिए स्वास्थ्य के अधिकार और बोलने की आजादी के खिलाफ है। पिछली सुनवाई में शीर्ष न्यायालय ने केंद्र, जम्मू-कश्मीर प्रशासन से जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करने और रविवार (3 मई) तक विस्तृत हलफनामा दायर करने के लिए कहा था। केंद्र सरकार ने घाटी में फिलहाल 4जी सेवा की बहाली का विरोध कर कहा कि राज्य में गंभीर मुद्दे हैं। यह राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है।
पीठ ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को ईमेल के माध्यम से नोटिस जारी किया था। फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स की ओर से दायर जनहित याचिका में सरकार के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें मोबाइल डेटा सेवाओं में इंटरनेट स्पीड को 2जी तक ही सीमित रखा गया है। इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 1, 9, 21 और 21 ए का उल्लंघन बताया है। याचिका में मांग की गई है कि स्वास्थ्य सेवाओं और छात्रों के लिए वर्चुअल कक्षाओं में हिस्सा लेने के लिए 4जी इंटरनेट की जरूरत है।